थे जितना ही तुम व्याकुल, अपना कृतत्व बताने को
था उतना मैं भी व्याकुल, अपना अस्तित्व जताने को
जो जितना ही भ्रमित -सा, सपने उतने लेकर आये
'ज्ञानी' फिरता बावरा-सा, अपना सर्वस्व लुटाने को
जो जितना ही भाव-पूर्ण , उसमें उतनी निश्चलता है
हो भाव-रहित सब व्यस्त अब,लेखा-जोखा भुनाने को
जो जितना ही लगन-संग है, हारों से भी सबक लिया
'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को
'अनुभव' हरदम 'मुमुक्षु' को, दिग्भ्रमित कर रहा इतना
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को
28 comments:
बहुत दिनों के बाद आपको पढना मुझे बहुत अच्छा लगा... बता नहीं सकता कि.... कितनी ख़ुशी हुई है मुझे..... रचना बहुत सुंदर लगी....
लाजवाब पोस्ट के लिए धन्यवाद .
कृपया इसे भी पढ़े -------http://ashokbajaj99.blogspot.com/
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बहुत दिनों के बाद आपका शानदार और लाजवाब पोस्ट पढ़कर बेहद ख़ुशी हुई! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!
सीधे साधे भाव, सरल भाषा और छन्द, अप्रतिम प्रभाव।
'अनुभव' हरदम 'मुमुक्षु' को, दिग्भ्रमित कर रहा इतना
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को
Nihayat sundar rachana! Hamesha sach ko hi apne astitv kaa ehsaas karabna padta hai!
फरवरी से जून और अब सितम्बर, माजरा क्या है, अनुपस्थिति खल रही थी. मैं रचना पर कोई बात नहीं कर रहा हूं, क्योंकि आप की रचनाएं तो पहले से जांची परखी हैं. गायब कहां रहे और क्यों रहे, यह जानना ज़रूरी है.
बहुत सुंदर ओर सरल जी, धन्यवाद
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चन्द्र मोहन जी ,
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को
इस पंक्ति ने मन मोह लिया ।
बहुत सुन्दर रचना के साथ वापसी पर स्वागत है ।
सच्चे मन से श्रद्धा रखना , और नमन करने में कोई हर्ज़ नहीं है ।
आपके विचार पढ़कर अच्छा लगा । आभार ।
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को
Hats Off!!!!!
चन्द्र मोहन गुप्त मुमुक्ष जी
पहली बार पढ़ा है आपको , अच्छा लगा ।
'ज्ञानी' फिरता बावरा-सा, अपना सर्वस्व लुटाने को
वाह वाह !
क्या दर्शन है !
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आजकल नजर नहीं आते...
बहुत अच्छा लगा देखकर आपको.
जो जितना ही लगन-संग है, हारों से भी सबक लिया
'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को
बहुत समय बाद आपको दुबारा पढ़ना हुवा .. बहुत अच्छी रचना है ...
जो जितना ही लगन-संग है, हारों से भी सबक लिया
'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को
बहुत समय बाद आपको दुबारा पढ़ना हुवा .. बहुत अच्छी रचना है ...
'अनुभव' हरदम 'मुमुक्षु' को, दिग्भ्रमित कर रहा इतना
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को
bebasi se sach ko hi guzarna hota hai,bahut prabhawshali likha hai
'अनुभव' हरदम 'मुमुक्षु' को, दिग्भ्रमित कर रहा इतना
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को
सर्वप्रथम इस वापसी पर आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ चंद्रमोहन जी ! और बधाई इस सुन्दर रचना के लिए !
जो जितना ही लगन-संग है, हारों से भी सबक लिया 'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को
बहुत बढ़िया रचना,बधाई
जो जितना ही लगन-संग है, हारों से भी सबक लिया 'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को
बहुत बढ़िया रचना,बधाई
हर पंक्ति उम्दा है ....
विचार उम्दा है ...
रचना को पढ़कर लगा
आप इंसान उम्दा हैं .
धन्यवाद
जो जितना ही भाव-पूर्ण , उसमें उतनी निश्चलता है
..वाह! क्या बात है!
आप काफी अच्छा लिखते हैं......फिर इतना लंबा अंतराल क्यों। महीने में तीन-चार बार तो लिखा ही करें। जिस चिकत्सा पद्धती को आप सीखने की कोशिश कर रहे हैं या कर चुके हैं उससे क्या फायदे हैं ये भी लिखें तो कई लोगो को फायदा हो सकता है। यानि आपके स्वांत सुखाय वाले दिल को भी तसल्ली मिलेगी औऱ लोगो को जानकारी औऱ फायदा। डॉक्टर दराल की साइट पर आपकी टिप्पणी पढ़कर आया था। अच्छा लगा कि सही समय पर आया और उम्मीद करता हूं कि आप भी अपने ब्लॉग पर सप्ताह में एक दो बार अवतरित होते रहेंगे।
गुप्त जी, आपका इन्तजार तो रहता ही है.
पर आज आपने मंत्रमुग्ध कर दिया.
'ज्ञानी' फिरता बावरा-सा, अपना सर्वस्व लुटाने को
'अनुभव' हरदम 'मुमुक्षु' को, दिग्भ्रमित कर रहा इतना
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को
बहुत सुन्दर ...!!
kya kehoon..bahut sundar1
जो जितना ही लगन-संग है, हारों से भी सबक लिया 'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को
बहुत खूब लिखा है ....सुन्दर और सार्थक
बहुत ही बढिया कथ्य है आपकी इस कविता में । सच को ही साक्ष जुटानी पड रही है । बहुत दिनों के बाद अपने ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी पाकर खुशी हुई ।
... bahut sundar !!!
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
ज्ञानी' फिरता बावरा-सा, अपना सर्वस्व लुटाने को
जो जितना ही भाव-पूर्ण , उसमें उतनी निश्चलता है हो
बहुत सुंदर रचना ...!
ब्लॉग जगत में इतने अनियमित से क्यों हो गए हो
आपके लेखन से हम वंचित से हो गए हैं ।
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