Tuesday, 8 July 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(३८)
है जुड़ा हर कर्म आज फायदे से
फायदा भी क्या, बस पैसा मिलना चाहिए
है अपेक्षा दूसरों से संस्कार, तहजीब की
ख़ुद का कैसे भी काम निकलना चाहिए
स्वार्थ से आदमी चालाक हो गया है
संस्कारित लगता है नालायक हो गया है
थे बुद्ध पढ़े-लिखे, पर ज्ञान कब मिला
श्रद्धा मिलते ही अज्ञान निकलना चाहिए

1 comment:

seema gupta said...

है अपेक्षा दूसरों से संस्कार, तहजीब की
ख़ुद का कैसे भी काम निकलना चाहिए
"very true and near to life"