Thursday, 20 March 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(२८)
हमने तो है बुरा किया नहीं
फिर बुरा हुआ क्यों अपने संग
चल रहा सदा अपनी ही राहों में
फिर भी कर रहे लोग क्यों तंग
खेल सभी ये हैं बस किस्मत के
जिसको समझ सका है न कोई
अपना कर श्रद्धा जितना डूबोगे
अलमस्त रहोगे उतना देव-संग

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