Tuesday, 18 March 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(१९)
देखे जीवन जीने के रंग निराले
न कहना था , वो भी कह डाले
ख़ुद आगे रहने की बात चली है
तो, बातों से सबकी हवा निकाले
सब होगा यदि बातों से बैठे-ठाले
तो कर्म - हीनों से संसार भरेगा
कर्मवीर रमेगें श्रद्धा से कामों में
तो ही प्रतिफल पातें हैं मतवाले

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