Tuesday, 18 March 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(२१)
कभी किसी ने कहा यहाँ पर
कुछ भी तो अपने हाथ नहीं
हानि-लाभ, जीवन - मरण,
यश-अपयश विधि हाथ रही
मैं - मेरा से, उठ कर ऊपर
मानवता में तो विश्वास करो
हो कर तुम श्रद्धा से अवनत
क्या कह पाओगे,"नाथ" नहीं

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