Sunday, 16 March 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(१०)
जीवन-दुःख को भले भुला दो
कुछ क्षण को पीकर ये हाला
उतरेगी जब , तो विस्मृत दुःख
खूब सताएगी, बन कर ज्वाला
एक रमा ले मन में श्रद्धा
जग में कहलायेगा मतवाला
तन-मन पर क्या कर पायेगी
तब दुःख,द्वेष क्लेश की ज्वाला

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