Tuesday, 12 April 2011

भ्रष्टाचार, अन्ना हजारे का अनशन, विवाद, उवाच, खुद पर भरोसा

विगत कुछ दिनों में मैंने फेसबुक पर कुछ विचार डाले थे, उन्हें ही समग्र रूप से इकठ्ठा कर यहाँ पेश करने की जुर्रत कर रहा हूँ, समर्थन करें न करें, समांलोचना तो अपेक्षित ही है.....

क्या भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया ..................

by Chandra Mohan Gupta on Sunday, April 10, 2011 at 10:35am
अन्ना हजारे का अनशन समाप्त. लोगो को ख़ुशी हुई कि लोकतंत्र पुनः जीता. क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीतने से ज्यादा ख़ुशी शायद अब महसूस की लोगों ने , ऐसा समाचार पत्रों, टीवी से साफ झलकाया जा रहा है, खैर हमें ख़ुशी नहीं............ क्योंकि
१. यदि आप अधिसूचना पर गौर करे तो यह भ्रष्टाचार की जाँच के लिए है न कि भ्रष्टाचार न होने देने के लिए.
२. अपने देश में पहले से ही बहुत से कानून हैं, पर ईमानदारी से अनुपालना जब आज तक न हो पाई तो आगे भी होगी इसकी क्या गारंटी.......
३. मूल मुद्दा हमारे अनुशासनात्मक पतन का है, येन केन प्रकारेण संपत्ति अर्जित करने की लालसा का है. कानून का सालों साल उपहास करने का है और इस दौरान भी कानून तोड़ने के सरे उपक्रम वैसे ही चालू रहते है............
४.भ्रष्टाचार तो मात्र एक आर्थिक अपराध है जो लालसा से पनपता है और पैसे के जोर से कानून के साथ खिलवाड़ करने की शक्ति प्रदान करता है, जिसमे सहभागी भी तो कानून की रक्षा करने वाले ही तो होते है, चाहे जिस भी कारण से, कुल मिला कर न अनुशासन की पालना है, न देश भक्ति का जलवा. शायद यह सत्याग्रही विजय भी कुछ सालों में एक भ्रम से ज्यादा कुछ भी नहीं प्रतीत होगी, क्यूंकि बदला कुछ भी नहीं है............
५. मूल मुद्ददा इच्छा - शक्ति का है, ईमानदारी से राष्ट्र हित में कानून की अनुपालना का है, स्व- अनुशासन का है, राष्ट्र-भक्ति का है. दूध का दूध और पानी का पानी करने का है..........
६. गौर करें हमारे चारो तरफ सहज रूप से जो होना चाहिए था, क्या वह हो रह है.....और उसे प्राप्त करने के लिए कितने दिखावे- आडम्बर किये जा रहे है............
जय भारत- जय भारती.
ईमान से तो कर आरती


हम जितने कानून बनाते जाते हैं, वह यही दिखाते हैं कि हम उतने ही ज्यादा बेईमान होते जा रहे है.
ईमानदार के लिए चुल्लू भर पानी भी डूब मरने के लिए काफी होता है,
बेईमान के लिए लाखों -टनों पानी भी कुछ नहीं बिगाड़ पाता...
कैसा भी कानून लगाओ, बेईमान मुस्कराता है.... और उसकी भंगिमा कहती है ..... जय बोलो बेईमान क़ी..........


अनशन ख़त्म , विवाद उत्पन्न

by Chandra Mohan Gupta on Monday, April 11, 2011 at 1:08pm

अभी-अभी बहुत समय नहीं हुआ अन्ना हजारे का अनशन ख़त्म हुए, विवाद उत्पन्न,
१. एकही परिवार के दो सदस्य (शांति भूषण और प्रशांत भूषण) क्यूँ ?
२. विधेयक तय करने वाली समिति में किरण बेदी का नाम क्यूँ नहीं?
३. स्वामी अग्निवेश कौन हैं, बहुत कम लोगों को पता, पर समारोह में छाये से दिखे...
४. युआ के मुख्या प्रवक्ता बन कर अब तक जो राहुल बाबा उछल कूद कर रहे थे, वही हजारे के अनशन के दौरान उनके समर्थन में जब युवा सडकों पर उतर आये तो ये तथाकथित युवा नेता / प्रवक्ता महोदय कहीं पर कुछ भी कहते / करते नज़र न आये...
५. जन - जन का प्रतिनाधित्व यदि हजारे जी कर रहे थे तो हमारे संवैधानिक जनप्रतिनिधि, प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल, संसद किसका प्रतिनिधित्व करते है?
कुल मिला कर जो करना चाहिए उसे छोड़ कर बाकि सब बातों में सबको उलझाने की फिर एक और मुहिम.... देखना है "ढ़ाक के तीन पात" यह फिर कब साबित होता है.............
गधे को कितना भी रंगों, घोडा नहीं हो जाता, कुछ समय के लिए भ्रम भले ही अच्छा लगे........




"खुद पर भरोसा कब आएगा कि हाँ जनहित में मैं यह कर सकता हूँ"

by Chandra Mohan Gupta on Tuesday, April 12, 2011 at 10:04am

आप कह सकते हैं कि मैं उम्मीद का दुश्मन हूँ, पर मुझे इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मैं जनता हूँ कि मैं गाँधी की नीतियों का समर्थक हूँ और भ्रष्ट व्यवस्था और भ्रष्ट-जीवन का घुर विरोधी हूँ.
गाँधी जी ने सात ऐसे ही पापों से देश के कर्णधारों और नागरिकों को बचने की सलाह दी थी, जो भ्रष्ट व्यवस्था और भ्रष्ट-जीवन को संबल प्रदान कराती है....

१. सिद्धांत-विहीन राजनीति,
२. श्रम-विहीन संपत्ति ,
३. विवेक-विहीन भोग-विलास,
४. चरित्र विहीन शिक्षा,
५. नैतिकता -विहीन व्यापर,
६. मानवीयता -विहीन विज्ञानं,
७. त्याग-विहीन पूज़ा

सच को यदि स्वीकारने की क्षमता है तो हर कोई इस बात से इत्तेफाक रखेगा कि हममें से अधिकांश इन्हीं पापों से भरे हुयें हैं.
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* निदान इन पापों से ईमानदारी से विमुख होने में है, मज़बूरी के बहाने से बेहतर राष्ट्र हित/ समाजहित में अपनी जान न्योछावर करने में में है...
* पिछले चौसठ सालों में अपने ही देश के तथाकथित अधिकांश नेताओं ने गाँधी के आदर्शों का परित्याग कर इन्ही पाप-कर्मों से अपनी सात पुश्तों क़ी सुविधाओं का बंदोबस्त ही तो किया है ..... गाँधी को सूली पर (दीवार पर फोटो-फ्रेम रूप में) टांग कर
* आर्थिक प्रगति को उन्नति का पैमाना बना दिया, सदाचार, नैतिकता, आदर्श, संस्कार क़ी कीमत पर.....
* गरीब के नाम पर उधार ले कर बनी योजनाओं से जिनके चहरे ख़ुशी से खिल उठते हैं उनमें कमीशन खोर, मोटी कमाई क़ी आकांक्षा रखने वाले ठेकेदार ही तो होते है, किसी को देश के कर्जों से कोई सरोकार नहीं..........

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अभी अन्ना हजारे जी के अनशन समाप्ति के बाद "जन लोकपाल बिल समिति" के गठन हुए जुमा-जुमा चार दिन भी नहीं बीते ....
कुमारस्वामी उवाच : आज अगर गाँधी भी होते तो वे भी भ्रष्ट होते.....
कपिल सिब्बल उवाच : लोकपाल बिल से कुछ नहीं होगा ......
सलमान खुर्शीद उवाच : लोकपाल बिल से कुछ नहीं बदलेगा....
प्रकाश सिंह बदल उवाच : लोकपाल बिल से कुछ नहीं बदलेगा.... जरुरत सख्त कानून क़ी.

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* भाई कुमारस्वामी निःस्वार्थ समाजसेवी बन कर तो देखो......ज्ञान प्राप्त हो जायेगा.....
* भाई कपिल जी, क़ानूनी बहस पर इत्ती ज़ज्दी फैसला नहीं, करने पर भी तो कुछ ध्यान दो, थोड़ी सी हिम्मत तो दिखाओ भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध लड़ने क़ी, जनता खुद ब खुद आपके साथ हो लेगी.....
यदि विश्वास नहीं तो कहे को गाहे - बगाहे समिति में शामिल हो गए तभी नकार दिए होते.....
* भाई सलमान खुर्शीद जी आप भी तो समिति में है, ऐसे इरादों के साथ कैसे आपसे जनता रहनुमाई क़ी आशा रख सकती है, शर्म.. शर्म.... अपने देश के राष्ट्र कवि "दिनकर" ने कहा था
नर हो न निराश करो मन को,
कुछ कम करो, कुछ कम करो
यदि नहीं कर सकते, बेहतर है, कुर्सी छोड़ दो..........
* प्रकाश बादल जी देश में कानून तो पहले से ही बहुत हैं, एक भी ईमानदारी से लागू किया गया होता तो आज ये नौबत नहीं आती, कानून के नाम पर या तो आप नेता लोग जनता क़ी आँखों में धुल झोकते आये हो, या फिर आपको अपने ही बनाये कानून पर भरोसा नहीं... "खुद पर भरोसा कब आएगा कि हाँ जनहित में मैं यह कर सकता हूँ"

जय भारत, जय भारती.

9 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

गुप्त जी,
सबसे पहली बात आपकी पोस्ट का इंतज़ार रहता है.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

मूल मुद्ददा:
मुद्दा हमारे अनुशासनात्मक पतन का है, येन केन प्रकारेण संपत्ति अर्जित करने की लालसा का है. कानून का सालों साल उपहास करने का है और इस दौरान भी कानून तोड़ने के सरे उपक्रम वैसे ही चालू रहते है.
मुद्ददा इच्छा - शक्ति का है, ईमानदारी से राष्ट्र हित में कानून की अनुपालना का है, स्व- अनुशासन का है, राष्ट्र-भक्ति का है. दूध का दूध और पानी का पानी करने का है...

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आपका चिंतन सार्थक है और दिशा देने वाला है.
"खुद पर भरोसा कब आएगा कि हाँ जनहित में मैं यह कर सकता हूँ"
मैं स्वयं ऐसे मुद्दों पर कार्यशील हूँ.

फिर मिलते हैं जल्द ही.

प्रवीण पाण्डेय said...

आपके विचार निसन्देह मन आन्दोलित करते हैं।

डॉ टी एस दराल said...

चन्द्र मोहन जी , वापसी पर स्वागत है । आपको भूले नहीं , इंतजार रहता है ।
हालाँकि यहाँ ब्लोगिंग अभी मंदी के दौर से गुजर रही है ।

आपके विचार सत्य को दर्शा रहे हैं ।
हालाँकि यह एक शुरुआत ही है । अच्छी बात यह है की किसी ने तो भ्रष्टाचार के मुद्दे को जनता में उछाला । वर्ना सब स्वीकार कर बैठ गए थे ।
दूसरी बात यह कि सिर्फ नेता ही नहीं बल्कि हर वो शक्श जो पैसे के लिए मरता है , कुकर्म करता है , काला धंधा करता है --वह देश का , इंसानियत का दुश्मन है ।
ऐसे लोगों को पकड़ना ही चाहिए और यदि सही सजा दे पाए तो समझेंगे कि प्रयास सफल हुआ ।

Rajeysha said...

जब तक प्रत्‍येक आदमी अपने को भ्रष्‍ट होने से नहीं बचायेगा कोई भी संस्‍था चाहे वह राजनीति‍क हो, कानूनी हो, सामाजि‍क हो या आर्थि‍क... समाज को साफ सुथरा नहीं बना सकती।

दिगम्बर नासवा said...

Saarthak chintan hai aapka ... apne aap se kadam uthaane mein hi yeh parivartan sambhav hai ...

Mumukshh Ki Rachanain said...

Comment of Neeraj ji as received over my E-Mail :

"ईमानदार के लिए चुल्लू भर पानी भी डूब मरने के लिए काफी होता है,
बेईमान के लिए लाखों -टनों पानी भी कुछ नहीं बिगाड़ पाता..."


जय हो गुप्ता जी...कितनी सच्ची और अच्छी बात कह गए हैं आप...जब तक हम खुद को ईमानदार नहीं बनायेंगे कोई कानून या बिल हमारा कुछ नहीं कर पायेगा...हमें ही बदलना होगा या फिर जो भ्रस्त हैं उन्हें बदलने की हिम्मत जुटानी होगी...क्रांति बिना हिम्मत के घटित नहीं होती.


नीरज

निर्मला कपिला said...

अपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ। एक एक बात का चिन्तन परक विस्शलेशण। धन्यवाद।खुद पर भरोसा तो शायद भगवान को भी नही होता तभी तो वो इन्सान को परख कर देखता है इस लिये इसान से कोई उमीद करना मुश्किल है अन्ना बेचारे तो तो केवल मोहरा हैं जबकि पीछे कोई और शक्तियाँ हैं। धन्यवाद।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

समग्र चिंतन। सार्थक लेख।