Tuesday, 18 March 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(२२)
थे तुमने जो दीप मँगाए
और उन्हें जो दी थी ज्वाला
कर रहे वही प्रकाशित नभ को
जप कर तेरे नाम की माला
रह ईर्ष्या - द्वेष से दूर सदा ही
तू परोपकार में ही मगन रहा
है तूने श्रद्धा की जो राह दिखाई
उसी राह चल रहा ये मतवाला

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