Thursday 30 June, 2011

प्राकृतिक गंगा का आर्थिक युग में होता हुआ हश्र


* अभी करीब एक माह पूर्व अपने देश भारत को विश्व बैंक से करीब साढ़े चार हज़ार करोड़ का क़र्ज़ "गंगा को प्रदुषण मुक्त" करने के लिए दिया गया है.
* सोचने की बात है कि हमारे कितने राजनीतिज्ञों और सरकारी हुक्मरानों नें कितना प्रयास किया होगा यह सिद्ध करने के लिए " हे विश्व बैंक! हमारी गंगा कितनी मैली हो गयी है" .
* विश्व बैंक भी समझ गया होगा कि "इंडियंस" इतने काबिल नहीं कि वे अपनी "गंगा मदर" को भी पवित्र और साफ सुथरा "अपने दम" पर रख सकें. सो, इस आर्थिक युग में, जहाँ यह समझा जाता है कि सारे काम "पैसे के दम" पर हो जाते हैं, "क़र्ज़ का झुनझुना" विश्व बैंक ने हमारे हुक्मरानों के गिडगिडाने पर अंततः पकड़ा ही दिया.
* भ्रष्टाचार विरोधियों को यह क़र्ज़ भ्रष्टाचार कि गंगोत्री नज़र आने लगी है २-जी स्पेक्ट्रम घोटाले कि तरह......
* सनद रहे कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के कार्यकाल में १९८४ में "स्वच्छ गंगा अभियान" के तहत "केंद्रीय गंगा प्राधिकरण" बना और उसके सहनशाहों के तत्वाधान में १९८५ में "गंगा कार्य योजना" प्रारंभ भी कि गयी थी. आज २६ वर्ष बाद भी करोड़ों रुपये खर्च दिखाकर भी गंगा को और भी बुरी तरह प्रदूषित होने से न बचा सके और अपने दम से हताश हो विश्व बैंक के दम कि गुजारिश कर उठे.....
* सब समझदार हैं.....और सब समझते हैं कि इस क़र्ज़ का भी हश्र क्या होगा...... आने वाले समय में ठेके मिलने कि उम्मीद रखने वाले, ठेके देने वाले सब खुश, बाकि नाखुश.....

खैर.... उपरोक्त को नज़रंदाज़ करते हुए मुझे निम्न मुद्दे उठाने है.......
१. क्या प्राकृतिक उद्गम वाली सालों साल से प्रवाहित हो रही प्राकृतिक पवत्र गंगा ठहरे हुए पानी कि तरह प्रदूषित हो सकती है?
२. क्या कभी इस बात कि रिसर्च कि गयी कि गंगोत्री से निकलकर हुगली नदी में परिवर्तित हो कर बंगाल कि खाड़ी में सहित होने वाली प्राकृतिक पवित्र गंगा में प्रदुषण का स्तर हर एक किलोमीटर पर कितना है?
३. क्या क्रमशः बढ़ते प्रदुषण स्तर के आधार पर गंगा मैली करने वाले कारकों का अध्धयन किया गया, यदि किया गया तो कारकों को समाप्त करने के क्या उपक्रम किये गए.....
४. "रुट काज एनालिसिस" के आधार पर गंगा को प्रदूषित करने में सर्वाधिक कारण "प्रशासन क़ी नीतियों और उसके आधे-अधूरे कार्यान्वयन" का ही आएगा . उद्योग धंधें भी कमतर नहीं आंके जा सकते. उपरोक्त के मद्देनज़र प्रशासनिक विफलता के चलते और प्रदूषित करने वालों पर भरी भरकम जुर्माना लगाने के बजाये ईमानदार देशवासियों पर क़र्ज़ का बोझ डालना क्या उचित है?
५. प्रदुषण निवारण के बजाये, प्रदूषित करने के कारकों पर रोक क्यों नहीं लगाई जाती?
६. आज हर कंपनी अपनी बैलेंस शीट में करोड़ों का मुनाफा दिखने में अपनी तरक्की समझती है, पर गंगा मैली न होने पाए इसके लिए तनिक भी प्रयास नहीं किये जाते.... यदि यही गर्व है तो "शर्म" शब्द को शब्दकोष से क्या नहीं हटा देना चाहिए?

9 comments:

Rajeysha said...

दरअसल सरकारी बातों को छोड़कर गंगा के कि‍नारे रहने वाले लोगों की बात करें तो सच के ज्‍यादा करीब पहुंचेंगे। यदि‍ गंगा केवल कवि‍ताओं, शब्‍दों में ही, फि‍ल्‍मी डायलाग्‍स में ही मां नहीं रह गई होती तो उसका ये हश्र ना होता। क्‍या मां की ऐसी दुगर्ति‍ की जाती है, कलुष पावनी गंगा को ही कलुषि‍त करने वाले उसके कि‍नारे बसे उसके करोड़ों बेटे ही नहीं हैं? यदि‍ आपके घर केसामने कोई कचरा फेंक जाये तो आप मोहल्‍ला सि‍र पर उठा लेते हैं पर गंगा में हजारों स्रोतों से गंदगी आ समाती है...तो कि‍नारे रहने वाले, रोज चुल्‍लू भर जल पीने और देवताओं को अर्ध्‍य देने वाले उसके बेटे... ये कैसे बर्दाश्‍त कर लेते हैं ? केवल एक नि‍गमांनंद ही क्‍यों आगे आता है ? दरअसल ऐसे काम सरकारें या समाज नहीं वो गांधी करते हैं जो गलि‍यों की गंदी नालि‍यां साफ करने के लि‍ये झाड़ू लेकर नि‍कल पड़ते हैं। और अब देश में कोई गांधी बचा है क्‍या ?

Mumukshh Ki Rachanain said...

राज्ये जी,
आपकी प्रतिक्रिया बेहद दुरुस्त है....
गाँधी तो सिर्फ और सिर्फ एक था, जिसके वस्त्र समय के साथ देश के अंतिम आदमी की व्यथा को देखते हुए उतारते ही गए, जबकि आज के दौर में उनके नाम से पार्टिया वोट भी मांगती हैं, खुद को गाँधीवादी भी कहती हैं, पर नीतियाँ एक भी नहीं अमल में लाती...
प्रगति की परिभाषा भी विपरीत ढाल ली है....

Mumukshh Ki Rachanain said...

राज्ये जी,
आपकी निम्न बात
"यदि‍ आपके घर केसामने कोई कचरा फेंक जाये तो आप मोहल्‍ला सि‍र पर उठा लेते हैं पर गंगा में हजारों स्रोतों से गंदगी आ समाती है...तो कि‍नारे रहने वाले, रोज चुल्‍लू भर जल पीने और देवताओं को अर्ध्‍य देने वाले उसके बेटे... ये कैसे बर्दाश्‍त कर लेते हैं ?"
पर मेरे विचार कुछ यूँ हैं....
हिंसक विरोध पर कोर्ट के चक्कर लगाते-लगाते इन्सान का जीना भी सरकारी तंत्र दुश्वार कर देता है, और गाँधीवादी तरीका अपनाओ तो हश्र भी स्वामी निगमानंद या बाबा रामदेव सा ही तो होता है...................

प्रवीण पाण्डेय said...

सामयिक लेख, गंगा को शुद्ध रखना होगा।

डॉ टी एस दराल said...

गंगा को दूषित करने में सभी का दोष है । लेकिन साफ करने के लिए जो दृढ इच्छा शक्ति चाहिए , वह नज़र नहीं आती । क़र्ज़ का क्या हस्र होगा , यह तो सब जानते हैं ।
अब तो कुदरत भी साथ छोड़ रही है । जल्दी ही वो समय आने वाला है जब गंगा जल भी मेड इन चाइना होगा ।

राज भाटिय़ा said...

चोरो को खजाने की रखबाली दी हे तो यही हाल होगा

Satish Saxena said...

काम शैतानों के करके दिल मेरा अब भर गया !
अब तो यारो कसम से, इंसान होना चाहता हूँ !

teriliyejindagi.blogspt.com said...

Bahut badiya......

teriliyejindagi.blogspt.com said...

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