श्रद्धा
(४०)
"घटना" सिर्फ़ हादसों का होना ही होता है
अन्य जिसे न्यून,भुक्तभोगी बड़ासमझता है
लगती जुड़ने ज्यों-ज्यों स्वार्थी संवेदनाएं
"घटना" का तभी तो विकृत रूप उभरता है
अन्यथा असमय मौत में समा जाती है
बददुवाओं की हवाओं में बदल जाती है
श्रद्धानत बेफिक्र, रमे बस सेवा भावों में
हर "घटना" को प्रभु-प्रसाद समझता है
2 comments:
अन्यथा असमय मौत में समा जाती है
बददुवाओं की हवाओं में बदल जाती है
"bhut shee, jeevan ka ek sach"
is samaaj ki sachhi tasveer kheech di aapne.....
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