Thursday, 20 March 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(२९)
लिखा हुआ जो किस्मत में तेरे
बस उतना ही तू पा पायेगा
लाख करेगा कुछ भी तो बस
दोषी किस्मत को ही ठहरायेगा
अरे नादान! किए कर्म तेरे ही
किस्मत कि गाथा लिखते हैं
अपना कर श्रद्धा , जितना डूबोगे
हर "फल" में तू अमृत ही पायेगा

No comments: