Saturday, 12 June 2010

इन "बेढब- से" खर्चों पर ही, पहले रोक लगाने को




उजड़ी होगी बगिया कोई, कुछ पल महल सजाने को
खर्चे होंगें "पैसे" ही तो,अपना अहम् दिखाने को

कैसे कितना काटें किसका, हरदम सोंच वहां चलती
हम "दुखियारे" खपते-मरते, बढ़ते खरच जुटाने को

"नौ की लकड़ी- नब्बे खर्चे", करता कौन, ज़रा जानों
इन "बेढब - से" खर्चों पर ही, पहले रोक लगाने को

सीखा जिसने "दिल" से देना, "दानी-वीर" रहे हैं वो
चिक-चिक वाले धूमिल करते, सारी साख ज़माने को

कतरा-कतरा सींचा जिसने, पागल "मुमुक्षु" वही तो है
पा चुटकी भर दौलत घुल-मिल, "दुनियादार" कहाने को





21 comments:

डॉ टी एस दराल said...

चंदर मोहन जी , ब्लॉग वापसी पर स्वागत है । एक मुद्दत के बाद आपको पढने को मिला है ।
मौजूदा हालातों पर बहुत बढ़िया कटाक्ष किया है ।
हम भी हैरान परेशान हैं इन हालातों से । लेकिन ज़ज्बा कभी कम नहीं होना चाहिए , लड़ने का ।
बहुत बढ़िया लिखा है ।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Ati uttam!
Saarthak kataaksh!

Urmi said...

बहुत दिनों के बाद आपका शानदार पोस्ट पढने को मिला! बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!

Smart Indian said...

कतरा-कतरा सींचा जिसने, पागल "मुमुक्षु" वही तो है
पा चुटकी भर दौलत घुल-मिल, "दुनियादार" कहाने को

बहुत बढ़िया. कबीर की याद आ गयी!

Alpana Verma said...

हर शेर क़ाबिले तारीफ़ है.,
ख़ास कर
"नौ की लकड़ी- नब्बे खर्चे", करता कौन, ज़रा जानों
इन "बेढब - से" खर्चों पर ही, पहले रोक लगाने को
...
वर्तमान हालातों पर इस गज़ल में खूब सही कटाक्ष किया है.

**बहुत दिनों बाद ब्लॉग अपडेट किया आप ने और बहुत ही सशक्त रचना के साथ.
बधाई.

लता 'हया' said...

shukria and
WELCOME BACK

मनोज भारती said...

मुमुक्षु जी !!! इतने लम्बे अर्से तक कहाँ रहे ...
आपकी सुंदर लेखनी बहुत इंतजार के बाद पढ़ने को मिली है ... सुंदर कविता

विनोद कुमार पांडेय said...

चंद्रमोहन जी बहुत अच्छा लगा काफ़ी लंबे गैप के बाद आप आएँ और आते ही छा गये..सुंदर रचना..बधाई

कडुवासच said...

... सुन्दर भाव!!!!

दिगम्बर नासवा said...

उजड़ी होगी बगिया कोई, कुछ पल महल सजाने को
खर्चे होंगें "पैसे" ही तो,अपना अहम् दिखाने को

बहुत समय बाद आपको पुन्ह ब्लॉग पर देख कर अच्छा लगा ... धमाकेदार रचना के साथ वापसी है आपके .. कुछ हक़ीकत से जुड़ी बातें कहीं है आपने हर पंक्ति में .. लाजवाब ...

Roshani said...

Aadarniy Chandra Mohan ji bade dino baad aapka blog padne ko mila.Aap nirantar likha kariye kyonki aapse bahut kuch sikhne ko milta hai.
:)

sandhyagupta said...

Der aye par durust aye.

M VERMA said...

बहुत सुन्दर रचना

hem pandey said...

'कैसे कितना काटें किसका, हरदम सोंच वहां चलती
हम "दुखियारे" खपते-मरते, बढ़ते खरच जुटाने को'

- सौ टका सही.

ज्योति सिंह said...

"नौ की लकड़ी- नब्बे खर्चे", करता कौन, ज़रा जानों
इन "बेढब - से" खर्चों पर ही, पहले रोक लगाने को

सीखा जिसने "दिल" से देना, "दानी-वीर" रहे हैं वो
चिक-चिक वाले धूमिल करते, सारी साख ज़माने को
bahut dino baad aana hua aapka blog pe swagat hai ,rachna kafi shaandaar hai .hausala bas bana rahe ......

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अरे..अचानक दिख गये आप..!
सुंदर रचना के साथ वापस की बधाई.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

आपका इंतज़ार कर रहा था... आप कहीं भी रहें बीच बीच में दर्शन दे दिया करें.... इस समूह में आप जैसे ज्ञानी और उदार हृदयी व्यक्ति का होना अनिवार्य है.

रचना आपके स्वभाव के अनुकूल, वर्तमान परिदृश्य को बयां करती है. बहुत बढ़िया ग़ज़ल.

रंजना said...

वाह.....क्या बात कही आपने...कितना सही कहा...

चिंतन को आधार देती बहुत ही सुन्दर रचना....आभार..

Dev said...

Sundar rachana ke liye dhanybad..Regards

Lines Tell the Story of Life "Love Marriage Line in Palm"

kshama said...

"Bikhare sitare'pe aapkee shukr guzaaree pesh kee hai...zaroor gaur karen!

Astha Gupta said...

Respected chacha g'
I am also now here.