आभारव्यक्ति
ब्लाग जगत में अपनी प्रथम ग़ज़ल पोस्ट करते हुए मैं जितना सशंकित था और अन्दर ही अन्दर डर रहा था,उसके ठीक विपरीत जिस अपनेपन के भावों के साथ इतनी बड़ी संख्या में आकर आप क्षुधी और शुभचिंतक पाठक/पाठिकाओं नें चमकते सूर्य की मानिंद हौसला अफजाई की है,उससे टूटी-फूटी सी ग़ज़ल भी अन्धेरें में चाँद सरीखी प्रकाशमान सी लगने लगी है, भले ही दूज के चाँद की तरह ही सही.
इस पोस्ट में मैं अपनी पिछली पोस्ट के निम्न स्नेहिल टिपण्णीकारों (क्रम वही,जिस क्रम में टिपण्णी मिली).......
ब्लाग जगत में अपनी प्रथम ग़ज़ल पोस्ट करते हुए मैं जितना सशंकित था और अन्दर ही अन्दर डर रहा था,उसके ठीक विपरीत जिस अपनेपन के भावों के साथ इतनी बड़ी संख्या में आकर आप क्षुधी और शुभचिंतक पाठक/पाठिकाओं नें चमकते सूर्य की मानिंद हौसला अफजाई की है,उससे टूटी-फूटी सी ग़ज़ल भी अन्धेरें में चाँद सरीखी प्रकाशमान सी लगने लगी है, भले ही दूज के चाँद की तरह ही सही.
इस पोस्ट में मैं अपनी पिछली पोस्ट के निम्न स्नेहिल टिपण्णीकारों (क्रम वही,जिस क्रम में टिपण्णी मिली).......
वन्दना अवस्थी दुबे जी, योगेन्द्र मौदगिल ji , अल्पना वर्मा जी, विक्रम जी, कैटरीना जी, सर्वत जी, रश्मि प्रभा जी, क्षमा जी, विनोद कुमार पांडेय जी, डॉ.टी.एस. दराल जी, संजीव गौतम जी, Pt.डी.के.शर्मा"वत्स" जी, हरकीरत हकीर जी, ज्योति सिंह जी, शिवम् मिश्रा जी, क्रिएटिव मंच, गर्दूं-गाफिल जी, बबली जी, निर्मल कपिला जी, संध्या गुप्ता जी, भूतनाथ जी, योगेश स्वप्न जी, परमजीत बाली जी, श्याम सखा 'श्याम' जी, मुफलिस जी, रवि श्रीवास्तव जी, मुकेश कुमार तिवारी जी, डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी, महफूज़ अली जी, अनुपम अग्रवाल जी, गौरव जी, सुमन जी, प्रेम जी, शरद कोकास ji , मार्क राय जी, दिगम्बर नासवा जी एवं लता 'हया' जी
का विशेष आभारी हूँ कि आप सभी ने ह्रदय से मेरी हौसला अफजाई कर भविष्य में भी ग़ज़ल लिखने और पोस्ट करने लायक संबल प्रदान किया है।
मैं उन गुरुजन से टिप्पणीकारों का भी विशेष रूप से आभारी हूँ,जिन्होंने अलग से मेरे मेल ऐड्रेस पर सन्देश लिख मुझे और भी बेहतर ग़ज़ल लिखने मार्फ़त सुझाव/टिप्स दिए.
मैं अपने उन सह्रदय, परम आदरणीय टिप्पणीकारों का भी आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, जो प्रायः मेरे ब्लाग पर आकर मुझे अपने आशीष वचनों से नवाजते हैं,किन्तु मेरी इस पोस्ट पर किसी न किसी खास काम में व्यस्तता के कारण टिपण्णी करने से चूक गए.
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ये तो रहीं बाते पिछली पोस्ट से सम्बंधित, जो मैनें आपकी टिप्पणियों में बहुत शिद्दत से महसूस की हैं। अब आज की पोस्ट के विषय में चर्चा करना चाहता हूँ, और हाँ , यह विषय और किसी पर नहीं बल्कि टी. वी. के विज्ञापनों पर है
मैं उन गुरुजन से टिप्पणीकारों का भी विशेष रूप से आभारी हूँ,जिन्होंने अलग से मेरे मेल ऐड्रेस पर सन्देश लिख मुझे और भी बेहतर ग़ज़ल लिखने मार्फ़त सुझाव/टिप्स दिए.
मैं अपने उन सह्रदय, परम आदरणीय टिप्पणीकारों का भी आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, जो प्रायः मेरे ब्लाग पर आकर मुझे अपने आशीष वचनों से नवाजते हैं,किन्तु मेरी इस पोस्ट पर किसी न किसी खास काम में व्यस्तता के कारण टिपण्णी करने से चूक गए.
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ये तो रहीं बाते पिछली पोस्ट से सम्बंधित, जो मैनें आपकी टिप्पणियों में बहुत शिद्दत से महसूस की हैं। अब आज की पोस्ट के विषय में चर्चा करना चाहता हूँ, और हाँ , यह विषय और किसी पर नहीं बल्कि टी. वी. के विज्ञापनों पर है
********************************************************************************* आजकल "टाटा टी" का एक विज्ञापन बहुत जोर-शोर से दिखाया जा रहा है कि अपने हिंदुस्तान में छोटे लेवल पर (बड़े लेवल पर कैसे? नहीं दिखाया....) हर कहीं "रिश्वत" किस प्रकार खिलाई जा रही है, विज्ञापन के अंत में बड़ी संजीदगी से ये भी बताया जाता है कि आखिर लोग खाते क्यों हैं (ऐसा लगता है कि खाने वाले इतने बुरे भी नहीं हैं....)
कारण के रूप में उत्तर मिलता है "क्योंकि हम खिलाते हैं"साथ ही रिश्वत खाने वालों को टाटा टी की एक प्याली आफर करते हुए खिलाने वालों से गर्व से वादा लिया जाता है "अब हम खिलाएंगे नहीं, पिलायेंगे।" मतलब........................
खाने-खिलाने, पीने-पिलाने के किस्से आप लोगों ने भी खूब सुने ही होंगे,......... इसीलिए उसकी तह में मैं जाना नहीं चाहता, समझदारों को तो इशारा ही काफी होता है.......
इतनी भूमिका के जद्दोज़हद के बाद मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं कि आज की पोस्ट "विज्ञापन" विषय से हट कर और किसी पर हो ही नहीं सकती...........
इतनी भूमिका के जद्दोज़हद के बाद मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं कि आज की पोस्ट "विज्ञापन" विषय से हट कर और किसी पर हो ही नहीं सकती...........
सो, विज्ञापन से सम्बंधित कुछ दोहे मैं इस पोस्ट में पेश करने की जुर्रत कर रहा हूँ...........
लिखे-पढों का नियंत्रण
विज्ञापन में पुँछ रहे, "ठण्डा" मतलब बूझ
गली-गली शीतल पेय, "मटका" भया अबूझ
कहना हर विज्ञापन में, ब्रांड यही श्रेष्ठ
कहना हर विज्ञापन में, ब्रांड यही श्रेष्ठ
लिखे-पढों का नियंत्रण, रहा कहाँ यथेष्ठ
विज्ञापन में सदाचार, खोज सके तो खोज
विज्ञापन में सदाचार, खोज सके तो खोज
काम,क्रोध,लोभ पोषित,मुफ्त मिले"पिल"रोज़
चिंताहरण रामबाण, "ठण्डा-ठण्डा कूल
चिंताहरण रामबाण, "ठण्डा-ठण्डा कूल
"चेहरे पर ले झुर्रियां, बेचन में मशगूल
कर"मुफ्त-मुफ्त" का शोर,लोगन लिया बुलाय
कर"मुफ्त-मुफ्त" का शोर,लोगन लिया बुलाय
एकै में सब साध लिया, मुफ्त चार पकडाए
कह-कह "ब्रांडेड" माल, लूटा कितना यार
कह-कह "ब्रांडेड" माल, लूटा कितना यार
आज वही बेचन लगे, एक संग क्यों चार
रखे विज्ञापन- प्रीति जो, धोखा हरदम खाय
रखे विज्ञापन- प्रीति जो, धोखा हरदम खाय
बन ग्राहक इक जागरूक, ठोंक-बजाकर लाय