Wednesday 22 July, 2009

श्रद्धा

आप सभी स्नेही जन का मैं अत्यंत शुक्रगुजार हूँ की आप लोगों ने आपदा की इस बेला में तहे दिल से ईश्वर से, परवरदिगार से मेरे शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ की कामना की. आप लोगों की दुवाओं का प्रतिफल है की मैं ठीक होने की तरफ अग्रसर हूँ.

हाथ की परेशानी के कारण मैं अलग- अलग तो आप लोगों का शुक्रिया अता न कर सका अतः प्रार्थना है की इसे ही मेरी दिली शुक्रिया के रूप में लें.

आप लोगों के भीगे, प्यारे अहसासों से मेरे अंतःकरण में निम्न पंक्तिया गुंजित होने लगी.....
भूल गए सारे ही दुख-दर्दों को
पा प्यारे , भीगे अहसासों को
और ईश्वर की कृपा से श्रद्धा की एक और कड़ी सृजित हो गई, क्योंकि यह आप सब के स्नेह का प्रतिफल है, अतः समर्पित भी आप सभी को है ................

श्रद्धा
(५६)

गदरा कर मेघों ने नभ घेरा
हुंकार भरी, भ्रकुटी भी तानी
प्यासी धरती के प्यासे जन
झूम रहे संग स्वागत वाणी
भूल गए सारे ही दुख-दर्दों को
पा प्यारे , भीगे अहसासों को
'जीवन- कष्टों की बढती गाथा
क्या जाने,"श्रद्धा" जिसने जानी

Saturday 11 July, 2009

अग्नि से तो गुजरना ही पड़ेगा

और गुज़र गए........
अपने पिछले ब्लाग में मैंने लिखा था "भाव है कि "प्रभु की प्यारी, भोली रचना क्या से क्या हो जाती है...."पसंद आये तो अपने आशीष से नवाजें, फालतू लगे तो कड़ी आलोचना से भी गुरेज न करें, क्योंकि
* यही सच्चा शिक्षक है.........
* सोना भी तप कर ही निखरता है..............
*अग्नि हर चीज़ को शुद्ध कर देती है............................
* फिर मुझ जैसे नासमझ को निखरने के लिए आलोचना की अग्नि से तो गुजरना ही पड़ेगा............... "

अब मुझे ऐसा प्रतीत होता है की लिखना अपने वश की बात नहीं, ऐसा नहीं की आप में से किसी ने भी बहुत कड़ी आलोचना कर डाली, बल्कि आर्श्चय इस बात पर हो रहा है की मैं उपरोक्त बातें कैसे लिख गया, शायद ऊपर वाले ने सचेत करने की कोशिश की थी और मुझसे ऐसा लिखवाया था।

पिछली पोस्ट प्रकाशित करने के दो दिन के अन्दर ही मैं ३० जुलाई को मुझे अग्नि से गुजरना पड़ा, इसे दैवीय आपदा कहें या वरदहस्त की बिजली के अचानक जबरदस्त फ्लैश से निकली चिंगारी से महज मेरा दायां हाथ ही झुलसा और मै, मेरा पूरा शरीर बाल-बाल बच गया। यही नहीं वहां पर मौजूद अन्य सभी भी पूर्णतः बच गए.

शायद किसी बुरी शक्ति पर दैवीय अनुकम्पा से यह जीत ही है और शायद यही कटु सत्य भी...........अपने घायल हाथ की तस्वीर प्रस्तुत कर मैं आप लोगों का मन खिन्न करना नहीं चाहता. आशा है अगले दस-बारह दिनों में घाव पूर्णतः भर जायेगा.

आजकल सब्जियों, दालों के भाव आसमान छू रहे हैं, माना की सब्जियों पर मौसम की मार है पर दाल पर????

साल डेढ़ साल पहले की ही बात है जब क्रूड आयल ४०-५० डालर प्रति बैरल से १५०-१६० डालर प्रति बैरल पहुँच गया था और पुनः वापस ४० -५० डालर पर देखते ही देखते आ गया, न उत्पादन बदला, न कुछ और। कारण सिर्फ और सिर्फ वायदा बाज़ार, या कहें की पैसे की ताकत से दुनिया हिलाने का बाज़ार.

आज वैसा ही कुछ दाल के साथ चल रहा है. जमाखोरों को तो स्टाक करने के लिए जगह की व्यवस्था करनी पड़ती है पर इस वायदा बाजार में तो पैसे की ताकत से भाव कही भी ले जा सकने की खुली छूट है..........................

"दाल-रोटी भी चलना मुहाल" पर बात चली तो किसी ने कहा भाई अपुन तो माछी- झोल की तरह दाल- झोल से ही कम चला लेंगें, बाकि कम तो नमक कर देगा न। शायद झोल का महत्व बड़ी सहजता से समझ में आ गया....बजट भी न गड़बड़ायेगा...............

वक्त की ही तो बात है, ये दाल भी औकात पर आ जायेगी, ज्यों ही बुल महोदय प्राफिट बुकिंग पर उतर आयेंगे....

क्या होना चाहिए, क्या हो रहा है, क्या कर रहे हैं क्यूं कर रहे है जैसे असंख्य प्रश्न विपदा आते ही खड़े हो उठते हैं और समय गुजरते ही सब भूल जाते हैं, और इतिहास फिर - फिर अपने आप को दोहराता रहता है......

ये तो रहे मेरे अपने विचार, अपनी श्रद्धा, अपने विश्वास के सहारे, आपकी जानने की उत्सुकता है........