Friday, 4 April 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(३३)
अच्छा दिखाने कि ख्वाहिश सबकी
फिर, झूँठ ज़हन में क्यों आते हैं
शायद अन्दर डर है या फिर वे
इच्छाओं का सागर अपनाते हैं
प्रयास सदा चींटी भी करती है
पर झूंठ-ग़लत कर्मों से रह दूर
ज्यों श्रद्धा में डूबे कर्मवीर को सब
पर्याय"प्रयास" का ही बतलाते हैं

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