Monday, 19 October 2009

स्ट्रेस भविष्य और अंत में अभारव्यक्ति

स्ट्रेस (तनाव)
दिल, निंदिया के बाद यदि वर्तमान समय में मनुष्य मस्तिष्क में लगातार बढ़ते "तनाव" (stress) की बात न की जाये तो शायद ठीक न होगा..........
वर्तमान समय में इसे (स्ट्रेस को) एक गंभीर बीमारी के रूप में देखा जा रहा है, तभी तो "स्ट्रेस" से मुक्ति दिलाने, उसके प्रभाव को कम महसूस करने जैसी न जाने कितने विकल्पों की रोजाना दुकाने खुलती जा रही है, "स्ट्रेस मैनेजमेंट", "स्ट्रेस फ्री" जैसे नुस्खे एक "नए उद्योग" के रूप में विकसित हो रहे है, आय के नए स्त्रोत बन रहे हैं. हो सकता है सरकार के लिए ख़ुशी कि बात हो कि चलो रोज़गार के नए क्षेत्र का सृजन हो रहा है तो बेरोज़गारी का तो दबाव काम होगा, पर शायद ये समाज के लिए उसी कोढ़ रूपी त्रासदी की तरह है, जैसे सिगरेट, शराब बिकवा कर सरकार द्वारा टैक्स के रूप में आय प्राप्त करना.

यह सर्व विदित है कि स्ट्रेस (तनाव) के मुख्य कारण निम्न हैं :

* काम का प्रेशर (दबाव)
* निर्धारित टारगेट
* मीटिंग कि डेडलाइन्स
* मीटिंग के सवाल-जवाब
* प्रतिस्पर्धा (कम्पटीशन)
* संबंधों को बनाये रखना (रिलेशन मेन्टेन करना)
* समय पर पहुंचना
* अपेक्षित सहयोग न प्राप्त होना
* अपमानित करने का दूसरों का व्यव्हार
* बच्चों का अपेक्षित परीक्षाफल न लाना आदि-आदि न जाने कितने कारण हैं..............

प्रश्न यह उठता है हम पढ़े लिखे हैं, समझदार हैं, अनपढ़ कबीर का लिखा

धीरे - धीरे रे मना , धीरे सब कुछ होए
माली सींचे सौ घडा, ऋतू आये फल होए

कबीर धीरज के धरे, हाथी मन भर खाए
टूक एक के कारने , स्वान घरे घर जाये

फिकर सभी को खा गई,फ़िकरहि सबका पीर
फ़िकरि का फाका करै , ताका नाम कबीर

चिंता ऐसी डाकिनी , काटि करेजा खाए
बैद बिचारा क्या करै, कहँ तक दवा लगाये

पढ़ा भी है, फिर

* इस मानव जनित बीमारी को लगातार बढ़ने क्यों दे रहे हैं...
* तनाव जैसे कार्यों की अनुमति क्यों दी जाती है?
* सहज हो कर जीना क्यों भूलते जा रहे हैं....
* इसके अस्तित्व को सहज ही क्यों स्वीकारते जा रहे हैं
* निदान के उपायों को क्यों अंगीकार कर रहे हैं आदि-आदि.........

जैसा कि प्रायः होता है हर नयी चीज़ अपने फायदों के लिए लालच देकर थोपी जाती है, फिर वो एक ट्रेंड बन जाता है, और सब जगह वैसा ऐसे ही प्रचलन में आ जाता है, जैसे कुछ भी गलत नहीं.

जब तक प्रभाव सामने आता है, हम सब आदी हो चुके होते हैं, व्यवस्थाओं को बदलने में असहाय स्वयं को महसूस करते हैं, क्योंक विरोध किया तो अपनी कमाऊ नौकरी जायेगी या प्रोफिट कम होगा, दुसरे बाज़ी मार ले जायेगें, और मजबूरन हमें अलहदा-अलहदा खुद को तथाथित प्रचलित हो रहे तथाकथित इलाजों के हवाले करना ही पड़ता है.......

वर्तमान में ज्यादातर इस तरह के उपाय प्रचलन में हैं,......

* योग- मेडिटेशन सेंटर
* प्राणिक हीलिंग सेंटर
* हेल्थ रिसॉर्ट द्वारा स्पेशल रिचार्ज पैकज
* कलर थेरेपी * क्रिस्टल और जेम थेरेपी
* एक्युप्रेशर गैजेट्स * मसाज गैजेट्स
* प्रोडक्ट्स के रूप में खुशबु दार तकिये, फेइगशुई आइटम्स,
* अरोमा थेरेपी और स्पा आदि आदि.......

पर क्या लोग इन उपायों का प्रयोग कर पूर्णतया स्ट्रेस फ्री हो पाते हैं??????????

जब तक हम
* मुठ्ठी भर स्ट्रेस क्रिएट करने वालों को नियंत्रित नहीं करेगें,
* अपने स्वार्थ को छोड़ कर सामान्य रहन-सहन नहीं अपनाएगें,
* मिलजुल कर रहना और दूसरों के लिए जीना नहीं सीखेगें
तब तक शायद ही कोई उपाए, कितना भी पैसा खर्च कर अपना लो, पुर्णतः कारगर नहीं ही होगा,ऐसा ही प्रतीत होता है .

कभी- कभी ऐसा लगता है, हम पढ़-लिख कर भी स्ट्रेस के एक ऐसे मकड़जाल में और भी बुरी तरह उलझते ही जा रहे हैं, जहाँ से निकलना न केवल न-मुमकिन हो गया है, बल्कि असंभव सा भी हो गया है.

इस "स्ट्रेस" रूपी जिन्न को लोगों ने स्वार्थ में बोतल से बहार निकालकर अपने आर्थिक स्तर को भले ही सुदृढ कर लिया हो, पर उसके "भस्मासुर" रूपी रूप को देख समझ कर भी उस जिन्न को वापस बोतल में बंद करने का गुण शायद सीखा ही नहीं था, इसका अहसास भी अब दिखने लगा है. अब तो ये जिन्न सर्वव्यापी से हो गए है. बाहर ही नहीं अब तो घरों में भी प्रवेश कर गए है.....

बच सको तो बचो...........
वर्ना अधेडावस्था में ही मेहनत की सारी कमाई तो ढीली करनी ही पड़ेगी...............

शायद अनुभवी पर अनपढ़ रहे कबीर दास जी की निम्न सीख़

चाह गयी चिंता मिटी , मनुवा बे परवाह
जिनको कछु न चाहिए, सो साहन पति साह

को नज़रन्दाज़ करने की हम पढ़े-लिखे लोगों के लिए यह एक सजा ही तो है..............

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छोटी सी रचना

भविष्य

देखा करते हैं नित ही हम
भविष्य हमारा सुन्दर होगा
करते- करते बस ऐसा ही
जीवन सारा निकला होगा.

"सोचों न भविष्य, कर्म करो"
ऐसा कहना है "गीता" का
वक़्त नहीं होगा किंचित शेष
मीठे फल को तब चखने का

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और अंत में

दीपावली के पर्व पर विभिन्न विशेषज्ञों की राय......

नेत्र रोग विशेषज्ञ द्वारा...

समस्या : पटाखों का धुआं कार्निया पर अटैक कर घाव बना देता है
हिदायत : इससे बचने के लिए सादा चश्मा पहने, ज़लन होने, चोट लगाने पर साफ पानी से धोकर चिकत्सक से संपर्क करना चाहिए.

ह्रदय रोग विशेषज्ञ द्वारा...

समस्या : पटाखे की तेज़ आवाज़ से हार्ट अटैक हो सकता है. पटाखों के धुएं से हवा में आक्सीज़न कम होने से दिल के रोगी की धड़कन भी अनियमित हो सकती है.
हिदायत : कानों में रुई लगा कर रखें, पटाखे छोड़ते समय दूर रहना चाहिए, जहाँ तक संभव हो धुएं से दूर रहे या मास्क पहने

ब्लाग विशेषज्ञ द्वारा :

समस्या : इस अवसर पर लगी पोस्ट पर बेहतर रिस्पोंस नहीं मिलता रचना बेअसर लगती है.
हिदायत : पोस्ट के साथ "दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं" ज़रूर जोडें यह आक्सीज़न का काम करेगी.

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आभारव्यक्ति

मेरी ११ एवं १२ अक्टूबर की पोस्ट पर प्राप्त आप सब की बहुमूल्यवान, सारगर्भित, प्रेणादायक, हौसलाअफजाई परक या आलोचनात्मक टिप्पणियों पर मैं अपनीआभारव्यक्ति अपनी १८ अक्तूबर की पोस्ट "अभारव्यक्ति" में ही सादर व्यक्त कर चुका हूँ.
आपसे विनम्र निवेदन है कि आभारव्यक्ति को पूर्णतः (डिटेल) में देखने के लिए
मेरी १८ अक्तूबर की पिछली पोस्ट भी ज़रूर देखे.
हार्दिक आभार।
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38 comments:

Urmi said...

हमेशा की तरह लाजवाब और शानदार पोस्ट! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

सर्वत एम० said...

स्ट्रेस के अनेक कारण हो सकते हैं लेकिन जो मुझे नजर आते हैं उनमें सबसे बड़ा कारण है ईश्वर पर विश्वास न करके स्वयं को सब कुछ का कारक समझ लेना. दूसरा, अपनी आवश्यकताओं को असीमित कर लेना, तीसरा, वही जो कबीर कह गये हैं...देख पराई चूपड़ी...बन्धु, हर बार की तरह इस बार भी आप शानदार-जानदार रहे.
एक बात समझ नहीं आई--यह १९ तारीख की पोस्ट में पटाखों-धुंआ-पर्यावरण ... क्या अगले वर्ष के लिए अभी से...एक साल पहले चेताया जा रहा है?

नीरज गोस्वामी said...

गुप्ता जी इस प्रेरक पोस्ट के लिए कोटिश धन्यवाद...बहुत लाभपूर्ण जानकारी दी है आपने...साधुवाद

नीरज

gazalkbahane said...

तनाव सदैव बुरा नहीं होता-बस अति सर्वत्र वर्जयेत: का ध्यान रखें।जीवन तनाव बिलकुल उसी तरह ्जरूरी है जैसे कमानी में तनाव कम हुआ तो नाकाम ज्यादा हुआ तो टूटी- यानि बैलेन्स जरूरी है बस-राधे-राधे
श्याम सखा

Prem Farukhabadi said...

बहुत लाभपूर्ण जानकारी दी है बन्धु, हर बार की तरह इस बार भी आप शानदार-जानदार.धन्यवाद!! हार्दिक शुभकामनायें!

gazalkbahane said...

और हां तनाव सदा था-सदा रहेगा -जहं शेर हिरण को पकड़ने के तनाव में है वहीं हिरण बच निकल्ने के तनाव में ,महाभारत के वन पर्व के एक श्लोक का १/४-चिन्ता बहुतर्णि त्रणात: यानि चिन्ता तब भी थी और चिन्ता ही तनाव की जननी है ना

्दीप पर्व आनन्द से मनाएं-तनाव दूर भगाएं

RAJ SINH said...

बहुत अच्छा विश्लेषण .लेकिन कारणों को भीतर से न दूर करें तो बाहरी प्रयास सिर्फ तात्कालिक लाभ ही दे सकते हैं . संतों ने तो सब कह दिया है , हम करना तो दूर सोचते भी कहाँ हैं ?

दीप पर्व की अनंत शुभकामनायें .

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

तनाव तो प्रगतिशील मानव समुदाय का अभिन्न हिस्सा है.
हाँ, नियंत्रण तो हर मोड़ पर आवश्यक है ही.

संत कबीर के प्रासंगिक दोहे के साथ साथ आपने इस पोस्ट में ब्लॉग्गिंग कल्चर पर भी टिपण्णी कर दी.
मेरी नज़र में ब्लोगिंग कोई खेल नहीं है.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

स्ट्रेस की लिस्ट में एक और जोड़ दीजिये चंद्रमोहन जी , ' अपनों द्वारा पैदा किया हुआ स्ट्रेस '
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत शानदार पोस्ट.बहुत कुछ सीखा, दूसरों को भी पढाया. दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी सेल्फ मोटीवेटिव . प्रेरक पोस्ट है आपका बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनायें

राज भाटिय़ा said...

स्ट्रेस (तनाव) मुझे तो लगता है जब हम एक ही छलांग मै सब कुछ पाना चाहते है, तभी यह रोग भी लगता है,ओर इस का ईलाज कोई नही बस एक ही ईलाज है जो कबीर जी ने बताया...

धीरे - धीरे रे मना , धीरे सब कुछ होए
माली सींचे सौ घडा, ऋतू आये फल होए
ओर फ़िर इस तानव का लाभ भी तो बताया है कबीर जी ने...

चिंता ऐसी डाकिनी , काटि करेजा खाए
बैद बिचारा क्या करै, कहँ तक दवा लगाये
तो जनाब जितना है उस मै गुजारा करना सीखॆ, बस ओर लम्बा जीये
धन्यवाद आज की इस सुंदर पोस्ट के लिये
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

अमिताभ श्रीवास्तव said...

aav, isakaa bhi he ki ham ye tanaav door kese kare???
bahut achhi post he/dekhiye mera mananaa he ki jisake paas dimaag hoga, yaani mastishk hoga use tanaav hogaa hi/ jo jyada sochata-manan kartaa he vo apane hi vicharo me tanavgrast ho jataa he/ ye tanaav kai prakaar ke hote he/ isakaa ilaaz lagbhag nahi ho sakataa, fir bhi ham koshish kar sakte he/ aour aapne bakhoobi se isase bachane ke upaay diye he/

मनोज भारती said...

तनाव पर एक सुंदर पोस्ट !

आटे में नमक सदृश तनाव अच्छा होता है, जो जीवन को गति देता है आदमी को क्रियाशील बनाता है, आलस्य नहीं आने देता और जीवन को दिशा देने में कारगर होता है । लेकिन इसकी बढ़ी हुई मात्रा गलत जीवन शैली का परिणाम है ;कबीर जी के मत से -

रात गंवाई सोइ के, दिवस गंवाया खाय
हीरा जन्म अमोल सा, कौड़ी बदले जाय ।।

इस जीवन में संतुलन लाना जरुरी है ।

दिगम्बर नासवा said...

तनाव तो आजकल रोजमर्रा की बात है ........... कोई भी आज की आधुनिक दोड़ में तनावमुक्त नहीं रह सकता ........ सुन्दर पोस्ट है आपकी ........ तनाव मुक्ति के उपाय और भी बहुत से हैं ..........

डॉ टी एस दराल said...

स्ट्रेस मनेजमेंट की अच्छी जानकारी.
दिवाली पर पटाखों का विरोध अच्छा असर छोड़ कर गया.
मुहीम कामयाब रही. आभार

mark rai said...

* इस मानव जनित बीमारी को लगातार बढ़ने क्यों दे रहे हैं...
* तनाव जैसे कार्यों की अनुमति क्यों दी जाती है?
* सहज हो कर जीना क्यों भूलते जा रहे हैं....
* इसके अस्तित्व को सहज ही क्यों स्वीकारते जा रहे हैं
* निदान के उपायों को क्यों अंगीकार कर रहे हैं.....

बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई....
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.

हरकीरत ' हीर' said...

तनाव पर आपकी पोस्ट तो लाजवाब है ही टिप्पणियाँ भी लाजवाब हैं ....आपका ये दोहों के माध्यम विश्लेषण करना अर्थ दे जाता है .....!!

"सोचों न भविष्य, कर्म करो" .....इसी एक पंक्ति में सारा सार है ....!!

विनोद कुमार पांडेय said...

आपकी पोस्ट सुंदर भावनाओं के साथ साथ सुंदर संदेश भी पिरोती है...बहुत बढ़िया लिखा है आपने..आज के भाग दौड़ के जिंदगी में स्ट्रेस तो आम हो गया है..लोगो को पूर्ण नींद लेना अति आवश्यक है....धन्यवाद

Abhishek Ojha said...

सब पढ़कर भी क्या लाभ? कबीर बाबा तभी कह गए थे और हम आज तक वैसे के वैसे ही रह गए !

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

यह कहने में तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि चिन्ता ही समस्त दुखों की जड़ है, यदि हम चिन्ता से मुक्त हो जाय तो दुख हमारे नजदीक फटक भी नहीं सकता। लेकिन इस से मुक्ति का तो एकमात्र हल सिर्फ चिन्तन ही है । जहाँ चिन्तन् प्रारंभ हुआ नहीं कि समझिए चिन्ता दूर भागने लगेगी....

बढिया प्रेरक पोस्ट के लिए आभार्!!!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

deri se aane ke liye maafi chahta hoon sabse pehle.... darasal bahut tagda viral ho gaya tha........ to aaj din bhar khoob soya hoon.... dawa kha ke.... thoda stress bhi ho gaya tha.... par aapki yeh post dekhne ke baad kaafi kuch jaanne ko mila.... aur seekha bhi.... ek bahut hi badhiya aur prerak post hai yeh..... abhi stress se baaahar hoon..... itni achchi post ke liye badhai sweekar karen.........

Rajeysha said...

Comments ki kami nahi aai, Badhai!

सदा said...

बहुत ही अच्‍छी बातों का संयोजन है साथ ही कबीर के दोहे जिन्‍होंने इसे और भी जीवंत किया, आभार ।

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह...Wah..

Creative Manch said...

आज जिंदगी में स्ट्रेस तो आम हो गया है..लोगो को पूर्ण नींद लेना अति आवश्यक है

बहुत अच्छा विश्लेषण
शानदार पोस्ट!


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क्रियेटिव मंच

शरद कोकास said...

मैने कबीर का प्रयोग कई जगह देखा है लेकिन इस तरह स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिये यह पहली बार देखा । बधाई और मन की प्रसन्नता के लिये दुआयें ।

Mumukshh Ki Rachanain said...

Suman जी की टिपण्णी जैसा कि ई-मेल पर प्राप्त हुई.

धीरे - धीरे रे मना , धीरे सब कुछ होए
माली सींचे सौ घडा, ऋतू आये फल होए

nice

varun anand said...

शानदार पोस्ट!

रंजू भाटिया said...

आज कल तनाव ज़िन्दगी का हिस्सा बन गया है बचपने से शुरू होता है और फिर ता उम्र हमसफर सा साथ चलता है आपकी यह पोस्ट बहुत पसंद आई मुझे शुक्रिया

ज्योति सिंह said...

फिकर सभी को खा गई,फ़िकरहि सबका पीर
फ़िकरि का फाका करै , ताका नाम कबीर


चिंता ऐसी डाकिनी , काटि करेजा खाए
बैद बिचारा क्या करै, कहँ तक दवा लगाये
saari baate is dohe ne spasht kar di .saath hi aatishbazi se hone wale nuksan se kaise bache ,wo upaye bhi laabhkaari hai .bahut khoob .

कडुवासच said...

.....behad prabhaavashaali.

manu said...

sunder likhaa hai mumukkshee ji..
badhaai..

Murari Pareek said...

भाई !! टेंसन अगर कम करना है तो देल कार्नेगी के अनुसार आज की परिधि में जियो ! कल की चिंता मत करो हाँ कल के लिए प्रोग्राम जरुर बनाओ पर चिंतित न हो ! कई बार टेंसन छोटे मोटे काम न करने पर भी हो जाती है इसलिए पहले अपने काम निपटाओ | कई बार स्थिति ऐसी आ जाती है की अगर कोई अटका हुआ सौदा, काम, या फिर ऐसा कोई कार्य जिसके करने बहुत घाटा हो सकता है और ना करने से टेंशन बना रहता है , तो घाटा, या नुकशान को स्वीएकर कर लेना चाहिए ! टेंशन से निजात मिलेगी तो मस्तिष्क काम करना शुरू करेगा !!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

क्यों जिएँ हम इतने तनाव में
बस चलना छोड़ दें दो नाव में

SACCHAI said...

" bahut hi acchi post ...jankari se bhari is post ke liye aapko hamari aur se badhai "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

लता 'हया' said...

aapko bhi dipawali ki shubhkamnayein.
ye post intresting to hai hi lekin aapne dohe phir se smaran karwa diye isliye ek baar phi se shukria.

लता 'हया' said...

aapko bhi dipawali ki shubhkamnayein.
ye post intresting to hai hi lekin aapne dohe phir se smaran karwa diye isliye ek baar phi se shukria.