दिल की पाती....
हे मेरे आवरण रूपी शरीर, मैं तेरे ही अन्दर बैठा तेरे हर कृत्यों का सहज अनुभव अनवरत आत्मसात करता रहता हूँ, मुझसे तेरा जाने- अनजाने किया कुछ भी नहीं छिपा है. तेरे दिखाने के और खाने के दाँतों से भलीभांति परिचित हूँ. तेरे हास्य में रुदन और रुदन में हास्य को भी भली भांति पढ़ लेता हूँ. मैं छोटा-सा ज़रूर हूँ, पर तेरे इस शरीर के लिए बहुत ज़रूरी हूँ. मेरे से ही तू और तेरा अहम् है, मैं नहीं तो कुछ भी नहीं....
तू आज इतना पढ़ लिख कर भी जितना कष्ट मुझे दे रहा है, उतना तो गुज़रे ज़माने के तुम्हारे अनपढ़ से पुरखों ने भी मुझे न दिया. बहुत तरक्की कर ली तूने, चाँद में भी पानी खोज लिया, पर तूने अपने उस पानी का क्या किया जिसके लिए रहीम ने कुछ यूँ कहा था........
हे मेरे आवरण रूपी शरीर, मैं तेरे ही अन्दर बैठा तेरे हर कृत्यों का सहज अनुभव अनवरत आत्मसात करता रहता हूँ, मुझसे तेरा जाने- अनजाने किया कुछ भी नहीं छिपा है. तेरे दिखाने के और खाने के दाँतों से भलीभांति परिचित हूँ. तेरे हास्य में रुदन और रुदन में हास्य को भी भली भांति पढ़ लेता हूँ. मैं छोटा-सा ज़रूर हूँ, पर तेरे इस शरीर के लिए बहुत ज़रूरी हूँ. मेरे से ही तू और तेरा अहम् है, मैं नहीं तो कुछ भी नहीं....
तू आज इतना पढ़ लिख कर भी जितना कष्ट मुझे दे रहा है, उतना तो गुज़रे ज़माने के तुम्हारे अनपढ़ से पुरखों ने भी मुझे न दिया. बहुत तरक्की कर ली तूने, चाँद में भी पानी खोज लिया, पर तूने अपने उस पानी का क्या किया जिसके लिए रहीम ने कुछ यूँ कहा था........
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरे , मोती , मानुष , चून
तू तरक्की करता हुआ खुद को दिखाता है, प्रचारित करता है, अपने पैसे के दम से खुद को शक्तिशाली और वैभवशाली दिखाता है, पर क्या तू जानता है कि तेरा कोई इन्सान कुछ बिगाड़ पाए या न पाए पर तेरी
* तथाकथित उन्नत हरकते,
* तेरे तथाकथित उन्नत रहन-सहन,
* तेरी तथाकथित उन्नत सोंच
तेरे अन्दर बसे इस महत्वपूर्ण छोटे से, मासूम से, नाज़ुक से, प्यारे से, दिल पर क्या कहर ढा रहीं हैं.....
क्या तू जानता है कि लोग तो पहले दिल दिया करते थे, लेने की अभिलाषा तो थी ही नहीं, पर जैसे-जैसे तेरे विकास कि यात्रा प्रारंभ होती गयी, उम्रदराज लोगों के दिल पर "अटैक" (हार्ट अटैक) होने लगे, प्रगति और बढ़ी इसने अपने असर युवाओं पर भी दिखाने शुरू कर दिए, प्रगति और बढती गयी, अब छोटे बच्चे भी इसके कहर से अछूते नहीं रहे, उनकी इस बीमारी को शायद आपके डाक्टर मित्र लोग "रयुमेटिक हार्ट डिजीज" कहते हैं.
तूने परेशान व्यथित हो पैसे के दम पर अपने डाक्टर मित्रों से इस कमज़ोर होती मेरी काया के बारे में जानने का यत्न किया तो उन्हों ने भी जैसा किताबों में पढ़ा, समझा, वैसे कारण बता दिए। यथा... १. स्पीडी लाइफ में अक्सर कालेस्ट्राल युक्त भोजन का सेवन करना,
तू तरक्की करता हुआ खुद को दिखाता है, प्रचारित करता है, अपने पैसे के दम से खुद को शक्तिशाली और वैभवशाली दिखाता है, पर क्या तू जानता है कि तेरा कोई इन्सान कुछ बिगाड़ पाए या न पाए पर तेरी
* तथाकथित उन्नत हरकते,
* तेरे तथाकथित उन्नत रहन-सहन,
* तेरी तथाकथित उन्नत सोंच
तेरे अन्दर बसे इस महत्वपूर्ण छोटे से, मासूम से, नाज़ुक से, प्यारे से, दिल पर क्या कहर ढा रहीं हैं.....
क्या तू जानता है कि लोग तो पहले दिल दिया करते थे, लेने की अभिलाषा तो थी ही नहीं, पर जैसे-जैसे तेरे विकास कि यात्रा प्रारंभ होती गयी, उम्रदराज लोगों के दिल पर "अटैक" (हार्ट अटैक) होने लगे, प्रगति और बढ़ी इसने अपने असर युवाओं पर भी दिखाने शुरू कर दिए, प्रगति और बढती गयी, अब छोटे बच्चे भी इसके कहर से अछूते नहीं रहे, उनकी इस बीमारी को शायद आपके डाक्टर मित्र लोग "रयुमेटिक हार्ट डिजीज" कहते हैं.
तूने परेशान व्यथित हो पैसे के दम पर अपने डाक्टर मित्रों से इस कमज़ोर होती मेरी काया के बारे में जानने का यत्न किया तो उन्हों ने भी जैसा किताबों में पढ़ा, समझा, वैसे कारण बता दिए। यथा... १. स्पीडी लाइफ में अक्सर कालेस्ट्राल युक्त भोजन का सेवन करना,
२. फिजिकल एक्सरसाइज़ न करना
३. जर्दा, पान मसाले और स्मोकिंग की आदतें
४. तनाव
५. जनेटिक अर्थात पूर्वजों से प्राप्त
पर हे मेरे आवरण, अपनी बुद्धि पर से तो आवरण हटा कर कुछ सोंच...
१. स्पीडी लाइफ के लिए कौन जिम्मेदार है, अपने बुद्धि और पैसे की ताकत का प्रयोग जीवन के लाइफ स्टाइल को सहज बनाए रखने के लिए क्यों नहीं करता, वस्तुतः जीवन सहज तो है ही आपको उसे असहज बनाने के कारणों को हटाने का यत्न करना होगा।
२. नफा-नुकसान, लिखा-पढ़ी जैसे अनुत्पादक कर्मों में कम उलझ कर शारीरिक मेहनत भी कर प्रकृति में कुछ उत्पादक योगदान भी दे, यही तो वास्तविक फिजिकल एक्सरसाइज़ है।
३. जर्दा पान मसाले स्मोकिंग तो पूर्वज भी प्रयोग करते थे पर यथोचित मात्रा में पूर्ण मेहनत करते हुए और गुणवत्तायुक्त. अब हम इसके आदी और गुणवत्ता भी हम निर्धारित करने में सक्षम नहीं, विज्ञापनों के सहारे चल रहे हैं, स्टैण्डर्ड के हिसाब से. यदि शरीर में सहज जीवन, उचित खानपान से रोग प्रतिरोधक शक्ति है तो ये यथोचित और गुणवत्तायुक्त भी हमारा अधिक कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
४. तनाव भी किसलिए...सबकुछ तो है, (तरक्की है तो इसका मतलब यही निकलता है.) ....., क्या थोडा सा और पाने के लिए.............अरे भाई तेरे पूर्वज तो कर्जे पर कर्जा लेकर भी तनाव रहित ही रहे, तनाव रहित रहने का प्रयत्न भी खुद ही करना होगा, और दूसरों के लिए भी तनाव का कारण न बनों, ये उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है....
५. जनेटिक, भाई ये बीमारी तो पूर्वजों में थी ही कंहाँ............न जाने कब से जनेटिक हो गई.......शायद जनेटिक भी इसे हमी ने बनाया....
में उपरोक्त "पाती" बहुत संकोच से लिख रहा हूँ, क्योंकि जानता हूँ कि तुम्हारा अहम् इसे स्वीकार न करेगा, क्योंकि
* तुम्हें डाक्टर की फीस चुकाना मंजूर है,
* मंहगी दवाएं खाना मंजूर है,
* बाई पास सर्जरी कारवां मंज़ूर है
* अपना स्टैण्डर्ड दिखाना पसंद है
पर हरक़त से बाज़ आना मंजूर नहीं......"जियो और जीने दो", "पसीने की कमाई का मोल", कब आखिर कब समझ में आएगा?
अंततः मैं तो यही कहूँगा कि समझ-समझ के भी जो न समझे............... और वो मुझे दिन- दूनी रात चौगनी गति से कमज़ोर और असहाय होता ही पायेगा...........थोडा लिखा, बहुत समझना.........
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में उपरोक्त "पाती" बहुत संकोच से लिख रहा हूँ, क्योंकि जानता हूँ कि तुम्हारा अहम् इसे स्वीकार न करेगा, क्योंकि
* तुम्हें डाक्टर की फीस चुकाना मंजूर है,
* मंहगी दवाएं खाना मंजूर है,
* बाई पास सर्जरी कारवां मंज़ूर है
* अपना स्टैण्डर्ड दिखाना पसंद है
पर हरक़त से बाज़ आना मंजूर नहीं......"जियो और जीने दो", "पसीने की कमाई का मोल", कब आखिर कब समझ में आएगा?
अंततः मैं तो यही कहूँगा कि समझ-समझ के भी जो न समझे............... और वो मुझे दिन- दूनी रात चौगनी गति से कमज़ोर और असहाय होता ही पायेगा...........थोडा लिखा, बहुत समझना.........
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एक छोटी सी रचना
"विद्रोही"
दिए गयें हैं विद्रोही को
"विद्रोही"
दिए गयें हैं विद्रोही को
सदा से ही बस दो रूप
इक समझे इन्हें ग़द्दार
दूजा देश-भक्त अनुरूप
********************************************************************** और अंत में
आज के लिए एक प्रश्नवाचक अधूरा चुटकला जो पूरा तब बनेगा जब अगले अंक में उसका उत्तर आएगा, तब तक आप इसे पढ़ कर अपने उत्तर से अवगत कराएं, हो सकता है आपका उत्तर ही चुटकले में उत्तर के रूप में हो....
+++++++++++++
पहले का प्रश्न: यार कमरे में सभी खिड़की, दरवाजे और रोशनदान वगैरह अच्छी तरह बंद कर एसी चालू रख निंदिया के बिस्तर में आने की प्रतीक्षा की, फिर भी ससुरी निंदिया आई ही नहीं, आखिर क्यों.....?
+++++++++++++++
अभी तो आपका उत्तर..................प्रतीक्षित है.
"दूसरे" का उत्तर अगली पोस्ट में.......
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आभारव्यक्ति
आज के लिए एक प्रश्नवाचक अधूरा चुटकला जो पूरा तब बनेगा जब अगले अंक में उसका उत्तर आएगा, तब तक आप इसे पढ़ कर अपने उत्तर से अवगत कराएं, हो सकता है आपका उत्तर ही चुटकले में उत्तर के रूप में हो....
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पहले का प्रश्न: यार कमरे में सभी खिड़की, दरवाजे और रोशनदान वगैरह अच्छी तरह बंद कर एसी चालू रख निंदिया के बिस्तर में आने की प्रतीक्षा की, फिर भी ससुरी निंदिया आई ही नहीं, आखिर क्यों.....?
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अभी तो आपका उत्तर..................प्रतीक्षित है.
"दूसरे" का उत्तर अगली पोस्ट में.......
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आभारव्यक्ति
मेरी २८ सितम्बर की पोस्ट पर प्राप्त आप सब की बहुमूल्यवान, सारगर्भित, प्रेणादायक, हौसलाअफजाई परक या आलोचनात्मक टिप्पणियों पर मैं अपनी आभारव्यक्ति अपनी ४ अक्तूबर की पोस्ट "अभारव्यक्ति" में ही सादर व्यक्त कर चुका हूँ.
आपसे विनम्र निवेदन है कि आभारव्यक्ति को पूर्णतः (डिटेल) में देखने के लिए मेरी ४ अक्तूबर की पिछली पोस्ट भी ज़रूर देखे.
हार्दिक आभार।
आपसे विनम्र निवेदन है कि आभारव्यक्ति को पूर्णतः (डिटेल) में देखने के लिए मेरी ४ अक्तूबर की पिछली पोस्ट भी ज़रूर देखे.
हार्दिक आभार।
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50 comments:
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरे , मोती , मानुष , चून.nice
Gupta ji
Aap ki baat se shatpratishat sehmat hoon...kaash log aapki baat maan len aur sukh poorvak jiyen...lekin aesa hota nahin . Aaj ki bhaga daudi vali zindagi men sukoon ki talash kiikar ke ped se aam paane wali baat hogi.Aap bahut achchha likhne lage hain...likhte rahiye aur meri badhaaii sweekar kijiye...
neeraj
बेहद अभिनव पाती पठायी है आपने ! याद आ गया J.D. Ratcliff का लिखा निबंध 'I am John's Heart.'
रोचक शैली में लिखी प्रविष्टि । आभार ।
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! आपकी लेखनी को सलाम!
Dear Mr. Gupta,
Am on move therfore could not mail you in Hindi, Please excuse me.
A True evaluation of our time and Diminshing Moral Values of Society.
Will go through in detail shortly.
Your's
Mukesh Kumar Tiwari
दिए गयें हैं विद्रोही को
सदा से ही बस दो रूप
इक समझे इन्हें ग़द्दार
दूजा देश-भक्त अनुरूप
बहुत बढ़िया !!
बढ़िया पोस्ट जब तक मन में शान्ति नहीं नींद आखिर कैसे आएगी जी ..कमरे की शान्ति के साथ साथ मन की शान्ति और तनाव रहित होना सोने के लिए जरुरी है ..शुक्रिया
चंद्रमोहन जी!
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रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरे , मोती , मानुष , चून.....
बहुत बढ़िया ...
आलेख में व्यक्त की गयी चिंता आज की नियति है.
"यदि शरीर में सहज जीवन, उचित खानपान से रोग प्रतिरोधक शक्ति है तो ये यथोचित और गुणवत्तायुक्त भी हमारा अधिक कुछ नहीं बिगाड़ सकते।"
इसीलिए तो मैं आप सभी को मूसली अश्वगंधा खाने पर जोर देतीहूँ ताकि प्रतिरोधक क्षमता बढे
आत्मा की सच्ची वेदना प्रस्तुत की आपने
साधुवाद
दिए गयें हैं विद्रोही को
सदा से ही बस दो रूप
इक समझे इन्हें ग़द्दार
दूजा देश-भक्त अनुरूप
waah,sahi kaha
rahim ji ke dohe .char line ki kavita aur saath me shaandar rachana sab milkar is post ko laazwaab bana diye .aapko kahane ki jaroort nahi main aapke blog pe brabar nayi rachana ke aane ki khabar leti rahati hoon .aap to waise hi mere blog par shaandar comment de jate hai .abhi kuchh dino se nahi dekhi waqt mile to aayega .
रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरे,मोती,मानुष,चून ।।
अति सुन्दर्! सम्पूर्ण पोस्ट ही बहुत बढिया बन पडी है ।
आपने इस आलेख में जिस ओर इशारा किया है.....यहाँ बहुत से ऎसे भी लोग हैं जो इसे समझकर भी नासमझ बने रहने में ही अपना बढप्पन समझते हैं ।
यह पोस्ट पढ़कर बहुत हीं अच्छा लगा । आभार
बहुत सहजता से आपने सच्चाई को उकेरा है। अपने आप में एक अलग ढ़ंग का पोस्ट। बधाई एवं शुभकामना।
आप के लेख से सहमत है जी, बाकी निदिया अपने घर पर आराम से सॊ रही होगी, या फ़िर आप से नाराज होगी?
Zindagi itni tez daud rahi hai ki sharir ya swasthya ke bare me hum tabhi sochte hain jab bimar pad jate hain.Is pravriti se bachne ki jarurat hai.
मेरे आवरण रूपी शरीर, मैं तेरे ही अन्दर बैठा तेरे हर कृत्यों का सहज अनुभव अनवरत आत्मसात करता रहता हूँ, मुझसे तेरा जाने- अनजाने किया कुछ भी नहीं छिपा है....
मेरे से ही तू और तेरा अहम् है, मैं नहीं तो कुछ भी नहीं....
गुज़रे ज़माने के तुम्हारे अनपढ़ से पुरखों ने भी मुझे न दिया. बहुत तरक्की कर ली तूने, चाँद में भी पानी खोज लिया, पर तूने अपने उस पानी का क्या किया ...
पहले दिल दिया करते थे, लेने की अभिलाषा तो थी ही नहीं, पर जैसे-जैसे तेरे विकास कि यात्रा प्रारंभ होती गयी, उम्रदराज लोगों के दिल पर "अटैक" (हार्ट अटैक) होने लगे
.....
तुम्हें डाक्टर की फीस चुकाना मंजूर है,
* मंहगी दवाएं खाना मंजूर है,
* बाई पास सर्जरी कारवां मंज़ूर है
* अपना स्टैण्डर्ड दिखाना पसंद है
पर हरक़त से बाज़ आना मंजूर नहीं......"
मैथिलीशरण गुप्त जी कुछ पंक्तियाँ याद आ गई .......
प्रभु ने तुमको कर दान दिए
सब वंचित वास्तु विधान किये
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है किसका दोष कहो ......!!
जनाब खिड़की, दरवाजे और रोशनदान खुले रखते तो ही ससुरी निंदिया आती न ....???
एक खूबसूरत पोस्ट !!! जिसमें शरीर रूपी आवरण को बिगाड़ने के कारकों पर आपने बहुत सुंदर लिखा है !!! भाषा काव्यमयी हो गई है और जटिल चीजों को भी सरल बना गई है ।
हरकिरत जी ने बहुत सुंदरता से लिख दिया है ।
यूं तो आपने निंदिया लाने के सारे बाह्य उपाय किए हैं, पर निंदिया रानी को लाने के लिए बाहर के उपायों से ज्यादा अंदर के उपायों की जरुरत होती है ; कोशिश से वह कभी नहीं आती !!! सब कोशिश छोड़ दीजिए और नीष्चेष्ठ लेट जाइए और स्थिति को स्वीकार कर लीजिए ।
कवि, गजलकार, गीतकार, दोहाकार,भक्ति रस, देश भक्ति रस, वीर रस, करुण रस, हास्य रस, गध और अब दार्शनिक. चन्द्रमोहन जी आपके रूप अनेक हैं, रंग अनेक हैं, छटाएं विभिन्न हैं, आपकी मेहनत, लेख लिखना पोस्ट करना, सबको मेल करना, फिर आभारव्यक्ति. हर नाम को अलग रंग देना, कितनी महिमा बखानी जाये, ऐसा कम से कम मेरे बस का तो नहीं.
एक बात जोड़ूँगा, मेरी नहीं है, कहीं पढ़ी थी।
सदियों से भुखमरी और अकाल झेलते भारतीयों के जीन ने अपने को उसी अनुसार ढाल लिया था। पिछले कई वर्षों से वह स्थिति अब नहीं रही। लेकिन जेनेटिक परिवर्तन होने में समय लगता है। इस आगा पीछा के कारण यह झमेला हुआ है। रही सही कसर आधुनिक जीवन शैली ने पूरी कर दी है। ...
देखिए आने वाले समय में क्या होता है !
यदि शरीर में सहज जीवन, उचित खानपान से रोग प्रतिरोधक शक्ति है तो ये यथोचित और गुणवत्तायुक्त भी हमारा अधिक कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
aisa banaye rakhne ke liye pratidin kuch samay to prakriti hit me dena hi hoga.
Gupta ji,
Vidrohi aisei hi hote hai kisi ko vidroh karana achcha nahi lagata par kya kare jab pani sir se paar hone lage to karana padata hai aise me yah kisi ke liye achcha kaam aur kisi ke liye vidrih ban jata hai..
aur ek baat mai kahana chaunga ki baat baaton ko badi sahajata se kah jate hai....dhanywaad..aap likhate hai mujhe pdhana achca lagata hai...badhayi..sundar vicharon ke liye
pahla sukh nirogi kaya
magar manta kaun hai ........sab apni marzi karte hain ya kaho aaj ki jeevan shaily hi aisi ho gayi hai .......bahut hi sarthak lekh likha hai aapne...........kash kuch jagriti ho jaye.
बहुत ही उम्दा प्रविष्टि. धीर-गम्भीर...
निंदिया आये कहां से सारे दरवाज़े-खिडकियां जो बन्द हैं...
दिल की बात ---आपने एक लेमेन की दृष्टि से बहुत ही रोचक और असरदार तरीके से रखी है.
डॉक्टरों की बात तो लोग कम ही सुनते हैं.
उम्मीद करता हूँ , आपकी बात लोगों तक अवश्य पहुँचेगी.
नींद आने के लिए शारीरिक परिश्रम और मानसिक तनावमुक्ति की आवश्यकता होती है.
वर्ना नींद की गोलियां तो हैं ही.
बहुत अच्छा पाठ...आभार.
खिड़की, दरवाजे, रोशनदान सब बंद हैं, निदिया किस रास्ते आवे?
क्या तू जानता है कि लोग तो पहले दिल दिया करते थे, लेने की अभिलाषा तो थी ही नहीं, पर जैसे-जैसे तेरे विकास कि यात्रा प्रारंभ होती गयी, उम्रदराज लोगों के दिल पर "अटैक" (हार्ट अटैक) होने लगे, प्रगति और बढ़ी इसने अपने असर युवाओं पर भी दिखाने शुरू कर दिए, प्रगति और बढती गयी, अब छोटे बच्चे भी इसके कहर से अछूते नहीं रहे, उनकी इस बीमारी को शायद आपके डाक्टर मित्र लोग "रयुमेटिक हार्ट डिजीज" कहते हैं.
bahut achcha taunt kiya hai aapne....... main aapke is lekh se poori tarah se sahmat hoon...... poori post bahut badhiya lagi.....
Namaskar mukesh ji
apka email address aur "follow" nahi dikh raha hai.
दिल बहलाने को गालिब ये खयाल अच्छा है -
" aapke is andaz aur behad khubasurat mudde ke liye aapko badhai .."
"मेरे आवरण रूपी शरीर, मैं तेरे ही अन्दर बैठा तेरे हर कृत्यों का सहज अनुभव अनवरत आत्मसात करता रहता हूँ, मुझसे तेरा जाने- अनजाने किया कुछ भी नहीं छिपा है....
मेरे से ही तू और तेरा अहम् है, मैं नहीं तो कुछ भी नहीं.."
" bilkul hi sahi kaha hai aapne ..."
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
http://hindimasti4u.blogspot.com
"दिए गयें हैं विद्रोही को
सदा से ही बस दो रूप
इक समझे इन्हें ग़द्दार
दूजा देश-भक्त अनुरूप"
बहुत बढ़िया पोस्ट रही।
सुधरे हुए लेखन के लिए बधाई!
बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजोयी लाजवाब प्रस्तुति ।
दिल की पाती में बहुत कुछ कह दिया गया है ..
इस पाती में जो सन्देश निहित हैं उनका उद्देश्य मानव का भला करना use samjhana ही तो है..देखें अब भी मानव संभलता है कि नहीं..?
-आप के चुटकुले का क्या जवाब होगा..शायद यह कि निंदिया चांदनी के साथ खिड़की से ही तो आसमान से उतरती है अब वही बंद है तो कहाँ से आएगी?
gupta ji ;
deri se aane ke liye maafi chahunga ..
aapki post padhkar bahut der tak main chupchap baitha raha . aapki post me sukh ke jo raaste bataye hai wo wakai me swarg ke dwar hai ..
bahut dino ke baad itna accha padhne ko mila .
meri badhai sweekar kare..
dhanywad
vijay
www.poemofvijay.blogspot.com
सहजता लिये सुन्दर प्रविष्टि,बधाई
दिए गयें हैं विद्रोही को
सदा से ही बस दो रूप
इक समझे इन्हें ग़द्दार
दूजा देश-भक्त अनुरूप.....
sach kaha apna apna nazariya hai ..... par kuch swaarti log apna nazariya badalte bhi rahte hain ...
2-3 दिन नेट से दूर रही इस लिये देर से आपकी रचना पढ पाई हूँ। एक यथार्थ जो कि आज के जीवन से जुडा है । और फिर भी कोई सुनने को तयार नहीं भागम भाग की दुनिया मे ।कि लेखक को ये कहना पडे
में उपरोक्त "पाती" बहुत संकोच से लिख रहा हूँ, क्योंकि जानता हूँ कि तुम्हारा अहम् इसे स्वीकार न करेगा, क्योंकि
बिलकुल सही संकोच है । अहं इतना हावी हो चुका है कि अच्छी बात कोई सुनना ही नहीं चाहता।
रचना प्रेरक है बहुत बहुत धन्यवाद
दिए गयें हैं विद्रोही को
सदा से ही बस दो रूप
इक समझे इन्हें ग़द्दार
दूजा देश-भक्त अनुरूप
सुन्दर
बहुत ही सीखपरक पोस्ट लिखी है आपने. जारी रहें. शुभकामनाएं.
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हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
Aapka tariqa bilkul sahi hai Ji!!
bahut badhiyaa likhaa hai.
Are wah Dil ne apna dard bahut achchese samazaya hai. Nindiya nahee aayee kyun ki bindiya kho gaee thee.
बहुत सुन्दर बात कही चन्द्र मोहन जी, सचमुच उन्नति करता मनुष्य अपनी ही उन्नति नहीं कर पा रहा है ! चाँद पर चला गया पर अंतर्मन में ना गया | गहरी सोच !! रही बात नींद की तो नींद कहाँ आएगी आँखों में नींद के लिए जगह बना ! मन में नींद को तलाश कर बाहर से नहीं आएगी अन्दर झाँक नींद कोने में पड़ी सिसक रही है !!
aapka lekh bahu upyogi, amoolya. aabhaar.
बात कहने के इस सलीके से एक लोकोक्ति याद आ रही है-बातहिं हाथी पाइये, बातहिं हाथी पांव. बहुत अच्छी ढंग से आपने बात को कहा हैं. रोचक और एक सांस में पढे जाने वाली रचना. आभारव्यक्ति पर कहना चाहता था लेकिन आपने होठों पर प्यार से उंगली ही रख दी.
आपका यह वामहस्तगत व्यंग्य गहरे तक काट जाता है..सब की सच्चाई यही है
..और प्रश्न के जवाब मे..कॉल्बेल ठीक नही कराया होगा आपने..बेचारी निंदिया ने रात भर दर्वाजे पर रात काटी होगी..और आप अंदर बन्द. ;-)
apoorvaji ne thika hi kahaa he\
bahut badhhiya likhate he aap, isame do raay nahi\ kalam esi hi chalti rahe, meri duaaye hei/
दिल दिल से कह रहा है.
बहुत सुन्दर भाव .
व्यवहार में ध्यान रखने योग्य .
बहुत तरक्की कर ली तूने, चाँद में भी पानी खोज लिया, पर तूने अपने उस पानी का क्या
बेहतरीन ढंग से आपने संत्रास को व्यक्त किया है.
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