Thursday 20 November, 2008

श्रद्धा

श्रद्धा

आज प्रीति जी का ब्लॉग देखा ,जो हू-ब-हू प्रस्तुत है

बाकि...गंगा मैया पर छोङ दो।

पाप करो तुम, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो,
खाओ पियो तुम, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो।।
ऐश करो तुम, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो,
गंद करो तुम, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो।।
शहर का कचरा लाकर,
गंगा मैया पर छोङ दो,
फूंक दो मुझको, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो,
हर-हर गंगे बोल,
बाकि,गंगा मैया पर छोङ दो।।

पढ़ कर प्रसन्नता हुई की किसी ने तो आवाज बुलंद की।

आज इसी को मैं श्रद्धा जोड़ना चाहता हूँ , ताकि हम यह भी समझ सकें की जिम्मेदार कौन है और कालांतर में फल भी किसे भुगतना पड़ेगा.........................

बुरे कामों का बुरा नतीजा तो भोगना ही पड़ेगा।
हर-हर गंगे बोल, बाकि,
गंगा मैया पर छोङ दो।।
कौन क्या कर्म कर रहा है, किस भावः से कर रहा है, गंगा मैया तो ये भी देखती रहती है। कालांतर में फल भी उसी के अनुरूप प्राप्त होते हैं.
कृष्ण ने भी गीता में कर्म को ही प्राथिमिकता दी है, फल कालांतर की वस्तु है।
गंगा मैया पवित्र रूप में ही उत्सर्जित होती है, और उसे
*गन्दा आज के तथाकथित पढ़े-लिखे,
*तथाकथित सभ्य कहलाने वाले,
*अर्थतंत्र के स्तम्भ बनने वाले औद्योगिक घरानों के कर्ता-धरता,
*शहरों की व्यवस्था को चलने वाले व्यवस्थापक, आदि
ही तो इसके लिए जिम्मेदार हैं।

इनमें से शायद ही कोई तबका अनपढ़ हो जिसे समझाने के जरूरत है।

गंगा मैया को गन्दा कह कर उसका मखौल भी तो यही तबका उडाता है।
बेचारे गाँव के श्रद्धालु आज भी गंगा मैया में बिना किसी गंदी भावना के लाखों की संख्या में स्नान करते हैं, सच्चे मन की श्रद्धा रखने वालों को ही तो गंगा मैया संरक्षण प्रदान करती है।
ऐसे ही श्रद्धालु लोगसच्चे मन से उवाचते है ........
" हर-हर गंगे"

Friday 7 November, 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(४४)
युग नहीं कभी भी है बदला करता
स्वार्थियों के भाव बदल जाया करते हैं
आतुरता गुलाब-फूल की कोमलता में
तो काँटें अपना अहसास करा जाते हैं
बेमानी सारे कर्तव्य,अधिकार,धाराएं वे
है नाचे जब स्वार्थियों की अँगुलियों पे
त्याग स्वार्थ, जुडोगे जब श्रद्धा से तो
विष-प्याले अमृत हो जाया करते हैं