Saturday 15 March, 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(६)
प्यार लुटाने को हो प्रस्तुत
नहीं छिपा रखने की है वस्तु
डुबाओ प्रियतम को इसमें इतना
रहे आशक्ति - मदिरा में सुप्त
भ्रमित नहीं तब हो पायेगा
समस्त अहम् उड़न छू हो जाएगा
श्रद्धा प्रेम -भावों की अपनाकर
नरकीय - जीवन पायेगा लुप्त

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