मैं बचपन से ही स्वान्तः-सुखाय प्रवृत्ति का रहा हूँ. परीक्षाओं में ज्यादा अंक लाने से ज्यादा महत्त्व मूलभूत ज्ञान को दिया.
इलाहबाद (प्रयाग) शहर का होने के कारण बचपन से ही साहित्य की ओर झुकाव रहा. जब मैं इंजीनियरिंग के अन्तिम वर्ष में था तो उस समय हमने अपने कुछ सहयोगियों( श्री अजामिल जी, प्रदीप सौरभ जी, दिनेश मिश्रा जी आदि) के साथ भारत का प्रथम बाल समाचार पत्र "नन्हें-मुन्नों का अख़बार" प्रकाशित किया था.
बचपन से आज तक समय-बेसमय कुछ न कुछ लिखता ही रहा, पर ज्यादातर स्वान्तः-सुखाय ही. पांडुलिपियाँ धीरे -धीरे ब्लोग्स पर अवतरित हो रहीं हैं.
इलेक्ट्रिकल मैन्टेनेन्स में होने के कारण आने और महसूस होने वाली दिक्कतों को मद्देनजर रखते हुए मह्तातों के बेहतर कैरियर के लिए कई किताबे भी बिना धन-लाभ की अभिलाषा के स्वान्तः-सुखाय ही लिखी.
यूनिवर्सिटी लेवल एवं राज्य स्तर किकेट प्रतियोगिताओं में भी भाग लिया. हिंडाल्को क्रिकेट टीम का कई वर्षों तक सदस्य रहा.
बायोकेमिक एवं बैच-फ्लावर चिकत्सा पद्धिति में भी कुछ जानकारी हासिल कर सकने की भी हिमाकत की है.
सम्प्रति शेयर मार्केट पर ट्रेडिंग से सम्बंधित एक पुस्तक लिखने में व्यस्त हूँ.
2 comments:
हो सहज ज़रा प्रकृति तो निहारें
बिखेरती स्फूर्ति जो संजोग के सहारे
हो श्रद्धानत सीखोगे जीना संयम से
लगेगा जीवन बाधा रहित हो गया है
"true thoughts"
bahut achhe vichaar hai...
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