Tuesday, 1 July 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(३७)
भ्रष्टाचारी -दम्भी के अट्टाहस का
हुआ सदा है एक न एक दिन नाश
दे यातना कितना भी जल्लादों-सा
आहों ने ही इनका किया विनाश
गौर तनिक रावण वध पर फरमाएं
पशु-पक्षी ही क्यों राम सखा कहाए
श्रद्धा से दे अपना सामर्थ्य इन्होनें ही
था रचा असंभव से सम्भव का इतिहास

2 comments:

E-Guru Maya said...

उचित शीर्षक व सार्थक कविता.

Alpana Verma said...

bahut achcha laga aap ka blog--achchee kavitayen hain--

thoda katheen lag rahi hain ...

[aap ka comment ranju ji ke blog par padha..bahut bahut dhnywaad ki aap ko meri awaz pasand aaayee aur meri awaz ki tareef ki--tahe dil se shukrgzar hun--dhnywaad