Wednesday, 19 March 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(२३)
है लगता, क्यों "कुछ बुरा हुआ"
"कुछ पाने पर" है क्यों इठलाना
छिपा सभी कुछ भविष्य -गर्त में
फिर क्या है , तुमको बतलाना
"गीता" कहती है "कर्म करो तुम"
"फल देना" तो है अधिकार हमारा
श्रद्धा से डुबो अपने ही करमों में
छूट जाएगा फिर तेरा ये ललचाना

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