बन "याचक" जो डटा रहा , "गुरु ज्ञान" वह पाता है
चाहा जिसने जले-भुने, लगा "आग" छुप जाता है
"अनुभव" जिसने सिखा दिया, वही आज संग अपने है
बाकी सब तो "बिसर" गया , करे याद ना आता है
सोना जितना "तपा" हुआ, "खरा" आज वह उतना है
समझा जिसने इसे नहीं, वही बाद पछताता है
जितना जिसको कमी लगे, उसे "आस" उतना भाता है
करने "लोलुभ", विज्ञापनी चका- चौंध मचवाता है
हालत ऐसी बनी "मुमुक्षु", सभी बात अब सुनता है
पा "अपनापन" सभी अभी, "समां" बांध गुण गाता है
चाहा जिसने जले-भुने, लगा "आग" छुप जाता है
"अनुभव" जिसने सिखा दिया, वही आज संग अपने है
बाकी सब तो "बिसर" गया , करे याद ना आता है
सोना जितना "तपा" हुआ, "खरा" आज वह उतना है
समझा जिसने इसे नहीं, वही बाद पछताता है
जितना जिसको कमी लगे, उसे "आस" उतना भाता है
करने "लोलुभ", विज्ञापनी चका- चौंध मचवाता है
हालत ऐसी बनी "मुमुक्षु", सभी बात अब सुनता है
पा "अपनापन" सभी अभी, "समां" बांध गुण गाता है
26 comments:
सटीक बातें कहीं हैं ...शुभकामनायें
बन "याचक" जो डटा रहा , "गुरु ज्ञान" वह पाता है
सही कहा । ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रभु की शरण में ही जाना पड़ता है ।
सोना जितना "तपा" हुआ, "खरा" आज वह उतना है
कष्ट पाकर ही आदमी का व्यक्तित्त्व निखरता है ।
बहुत सुन्दर अल्फाज़ ।
सहमत है जी आप की कविता से
सत्य दर्शन। बहुत बहुत बधाई।
बन "याचक" जो डटा रहा , "गुरु ज्ञान" वह पाता है
बहुत सुन्दर. बहुत दिनों के बाद दिखाई दिये हैं आप. अब नियमित पोस्ट पढवाएंगे न?
वाह मुमुक्षु जी...बेहतरीन, आजकल जरा कम लिखा जा रहा है??
सुन्दर शिक्षा है जीवन की, आपकी पंक्तियों में।
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बन "याचक" जो डटा रहा , "गुरु ज्ञान" वह पाता है
lovely lines ..
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... behatreen bhaav ... adbhut !!!
सोना जितना "तपा" हुआ, "खरा" आज वह उतना है
समझा जिसने इसे नहीं, वही बाद पछताता है।
..वाह!
बन "याचक" जो डटा रहा , "गुरु ज्ञान" वह पाता है
behatrin ...saty kaha hai aapne
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
गुप्ता जी अरसे बाद आपको ब्लॉग जगत में देख कर हमारे हर्ष का पारावार नहीं रहा.बहुत अच्छा लगा आपको लौटते देख कर उम्मीद करते हैं के अबकी बाद यूँ भाग नहीं जायेंगे और ब्लॉग जगत में ढटे रहेंगे...
आपकी रचना बहुत समसामयिक और प्रेरक है...लिखते रहें...
नीरज
सोना जितना "तपा" हुआ, "खरा" आज वह उतना है
समझा जिसने इसे नहीं, वही बाद पछताता है ..
बहुत खूबसूरत ,,, बहुत ही लाजवाब रचना है ... सत्य बयानी है ...
भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें! गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें!
बहुत सुन्दर!
संक्षिप्त में ही आपने गूढ़ विषयों का जिक्र कर दिया. चन्द्रमोहन जी आप ब्लॉग पर लिखना जारी रखें.
सोना जितना "तपा" हुआ, "खरा" आज वह उतना है
समझा जिसने इसे नहीं, वही बाद पछताता है
Bahut khoob !
बन "याचक" जो डटा रहा , "गुरु ज्ञान" वह पाता है
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बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं...बेहद उम्दा!
चन्द्रमोहन जी, बहुत दिनों बाद वापसी हुई...प्रयास कीजिए कि अब नियमित रहा जाए..क्यों कि आपको पढने का भी अपना ही एक आनन्द है....
aapki yah khhasiyat hei aur yah achchi lagti he..bahut khoob..
सही कहा....
सुन्दर रचना...
बस एक शंका जगी मन में...
लगा आग भग जाता है...में भाग शब्द का भग प्रयोग सही है क्या ???
sunder rachna badhaai.
वक़्त की कमी से .....देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ... सटीक और सही बातों के साथ यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी...
सोना जितना "तपा" हुआ, "खरा" आज वह उतना है
समझा जिसने इसे नहीं, वही बाद पछताता है
प्रेरक व हृदयस्पर्शी रचना ।
सोना जितना तपा हुआ खरा
सच्ची बात, सुंदर सामयिक कविता ।
इंवर्टेड कामास के शब्द नया अर्थ खोलते हैं ।
उच्च कोटि की बातें लिखी हैं आपने .....
आभार .....
बहुत बढ़िया पोस्ट है। बधाई।
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