Monday 30 March, 2009

श्रद्धा

नवरात्रि का पावन "श्रद्धामय" पर्व चल रहा है। सभी श्रद्धालु अपने-अपने ढंग से "माँ" की अर्चना हेतु यह पावन पर्व मनाने में व्यस्त होंगे ।

"श्रद्धा" ऐसी कि कहीं कोई विरोध नही!

"श्रद्धा" ऐसी कि सर्वत्र अपनापन ही दिखे।

"श्रद्धा" ऐसी की सर्वत्र खुशी का वातावरण। ख़ुद भी, दूसरे भी! कन्या खिलाना भी तो "माँ" ही नहीं दूसरों को खुश रखने की परम्परा निभाने का एक मूक संदेश ही तो है।



इस पावन पर्व के अवसर मे भी यदि रची-बसी सुवासित हवन सुगंध से भी "श्रद्धा" का संदेश भी यदि न रचे-बसे तो निश्चय ही सर्व प्रयास व्यर्थ होंगे।

अतः "श्रद्धा" पर श्रद्धा से कुछ पंक्तियाँ समर्पित कर रहा हूँ और वह भी इसकी पचासवी कड़ी के रूप में ...................

श्रद्धा

(५०)


जीना जीवन एकाकी कितना मुश्किल
"साथ चाहिए",ऐसा ही क्यूँ लगता है
है बीत रहा जीवन अपनापन पाने में
हर प्रयास तिरोहित सा क्यूँ दिखता है

करो प्रयास दूजों को खुश रखने का
है यही मूलमंत्र"अपनापन"चखने का

"श्रद्धा" भी तो नित ऐसा ही बतलाए
"अपना-सा" दूजा भी क्यूँ दिखता है


Tuesday 24 March, 2009

श्रद्धा

श्रद्धा
(४९)
कर न सकी विपदाएं भी जब पस्त
लिया "श्रद्धा-भाव" ने था जन्म तभी
शिशु सा लुढ़काया-पुढ़काया यत्र-तत्र
कालांतर में शक्ति-पुंज सा वही अभी
झेली विपदाएं जिसने, वही अलख जगाये
सर चढ़ जादू-सा 'भय', 'अज्ञान' भगाए
बनी 'श्रद्धा' ही शक्ति-दायनी उसकी
था झेला जिसने कष्टों का अम्बार कभी

Monday 16 March, 2009

श्रद्धा

भाई होली बीते ४ दिन हो चुके और ४ दिन की चांदनी जैसे खो , अंधेरे को प्रश्रय देती है, वैसे ही मस्ती के ४ दिन भी गुज़र गए अपनी जिंदगी में। अब तो हर कोई फ़िर वही पुराने ढर्रे पर अपनी- अपनी "टिर्री"( ज्ञान दत्त जी के ब्लॉग की प्रस्तुति से ) दौड़ा रहे होंगें।


हमें भी लगा की हम भी अपनी "श्रद्धा" की "टिर्री" ब्लॉग जगत की सपाट सड़क पर पुनः दौडाएं, और इसीलिये एक कटु सत्य लेकर ही उपस्थित हुआ हूँ ..........................


श्रद्धा


(४८)


कितना अजमाया कटु सत्य यहाँ


है "खाली हाथ आना,खाली हाथ जाना"


रहे करते ता-उम्र फ़िर भी सदा जतन


है संपत्ति -हैसियत कुछ और बढाना


हुए अतिव्यस्त,मकड़जाल सा ताना-बाना


आह! छोटा सा भी परिवार हो गया अनजाना


पनपाये संबंधों-संस्कारों में श्रद्धा ही


शान्ति, संतुष्टि,सहकार सी अप्रतिम भावना

Wednesday 11 March, 2009

"बुरा न मानों"

भाई सुबीर जी की पोस्ट पर मैंने जो टिप्पणी की थी , उसे हू -ब-हू प्रस्तुत कर रहा हूँ आप सभी के लिए होली के इस हुडदंगी माहौल में ...................
होली है!!!!!!!!!!!!!!!!!

होली ब्लागरों की मचा रही
जम कर अब तो हुडदंग
"बुरा न मानो" तर्ज पर
हुए सभी अब तो बदरंग
अकड़ -पकड़ जब रंग पड़े,
मन में जगी एक उमंग
हम भी पकड़ें, रंग रगड़े
उछल पड़े ले यही तरंग
गिरे धरा पर जब तो पाया
बस एक गधा दे रहा संग
बोला आ बैठ मुझी पर आज
है कितना प्यारा अपना संग
इन्सान मांगता फोटो भैया फिर
करे उन्हें रंगों से बदरंग
कैसी-कैसी वाणी/ शब्दों को फिर
गढे, ले अलंकारिक शैली के ढंग
हम तो दे साथ तुम्हें पल में
अपनापन दिखलाने के संग
बने सवारी कर तुम्हे सवार
ज्यों करे पोते कर बाबा को तंग
दिया मज़ा निश्चल भावों से
पर तुम्हे लगा बुरा ये ढंग
इसीलिए पड़ता तुमको कहना
"बुरा न मानो" होली संग

Monday 9 March, 2009

श्रद्धा

ईद और होली का त्यौहार लगभग एक साथ पड़ कर हिंदू मुस्लिम भाइयों को जो खुशी का तोहफा प्रकृति हमें सहज रूप में प्रदान कर रही है वही स्वार्थ लोलुप कट्टरपंथियों (सही शब्दों में " उग्रवादियों") द्वारा प्लानिंग के साथ तहस-नहस कर दिया जाता है।

कुछ स्वार्थियों के चलते सारी मानव जाति, कौम बदनाम हो जाती है, भय का वातावरण व्याप्त हो जाता है, अविश्वाश मुखर हो उठता है , मानवता त्राहिमान-त्राहिमान कर दुहाई देने के आलावा और कुछ कर नही सकती क्यों कि वह जानती है कि हथियार उठाना गैर कानूनी और उग्रवादी इस तरह की गैर कानूनी प्रक्रियाओं में पारंगत। सरकार भी बेबस सिवाय यह कहने के कि अब हम और उग्रवाद, हिंसा बर्दास्त नही करेंगें और कुछ कर नही पाती।

और हम जनता अपने अपने त्यौहार आने पर पुराने सब घाव भूल कर एक बार फ़िर कही सवैईं और कही गुझिया बनाने में व्यस्त हो कर एक बार पुनः अपने चारो ओर खुशीमय वातावरण का निर्माण कर बैठतें हैं।

आप भी इसी खुशीमय वातावरण में प्रशन्नता पूर्वक न केवल अपने-अपने त्यौहार मनाए बल्कि दूसरों की खुशियों में भी तहे दिल से शरीक हो कर भाई-चारें को पुनर्जीवित करने का हार्दिक प्रयास करें। इन शुभअवसरों ऐसे ही कुछ विचार एवं अभिलाषाएं प्रस्तुत हैं :


श्रद्धा


(४७)


मिले गले ईद अरु होली पर ही

क्यों ऐसे ही है हालात बनें

है विद्वेष -भावना इतनी प्रबल

रह -रह "कर" क्यों हैं खून सनें

मानव हो, सीखो घुलना -मिलना

दुःख-तकलीफों से हो सहज निकलना

श्रद्धा-भावः भरो मन में अपने

लगे सर्व-धर्म है सम्मानित कितने