श्रद्धा
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पाता सागर कैसे इतना जल
हिमशिखर यूँ अगर नहीं पिघलता
मेरुशिखर पर कैसे हिम जुटता
बन वाष्प समुद्र जल यदि न उड़ता
दे रही प्रकृति संदेश यथेष्ट
इक-दूजे के सब पूरक श्रेष्ठ
श्रद्धा - भावों में रमने वाला
वाद-विवाद में न कभी उलझता