Sunday, 16 March 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(१५)
कठपुतली की तरह नाचना
किसे भला हुआ है स्वीकार
फिर भी है नाच रहा वही
हो कहीं विरोधित, कर इंकार
झूंठी अपनी सब हस्ती है
कहीं न कहीं झुकी है यार
होते नत मानवता में श्रद्धा से
पाते सर्वत्र सदा जय- जयकार

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