Saturday, 20 June 2009

श्रद्धा

सर्वप्रथम आप सभी से विगत एक माह की खिचीं दूरियों की क्षमा याचना। व्यक्तिगत अति-व्यस्तता के कारण ब्लॉग जगत से पूर्णतः ही कटा रहा। न ही किसी को टिप्पणी भेज सका न ही ब्लॉग जगत पर कुछ भी लिख पढ़ सका। कारण ..................

आज पुनः ब्लॉग जगत पर अवतरित तो हुआ तो सोंचा क्यों न श्रद्धा के तहत पचपनवीं कड़ी ही प्रस्तुत की जाए सो , प्रभु के नाम से ही सही ........

श्रद्धा
(५५)
प्रभू तुम्हारी संरचनाओं को
है कितना आहात किया हमीं ने
रह कर शांत-शिथिल से मानव को
क्यों अंहकार दिया तुम्ही ने
चढ़ कर सर अज्ञान रहा है खेल
कुछ की करनी को , सब रहे झेल
अपना कर प्रकृति -संग "श्रद्धा" से
अनजाने पाया अमन सभी ने

26 comments:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

प्रभू तुम्हारी संरचनाओं को
है कितना आहात किया हमीं ने
रह कर शांत-शिथिल से मानव को
क्यों अंहकार दिया तुम्ही ने

उत्कृ्ष्ट भाव....... बहुत ही बढिया रचना.......
आभार।

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

डॉ. मनोज मिश्र said...

अपना कर प्रकृति -संग "श्रद्धा" से
अनजाने पाया अमन सभी ने ..
भाव पूर्ण .

अमिताभ श्रीवास्तव said...

देर आयद?, दुरुस्त आयद.
व्यस्तताये होती ही इसिलिये है कि हम बन्धे रहे. खैर, श्रद्धा की 55 वी कडी, हरबार की तरह स्मर्णीय है../
लिखते रहिये तो 'श्रद्धा'को बल मिलेगा.

सर्वत एम० said...

प्रिय भई चन्द्रमोहन, श्रद्धा ५५ अपनी पिछली कड़ियों की तरह अपनी परम्परा का निर्वहन करने में सफल रही. आप से पिछली बार मैंने क्षमा याचना की थी, मेल पर भी संदेश दिया था लेकिन लगता है आप जरूरत से ज्यादा नाराज़ हैं. मैं बता चुका हूँ की मेरी व्यस्तताएं जो मेरी रोजी-रोटी से जुडी हैं, मुझे ज्यादा समय नहीं निकालने देतीं, अपने लिए. नाराजगी दूर कर लीजिये और हम फिर बात-चीत करेंगे. आज आप ब्लॉग पर आये, अच्छा लगा .

दिगम्बर नासवा said...

सचमुच...ये अंहकार भी तो प्रभू का दिया हुवा है.............. सुन्दर लिखा है

कडुवासच said...

... यहां पहुंच कर हर समय कुछ न कुछ अवश्य प्राप्त होता है, प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!!

दर्पण साह said...

सब रहे झेल अपना कर प्रकृति -संग "श्रद्धा" से अनजाने पाया अमन सभी ने...

sundar rachna ...
ab tak 55 !!
:)

Ram Shiv Murti Yadav said...

आपकी अद्भुत सृजनशीलता का कायल हूँ....वाकई आपकी रचना तमाम रंग बिखेरती है...साधुवाद.***
"यदुकुल" पर आपका स्वागत है....

शोभना चौरे said...

shrdhha ke liye shrdhha .

mark rai said...

प्रभू तुम्हारी संरचनाओं को
है कितना आहात किया हमीं ने
रह कर शांत-शिथिल से मानव को
क्यों अंहकार दिया तुम्ही ने ......
kya baat kahi janaab ahankaar ko to dur karna hi padega.....

नीरज गोस्वामी said...

बहुत खूब गुप्ता जी...आपका लेखन विलक्षण है...
नीरज

अभिषेक मिश्र said...

चढ़ कर सर अज्ञान रहा है खेल
कुछ की करनी को , सब रहे झेल

Bilkul sahi kaha hai aapne.

daanish said...

पावन श्रद्धा से भरपूर ....
मन की गहराई से कही गयी ....
सुन्दर अभिव्यक्ती .

---मुफलिस---

Prem Farukhabadi said...

भाव पूर्ण उम्दा रचना .

sandhyagupta said...

Chaliye der aaye par durust aaye.

राज भाटिय़ा said...

लाजवाब, बहुत सुंदर ओर उत्कृ्ष्ट भाव लिये आप की यह रचना.
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे

Abhishek Ojha said...

बहुत खूब ! स्वागत है फिर से वैसे तो पिछले कई पोस्ट बचे हैं आपके पढने को :)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

नपे-तुले शब्दों में,
सच्ची बात कह दी है,
गुप्ता जी आपने।

Sajal Ehsaas said...

vaapasi mubarak ho..

Gyan Dutt Pandey said...

सुन्दर। विनम्रता और अहंकार - दोनो उनकी देन हैं।

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah gupt ji wah

मुकेश कुमार तिवारी said...

चंद्रमोहन जी,

प्रकृति से जोड़ता हुआ पद्य हमें हमारे कर्तव्यों की सीख देता है।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

हरकीरत ' हीर' said...

चन्द्र मोहन जी ,

दर्द से मुझे भी कोई शिकायत नहीं ...मैं दर्द की नज्में लिखती हूँ क्योकि दर्द मुझे पसंद है ...इसका मतलब ये नहीं कि मैं hansti बोलती नहीं हूँ ...आपने कई जगह मेरे कमेंट्स देखे होंगें विनोद से भरे होते हैं ....और फिर ये नज्में स्त्री पर हो रहे अत्याचारों को भी दर्शाती हैं ...inme सिर्फ दर्द का rona नहीं है ....आप जिस तरह प्रभु से जुड़े हैं मैं दर्द से जुडी हूँ ...क्या करूँ बचपन का साथी है ....!

प्रदीप मानोरिया said...

चढ़ कर सर अज्ञान रहा है खेल
कुछ की करनी को , सब रहे झेल
बहुत सुन्दर शानदार रचना
बधाई

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

"प्रभू तुम्हारी संरचनाओं को
है कितना आहात किया हमीं ने
रह कर शांत-शिथिल से मानव को
क्यों अंहकार दिया तुम्ही ने"
बहुत ही बढिया रचना.......रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....