भय
दिल, निंदिया, स्ट्रेस के बाद "भय" , जी हाँ, आज हम इसी पर कुछ बकबकाना
चाहते हैं. इस आर्थिक युग में बड़े लोगों ने कुछ सबूतों को सामने लाकर और
फिर सोचीं समझी साजिश के तहत धुंआदार प्रचार कर आम जन में इतना
भय व्याप्त कर देते हैं कि बेचारा उस वस्तु विशेष से नफ़रत तक करने लग
जाता है और फिर उनके द्वारा उतारी हुई वस्तु का हाथों हाथ स्वागत होता है.....
ऐसा ही पूर्व में
* भारत में सर्वाधिक प्रचलित सरसों के तेल के साथ हो चुका है, सोयाबीन,
पाम, सूरजमुखी का तेल का प्रचलन इसी की उपज है..........
* सार्वजानिक नलों में आने वाले पानी में अशुद्धता के नाम पर हो चुका
है, वाटर प्योरीफायर, मिनरल वाटर उदाहरण हैं,
* गाँधी का बनाया नमक, आयोडीन युक्त नमक का विज्ञापन सरकारी खर्च
पर आज भी लगातार हो ही रहा है
* देशी खाद के साथ हो ही चुका, यूरिया आदि उदहारण मौजूद हैं ही.......
आदि-आदि.........
और अब एक बार फिर......
उस देश में जहाँ पर कभी घी-दूध की नदियाँ बहती रही हों, आज भी जहाँ
प्रचुर मात्र में दूध मौजूद हैं, वंहा चन्द स्वार्थियों ने मिलावट के नाम पर
पैसा बनाने कि ठानी, और फिर देखते ही देखते लोभियों, मौकापरस्तों द्वारा
विज्ञापन भी धुआधार शुरू हो गया,
मिलावटी मावे, भारतीय मिठाइयों के विरुद्ध.............
ऐन त्यौहार के मौके आने तक आम जन में भय व्याप्त हो चुका था,
ड्राई फ्रूट, और टाफियों कि ज़बरदस्त विक्री हुई............
कभी सोचा है लाखो-करोडों ईमानदार भारतियों की रोज़ी-रोटी जो दूध
के सहारे है, उनका क्या होगा
इन चन्द लाभ के सौदागरों के चलते........
सरकार की अकर्मण्यता के चलते.........
शरम आती है यह देख कर की इन मिलावटी मौत के सौदागरों को सरकार
बर्दाश्त आखिर कैसे कर लेती है.
कानून का भय जिन्हें होना चाहिए वे तो ठाट से घूमते हैं, आमजन
मौत के भय से जूझता मिलता है,
कुछ भी हो यह आर्थिक युग है, पैसे वालों के, सत्ता वालों के हर
जुल्मों-सितम जन-हित स्वास्थ्य के बैनर तले आम जन को स्वीकार
करना ही होगा, यही नियति है, सरकारी मूक सहमति है, शायद अब,
क्योंकि,
* ईमानदारी पर धीरे-धीरे बेईमानी भारी हो गई और वह "स्मार्टनेस" के
नाम से सबको स्वीकार हो गई है
* कर्तव्य पर धीरे-धीरे भ्रष्टाचार छा गया और उसे लोग "शिष्टाचार" के
नाम से स्वीकारने लगे.......
* विद्यालयों की पढाई पर बुराई आई तो ट्यूशन की पौबारह, अब जो ट्यूशन
न पढ़े, उसे हेय दृष्टि से देखा जाने लगा है
* थोडा टैक्स न भरने वाले अपराधी, और स्विस बैंक में असीमित धन
रखने वाले पूज्य...... माई-बाप,.......
* दुराचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले को तरह-तरह की ठोकरे खानी पड़ती
है और दुराचारी "एम् एल ए"," एम् पी" तक बन जाते है.... आदि-आदि
और सबसे मज़ेदार बात यह कि ये ज़नता है, सब जानती है, फिर भी कुछ
नहीं कर सकती क्योंकि इस भय भरे वातावरण में सब कुछ उसने स्वीकार
कर लिया है.......... "जय हो जनता जनार्दन की".............
****************************************************
छोटी सी रचना
महत्त्व / महत्वहीन
देना न महत्त्व कभी उनको जो
हैं हिंसा फैलाने को अकुलाते
हो महत्वहीन ये अतिवादीगण
किस भांति रहेगें तब इठलाते
***************************************************************
और अंत में .....
* दिया गया मरीज की मदद को दान
पाए पूरा जरूरतमंद ही, नहीं आसान
* हरने पर थी लंका जली, हो गया महाभारत हँसने पर
हरना - हँसना इक संग दिखे , लोकतंत्र उजड़ने पर
*****************************************************************
आभारव्यक्ति
मेरी १९ अक्टूबर की पोस्ट पर प्राप्त आप सब की बहुमूल्यवान,
सारगर्भित, प्रेणादायक, हौसला अफजाई परक या
आलोचनात्मक टिप्पणियों पर मैं अपनी आभारव्यक्ति अपनी
24 अक्तूबर की पोस्ट "अभारव्यक्ति" में ही सादर व्यक्त कर चुका हूँ.
हार्दिक आभार।
*******************************************************************
42 comments:
"ये ज़नता है, सब जानती है, फिर भी कुछ
नहीं कर सकती क्योंकि इस भय भरे वातावरण में सब कुछ उसने स्वीकार
कर लिया है.......... "जय हो जनता जनार्दन की"............."
जन-जागरण करने वाली बढ़िया पोस्ट लगाई है, आपने। बधाई!
जब तक जनता खुद जागरूक होकर मिलावटियों के विरुद्व कदम नहीं उठाती तब तक उसे अन्जाने में चाकलेट उत्पादकों का शिकार बनते रहना पड़ेगा।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
जब तक जनता इन को स्वीकारती रहेगी तब तक सरकार भी कुछ नहीं करेगी मगर विदंवना तो ये है है कि हम सब चोर हो गये हैं और एक दूसरे के साथ इस कारोबार मे जुडे हैं कोई किसी के विरुध इस लिये नहीं बोलता कि उसकी अपनी दाल मे भी किछ न कुछ काला है।व्यापरीवर्ग सारा मिलावटी है तो सरकारी लोग रशवत की मिलावट मे भागीदार हैं फिर बचा कौन है आवाज़ उठाने के लिये। चाहिये तो ये कि मिलावट करने वालोम को चौराहे पर खडा कर गोली मार देनी चाहिये या हाथ पाँव काट देने चाहिये। मगर---- सब लाचार हैं धब्यवाद्
nice
Milawat har jagah vyapt ho chuka hai jo ki bahut hi bura hai aane wale samay me to shudh kuch bhi nahi rahane wala ..isi tarah insaan bhi aaj bhay se bhara hai jise door karane ki jarurat hai..
bahut badhiya likhte hai aap chote chote baton se vicharon ke sagar bhar dete hai..bahut bahut dhanywaad
mann khush ho gaya......kafi vistaar se aapne is failaye gaye bhay par kataksh kiya hai........ise kisi magazine me bhejen
Dhanyawaad Mohan Ji!
kahate he dar ke aage jeet hoti he, kintu fir bhi dar dar he, bhay bhay he..| aapki post laazavaab hoti he/ achha lagaa padhhkar, chetanta dilaati post...
mahtva...aour mahatvheen..chand laaino me badee baat kahne vaali aapki rachnao ka sadev intjaar hota he./ bahut khoob
aapke lekh janta ko jagrook karne ka dum rakhate hain.....aur sach hai ki janta ko hi swayam bhay mukt ho kuchh karna hoga...sarkaar aur punjipati kuchh nahi karenge....bahut sarthak lekh hai....badhai
Pramod Tambat जी की टिपण्णी से सहाम्त हुं, साथ मै यह भी जोडना चाहुंगा कि सरकार के भरोसे सब कुछ छोडने से कुछ नही होगा, क्योकि इन सरकार मै भी आज गुंडे बदमाश बेठे है, जिन की मिली भगत से ही यह सब होता है, इस लिये हमे खुद जागरु होना पडेगा..बहुत सुंदर लिखा आप ने.
धन्यवाद
खुद जाग कर ही अपने लिए कुछ किए जा सकता है बढ़िया पोस्ट लगी यह शुक्रिया
zindagi se judi ye chhoti chhoti bate jiske chapete me aksar hum aa jaate hai bade aasani se aur inhi pahaluo ko badi sundarta se prastut kiya hai aapne ,shastri ji sahi kahe jan -jaagran wali post hai .ati sundar .
सब जानबूझकर अनजान बने है चंद्रमोहन जी
बढिया प्रस्तुति है।आभार।।
aapke lekh man ko choo jaate hain... bahut achchi lagi yeh post.... jaagrook karne wali.....
चिंतनीय विषय और चिंता योग्य भी
चन्द स्वार्थी लोगों के कृत्यों के कारण निरीह भी चपेट मे आ जाते हैं.
जन-जागरण वाली पोस्ट बढ़िया है ।
खुद जागरूक होकर ही अपने लिए
कुछ किए जा सकता है
बधाई !
धन्यवाद
जब तक समाज इसे अपनी नियती मानकर सहता रहेगा तब तक तो सरकार की ओर से भी किसी प्रकार के उचित कदम उठाए जाने की कोई उम्मीद करना बेमानी है....
जनजागरूकता ही इसका एकमात्र हल है....
धन्यवाद इस जागरूक पोस्ट के लिए !!
shukria;
aapne meri gazal ke ek sher ka arth pucha tha;uska matlab zaat aur mazhab ke jhagadon se hai.
aap har baar ek subject par vicharniya soch lekar hazir hote hain .badhai.
इस चिंतन मे जो चिंता शामिल है उसे हम समझ सकते हैं ।
इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार पर ये पब्लिक.....? हे राम....
उपभोक्ता वस्तुओं में मिलावटें और झूट के दम पर व्यवसाय..!..
सच तो यही है की सब जानते हुए भी हम आँख बंद किये बैठे रहते हैं.
विज्ञापनों का मकसद ज्ञान प्रसार से अधिक लाभ कमाना रह गया है.
आप की इस और चिंता जायज़ है.
abhaar.
आदरणीय रूचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी से मैं पूरी तरह सहमत हूँ. सारी नपुंसकता तो हम यानी जनता में ही है. हम ऐसे वातावरण को स्वीकार क्यों कर रहे हैं? गांधी ने नमक बनाकर व्यवस्था के खिलाफ आन्दोलन छेड़ा था ना! हम क्या फिर किसी गाँधी की प्रतीक्षा में हैं? हम खुद क्यों इनके खिलाफ खड़े नहीं होते?
जब बहुमत की राजनीति हो और 100 में से 80 लोग भ्रष्टाचारी हों, तो नियति यही होगी । 20 सही लोगों की आवाज़ 80 लोगों के शौर में दबाने की कवायद चल रही है । आप के इस जागरुकता अभियान के लिए आभार ।
बाजार उत्तरोत्तर सशक्त होता जायेगा, आप उसे कितना दुत्कार लें। मानव के सद्गुण अगर बाजार से पटरी नहीं बिठायेंगे तो अन्तत: अवसादग्रस्त होते जायेंगे।
कृष्ण होते तो बाजार को गोवर्धन की तरह उठाते या मुरली की तरह बजाते। कैसे? यह पता नहीं पर करते जरूर।
देखें, शायद वे आयें।
लोग मिलावट करेंगे तभी तो हमारी जडी बूटियों की पूछ होगी न ,उसमें मिलावट उसका स्वरूप बदल के ही कर सकते हैं ,जड़ ,पत्ती ,तने में तो मिलावट मुश्किल है ,मगर चूर्ण में धडाधड मिलावट यहाँ भी हो रही है ,अश्वगंधा के चूर्ण में मैदा और मुल्तानी मिट्टी मिला कर बेच रही हैं नामी कंपनियाँ
अपनी मेल देखिएगा
ईमानदारी पर धीरे-धीरे बेईमानी भारी हो गई और वह "स्मार्टनेस" के नाम से सबको स्वीकार हो गई है ........... ये बात बिलकुल सोला आने सच है ......... आपकी पुसर बहूत कुछ सोचने पर मजबूर करती है .........
jab tak janta aawaz ek saath milkar nahi uthayegi kuch nahi hoga
" aapki lekhanee ko salam ..her alfaz dil me utar jata hai ..bahut hi badhiya post ..behtarin "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
Chaliye koi to janta-janardan ko jagane ka kam kar raha hai...jagte raho.
हरने पर थी लंका जली, हो गया महाभारत हँसने पर
हरना - हँसना इक संग दिखे , लोकतंत्र उजड़ने पर
....Bahut gahre bhav chhupe hain...sadhuvad.
"Mujhe keal ek hi cheez se bhay lagta hai....
..Bhay se !!"
"हरने पर थी लंका जली, हो गया महाभारत हँसने पर हरना - हँसना इक संग दिखे , लोकतंत्र उजड़ने पर"
chaliye abhi loktrant ujada nahi hai....
to ramayan mahabharat dono ke sangam main abhi der hai...
...waise jab har shaakh pe ullu baitha hai to wo loktantra ujdne hi kyun dega?
jab tak janta aawaz ek saath milkar nahi uthayegi kuch nahi hoga
SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
नकली खोया, नकली दूध, नकली घी.
तभी तो इस दिवाली पर मिठाइयों की बेकद्री हुई.
जनता चाहे तो सबक सिखा सकती है .बस ज़रुरत है तो एक दिशा निर्देशन की.
जन- जागरूकता की एक अच्छी पोस्ट.
... prabhaavashaali abhivyakti !!!
नियमहीन निरंकुश बाजारतंत्र, चमकीली धन-संस्कृति, नैतिकता-हीन द्रुत-लाभ-लिप्सा, और बिकाऊ कानून-व्यवस्था...यह सब मिल कर ही सुलभ कराते है इस लूट-खसोट के लिये आदर्श माहौल..और जब तक अपनी दुम खुद अपने पाँव तले न आ जाये..किसे चिंता है..हमें भी नही!!
आभार इस सामयिक और विचारोत्तेजक तीखी पोस्ट के लिये!!
बहुत ठीक! क्या ढोल की पोल खोली है आपने. भय का कारोबार बहुत संगठित है.
Bahut hi sateek vivechna prastut ki aapne...
apne mahat aalekhon se aise hi sabko jagate rahen...shubhkamnayen...
चन्द्र मोहन जी बहुत ही रोचक , आँखे खोल देने वाली प्रस्तुति है आपकी . आपको बहुत बहुत बधाई .
एक बात और आपको बताना चाहूंगी जब मैंने जीवन विद्या शिविर किया था तब मुझे यह जानकारी मिली थी की "जितना drugs (Heroin) ऐसे लिया जाता है उससे भी ज्यादा cadbaries में मिलाई जाती है ताकि बच्चे उसके आदी बने और उनकी बिक्री हो .एक बात और बच्चे कुरकुरे जो इतनी शौक से खाते हैं उसमे अफीम के साथ ऐसी रसायन का प्रयोग किया जाता है जो जीभ की कलिकाओं को उत्तेजित करती है .cadbaries में Nikil (Ni) भी रहता है जिससे कैंसर होने की सम्भावना होती है .
"इस धरती पर जीना है प्यारे तो संभल कर पांव रख प्यारे...."
जनता को जगाने के लिए फिर गाँधी जी की जरुरत है पर दिक्कत तो यह है भाई की गाँधी जरुर पैदा हो पर दुसरे के घर, यह है आज की सोच .
बहुत सटीक बातें !!! आप की बातों से आपके दिल की चिंता साफ़ दिखाई दे रही है| पर इतना कुच्छ होने पर भी जनता जनार्दन के कानो पर जूं तक नहीं रेंगती!! कम से इन बातों का मिलने वालों से तो मैं अवश्य चर्चा करता हूँ !!!
बढिया प्रस्तुति है।आभार।।
Post a Comment