Monday, 6 September 2010

'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को


थे जितना ही तुम व्याकुल, अपना कृतत्व बताने को
था उतना मैं भी व्याकुल, अपना अस्तित्व जताने को

जो जितना ही भ्रमित -सा, सपने उतने लेकर आये
'ज्ञानी' फिरता बावरा-सा, अपना सर्वस्व लुटाने को

जो जितना ही भाव-पूर्ण , उसमें उतनी निश्चलता है
हो भाव-रहित सब व्यस्त अब,लेखा-जोखा भुनाने को

जो जितना ही लगन-संग है, हारों से भी सबक लिया
'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को

'अनुभव' हरदम 'मुमुक्षु' को, दिग्भ्रमित कर रहा इतना
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को



28 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत दिनों के बाद आपको पढना मुझे बहुत अच्छा लगा... बता नहीं सकता कि.... कितनी ख़ुशी हुई है मुझे..... रचना बहुत सुंदर लगी....

ASHOK BAJAJ said...

लाजवाब पोस्ट के लिए धन्यवाद .

कृपया इसे भी पढ़े -------http://ashokbajaj99.blogspot.com/

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बहुत दिनों के बाद आपका शानदार और लाजवाब पोस्ट पढ़कर बेहद ख़ुशी हुई! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!

प्रवीण पाण्डेय said...

सीधे साधे भाव, सरल भाषा और छन्द, अप्रतिम प्रभाव।

shama said...

'अनुभव' हरदम 'मुमुक्षु' को, दिग्भ्रमित कर रहा इतना
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को
Nihayat sundar rachana! Hamesha sach ko hi apne astitv kaa ehsaas karabna padta hai!

सर्वत एम० said...

फरवरी से जून और अब सितम्बर, माजरा क्या है, अनुपस्थिति खल रही थी. मैं रचना पर कोई बात नहीं कर रहा हूं, क्योंकि आप की रचनाएं तो पहले से जांची परखी हैं. गायब कहां रहे और क्यों रहे, यह जानना ज़रूरी है.

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर ओर सरल जी, धन्यवाद

हमारीवाणी said...

क्या आप हिंदी ब्लॉग संकलक हमारीवाणी के सदस्य हैं?

हमारीवाणी पर ब्लॉग पंजीकृत करने की विधि

डॉ टी एस दराल said...

चन्द्र मोहन जी ,
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को
इस पंक्ति ने मन मोह लिया ।
बहुत सुन्दर रचना के साथ वापसी पर स्वागत है ।

सच्चे मन से श्रद्धा रखना , और नमन करने में कोई हर्ज़ नहीं है ।
आपके विचार पढ़कर अच्छा लगा । आभार ।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को

Hats Off!!!!!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

चन्द्र मोहन गुप्त मुमुक्ष जी
पहली बार पढ़ा है आपको , अच्छा लगा ।

'ज्ञानी' फिरता बावरा-सा, अपना सर्वस्व लुटाने को

वाह वाह !
क्या दर्शन है !

शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Udan Tashtari said...

आजकल नजर नहीं आते...

बहुत अच्छा लगा देखकर आपको.

दिगम्बर नासवा said...

जो जितना ही लगन-संग है, हारों से भी सबक लिया
'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को

बहुत समय बाद आपको दुबारा पढ़ना हुवा .. बहुत अच्छी रचना है ...

दिगम्बर नासवा said...

जो जितना ही लगन-संग है, हारों से भी सबक लिया
'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को

बहुत समय बाद आपको दुबारा पढ़ना हुवा .. बहुत अच्छी रचना है ...

रश्मि प्रभा... said...

'अनुभव' हरदम 'मुमुक्षु' को, दिग्भ्रमित कर रहा इतना
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को
bebasi se sach ko hi guzarna hota hai,bahut prabhawshali likha hai

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

'अनुभव' हरदम 'मुमुक्षु' को, दिग्भ्रमित कर रहा इतना
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को

सर्वप्रथम इस वापसी पर आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ चंद्रमोहन जी ! और बधाई इस सुन्दर रचना के लिए !

vikram7 said...

जो जितना ही लगन-संग है, हारों से भी सबक लिया 'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को
बहुत बढ़िया रचना,बधाई

vikram7 said...

जो जितना ही लगन-संग है, हारों से भी सबक लिया 'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को
बहुत बढ़िया रचना,बधाई

वीरेंद्र सिंह said...

हर पंक्ति उम्दा है ....
विचार उम्दा है ...
रचना को पढ़कर लगा
आप इंसान उम्दा हैं .

धन्यवाद

देवेन्द्र पाण्डेय said...

जो जितना ही भाव-पूर्ण , उसमें उतनी निश्चलता है
..वाह! क्या बात है!

Rohit Singh said...

आप काफी अच्छा लिखते हैं......फिर इतना लंबा अंतराल क्यों। महीने में तीन-चार बार तो लिखा ही करें। जिस चिकत्सा पद्धती को आप सीखने की कोशिश कर रहे हैं या कर चुके हैं उससे क्या फायदे हैं ये भी लिखें तो कई लोगो को फायदा हो सकता है। यानि आपके स्वांत सुखाय वाले दिल को भी तसल्ली मिलेगी औऱ लोगो को जानकारी औऱ फायदा। डॉक्टर दराल की साइट पर आपकी टिप्पणी पढ़कर आया था। अच्छा लगा कि सही समय पर आया और उम्मीद करता हूं कि आप भी अपने ब्लॉग पर सप्ताह में एक दो बार अवतरित होते रहेंगे।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

गुप्त जी, आपका इन्तजार तो रहता ही है.
पर आज आपने मंत्रमुग्ध कर दिया.
'ज्ञानी' फिरता बावरा-सा, अपना सर्वस्व लुटाने को

'अनुभव' हरदम 'मुमुक्षु' को, दिग्भ्रमित कर रहा इतना
'बेबस' ज्यूँ हैं इस जगत में, 'सच' भी साक्ष्य जुटाने को

बहुत सुन्दर ...!!

Parul kanani said...

kya kehoon..bahut sundar1

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जो जितना ही लगन-संग है, हारों से भी सबक लिया 'बातूनी' ने खबर पाई , 'महफ़िल' में फिर सुनाने को

बहुत खूब लिखा है ....सुन्दर और सार्थक

Asha Joglekar said...

बहुत ही बढिया कथ्य है आपकी इस कविता में । सच को ही साक्ष जुटानी पड रही है । बहुत दिनों के बाद अपने ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी पाकर खुशी हुई ।

कडुवासच said...

... bahut sundar !!!

Urmi said...

आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !

मनोज भारती said...

ज्ञानी' फिरता बावरा-सा, अपना सर्वस्व लुटाने को
जो जितना ही भाव-पूर्ण , उसमें उतनी निश्चलता है हो

बहुत सुंदर रचना ...!

ब्लॉग जगत में इतने अनियमित से क्यों हो गए हो
आपके लेखन से हम वंचित से हो गए हैं ।