दैनिक नवज्योति के २४ सितम्बर के अंक में एक समाचार या कहें अजीबोगरीब खबर ने मुझे उसे आप सब के समक्ष अपने मनोभाव के साथ लाने को क्यों मजबूर कर दिया,इसे आप स्वयं पढ़ कर ही बेहतर समझ सकते हैं.......
जोधपुर से कोई ३५ किलोमीटर दूर एक रेलवे स्टेशन है "लूणी".इस स्टेशन के प्लेटफोर्म पर एक वेंडिग ट्राली नंबर २५ है। "इसका" या सम्मान से कहें कि "इसके" वेंडर ५३ वर्षीय माननीय अशोक कुमार भाटी जी है, जो अपनी ट्राली पर नौकर न रख कर सारा काम, मसलन माल बनाने से लेकर बेचने तक, खुद ही करते हैं. जवानी के दिनों में बी. काम. करने के बाद बैंक में डिस्पैच विभाग में नौकरी मिली पर काम पसंद न आने पर कुछ ही दिनों में उसे छोड़ कर पैत्रक व्यवसाय "वेंडिंग" को ही अपना लिया।
इन भाटी जी को अपना धंदा करते हुए भी पढाई करने का जूनून इस हद तक है कि अब तक वे नौ डिग्रियां हासिल कर चुके हैं. ये डिग्रिया हैं...... बी.काम., एम.काम., एम.ए., एल.एल.बी., डिप्लोमा इन लेबर ला एंड प्रेक्टिस, डिप्लोमा इन टैक्शेसन एंड प्रेक्टिस, डिप्लोमा इन टूरिज्म एंड होटल मैनेजमेंट, बैचलर ऑफ़ जर्नलिस्म एंड मास कम्नुकेशन(गोल्ड मैडल), पोस्ट ग्रेजूएट डिप्लोमा इन ह्युमन रिसोर्स मनेजमेंट और अभी भी जूनून बदस्तूर जारी है और अब भी महाशय पी. एच. डी कर रहे हैं।
आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि इतनी डिग्रियां हासिल करने के कारण "लिम्का बुक अफ रिकार्ड के राष्ट्रीय पुरस्कार २००९" में भी इनका नाम दर्ज हो चुका है.
तो अब आप ऐसी किसी ग़लतफ़हमी में न रहे, एक मामूली सा काम करने वाला भी इतना पढ़ा-लिखा हो सकता है, ये ज़रूर ध्यान रखें.
भाटी जी का कहना है कि कोई भी काम छोटा नहीं होता और वे दृढ निश्चय के साथ कहते हैं कि उनका डिग्री प्राप्त करने का अभियान तब तक जारी रहेगा, जब तक उन्हें सफलता मिलती रहेगी. वे इसे सतत चलने वाली प्रक्रिया मानते हैं..........
तो कैसी रही भाटी जी की "अपने धन्दे से संतुष्टता और डिग्री पाते रहने की अभिलाषा?" भाटी जी अपने इस गुण के कारण "भारतीय रेल के गौरव" तो ज़रूर हैं पर उन्हें एक ही मलाल है कि भारतीय रेलवे ने कभी भी उनकी इस प्रतिभा का सम्मान करने कि ज़हमत नहीं उठाई...... यदि भाई "ज्ञानदत्त" जी भारतीय रेल में होने के कारण इस दिशा में कुछ कर सके, तो एक पुण्य के भागीदार होंगे...............
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महक उठे सारा वतन
मरा-मरा कह भी "राम-मयी" अब हर कोना ही है
करे जतन कितना भी तु लिखा सृजित होना ही है
तजी न लालच धनवान दीवाने से परवानों ने
तजी न लालच धनवान दीवाने से परवानों ने
सिखा रही अब तकदीर उन्हें विघटन ढोना ही है
सहज-सुलभ को भूल जिया असहज जीवन जिसने
सहज-सुलभ को भूल जिया असहज जीवन जिसने
अंत समय बेबस - गात लिए उसको रोना ही है
गिरे कर्मों का व्यापार दिला दौलत तो जाता है
गिरे कर्मों का व्यापार दिला दौलत तो जाता है
खुले कथा जब भी यार सभी "स्वजन" खोना ही है
लुटा दिया सारा चमन "मुमुक्षु" इतना दिलदार अभी
लुटा दिया सारा चमन "मुमुक्षु" इतना दिलदार अभी
'महक उठे सारा वतन' जतन ये अब होना ही है
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आभारव्यक्ति
मेरी पिछली पोस्ट (२१ सितम्बर,२००९) पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले निम्न सभी सम्मानीय क्षुदी और शुभचिन्तक पाठक/ पाठिकाओं... या कहें कि स्नेहिल टिप्पणीकारों (क्रम वही, जिस क्रम में टिपण्णी/ प्रतिक्रिया/ आलोचना प्राप्त हुई)....
पी.सी. गोदियाल जी, बबली जी, अपूर्व जी, चंदन कुमार झा जी, मार्क राय जी, विनोद कुमार पांडेय जी, हेम पाण्डेय जी, राज भाटिय़ा जी, अदा जी, अमिताभ (अमिताभ श्रीवास्तव) जी, दर्पण शाह "दर्शन"जी, दिलीप कवठेकर जी, मुकेश कुमार तिवारी जी, ज्ञानदत्त पाण्डेय जी, Pt.डी.के.शर्मा"वत्स" जी, हर्ष जी, ज्योति सिंह जी, दिगम्बर नासवा जी, नीरज गोस्वामी जी, समीर लाल (उड़न तश्तरी)जी, रंजना (रंजना राठौर) जी, अभिषेक ओझा जी, देवेन्द्र जी, मनु जी, डा. टी एस दराल जी, ब्रज मोहन श्रीवास्तव जी, शमा जी, रंजना [रंजू भाटिया] जी, सर्वत एम. ज़माल जी, सुलभ सतरंगी जी, मुरारी पारीक जी, शरद कोकास जी, योगेश स्वप्न जी, महफूज़ अली जी, शोभना चौरे जी, सुमन जी, प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी, Mrs आशा जोगलेकर जी, डा. संध्या गुप्ता जी, रश्मि प्रभा जी, हिमांशु पाण्डेय जी, निर्मला कपिला जी, योगेन्द्र मौदगिल जी, अल्पना वर्मा जी, स्वतंत्र जी, संगीता जी, राकेश जी, "क्षमा" जी, "सच्चाई" जी, लता 'हया' जी, क्रिएटिव मंच, डा. श्रीमती अजीत गुप्ता जी एवं अनुपम अग्रवाल जी
का विशेषरूप से हार्दिक आभारी हूँ कि आप सभी ने पहले की ही तरह स्नेह बनाये रखते हुए २१ सितम्बर की मेरी पोस्ट पर भी ह्रदय से मेरी हौसला अफजाई कर भविष्य में भी इसी तरह कुछ न कुछ लिखते रहने और पोस्ट करने लायक संबल प्रदान किया है और आशा है कि भविष्य में भी कुछ यूँ ही अपना-अपना स्नेहिल मार्गदर्शन मेरे ब्लाग पर आकर मुझे अनवरत प्रदान करते रहेंगें....
मैं उन गुरुजन से टिप्पणीकारों का भी विशेष आभारी हूँ,जिन्होंने अलग से मेरे मेल ऐड्रेस पर सन्देश लिख मुझे और भी बेहतर लिखने मार्फ़त सुझाव/ टिप्स दिए
और अंत मे, मैं अपने उन सह्रदय, परम आदरणीय टिप्पणीकारों का भी आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, जो प्रायः मेरे ब्लाग पर आकर मुझे अपने आशीष वचनों से नवाजते ज़रूर हैं, किन्तु मेरी पिछली पोस्ट पर किसी न किसी खास काम में व्यस्तता के कारण टीका-टिपण्णी करने से चूक गए।
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