Friday 14 March, 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
( १ )
प्रिय हो तुम, प्रियवर हो तुम
ईष्ट - देव सद्रश्य हो
औरों हेतु भले ही न हो
पर, मेरे लिए अवश्य हो
करना अलग हमें, तो सब चांहें
पर मैं तो बस इतना ही जानूं
डूबोगे श्रद्धा- सागर में जितना
सानिध्य उतना ही सद्रश्य हो


No comments: