ईद और होली का त्यौहार लगभग एक साथ पड़ कर हिंदू मुस्लिम भाइयों को जो खुशी का तोहफा प्रकृति हमें सहज रूप में प्रदान कर रही है वही स्वार्थ लोलुप कट्टरपंथियों (सही शब्दों में " उग्रवादियों") द्वारा प्लानिंग के साथ तहस-नहस कर दिया जाता है।
कुछ स्वार्थियों के चलते सारी मानव जाति, कौम बदनाम हो जाती है, भय का वातावरण व्याप्त हो जाता है, अविश्वाश मुखर हो उठता है , मानवता त्राहिमान-त्राहिमान कर दुहाई देने के आलावा और कुछ कर नही सकती क्यों कि वह जानती है कि हथियार उठाना गैर कानूनी और उग्रवादी इस तरह की गैर कानूनी प्रक्रियाओं में पारंगत। सरकार भी बेबस सिवाय यह कहने के कि अब हम और उग्रवाद, हिंसा बर्दास्त नही करेंगें और कुछ कर नही पाती।
और हम जनता अपने अपने त्यौहार आने पर पुराने सब घाव भूल कर एक बार फ़िर कही सवैईं और कही गुझिया बनाने में व्यस्त हो कर एक बार पुनः अपने चारो ओर खुशीमय वातावरण का निर्माण कर बैठतें हैं।
आप भी इसी खुशीमय वातावरण में प्रशन्नता पूर्वक न केवल अपने-अपने त्यौहार मनाए बल्कि दूसरों की खुशियों में भी तहे दिल से शरीक हो कर भाई-चारें को पुनर्जीवित करने का हार्दिक प्रयास करें। इन शुभअवसरों ऐसे ही कुछ विचार एवं अभिलाषाएं प्रस्तुत हैं :
श्रद्धा
(४७)
मिले गले ईद अरु होली पर ही
क्यों ऐसे ही है हालात बनें
है विद्वेष -भावना इतनी प्रबल
रह -रह "कर" क्यों हैं खून सनें
मानव हो, सीखो घुलना -मिलना
दुःख-तकलीफों से हो सहज निकलना
श्रद्धा-भावः भरो मन में अपने
लगे सर्व-धर्म है सम्मानित कितने