आज जन्माष्टमी का पावन पर्व है, एक बार फिर से आज रात बारह बजे कान्हा का जन्म-दिन मनाया जायेगा, पर केक काट कर नहीं, श्रद्धा से उपवास रख कर, पर पूर्ण हर्षोल्लास के साथ।
नहीं समझ पाता कि हमारी यह संस्कारित संस्कृति उस वक्त कहाँ गुम हो जाती है जब हम अपना या अपने बच्चों का जन्म-दिन बिना उपवास रखे, केक काटकर, गिफ्ट लेकर और रिटर्न गिफ्ट देकर मनाते हैं, कहीं यह आज के युग का लेन-देन का व्यापार तो नहीं ?
और तो और आज ही अर्थात १४ अगस्त की रात बारह बजे ही स्वतंत्र भारत का भी जन्म-दिन है। रात बीतते ही गुलामी की जंजीरों से बासठ वर्ष पूर्व मुक्त हुए भारत का तिरसठवाँ जन्म-दिन मनाने की तैयारियों में भी पूरा भारत हर्सोल्लास से भरा दिखाई देगा।
प्रधानमंत्री जी लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहरा कर और एक और ऐतिहासिक भाषण देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेंगें। पर महंगाई की भयंकर मार झेल रही जनता की "मनोव्यथा-दर" और आर्थिक जगत की ऋणात्मक "महंगाई दर" की गुत्थी पर शायद ही कोई कार्य-योजना दिखाई दे।
आज न कहीं गाँधी के सपनों का भारत दिखता है, न सुभाष के। अगर आजाद और भगत सिंह की बात करें तो उनका त्याग, विश्वास और बलिदान सब व्यर्थ सा लगता है। नहीं समझ में आता कि आज़ादी बाद समस्यायें कम हुई हैं. गौर से विश्लेषण करें तो समस्याएं बढ़ी हुई ही दिखेंगी.
गुलाम भारत के आज़ादी के दीवाने प्रेम के परवानों की तरह ही बेखौफ थे। सिर पर कफ़न बांध कर देश के लिए काम करते थे, पर आज स्वतंत्र भारत के कर्ता-धर्ता अपनी ही सुरक्षा के प्रति कुछ ज्यादा ही सचेत दिखते हैं। देश के लिए कुर्बान होने का ज़ज्बा कहीं दिखता ही नहीं.
स्वतंत्रता के बासठ वर्षों बाद तत्कालीन स्वतंत्रता सेनानियों की तीसरी पीढी के लिए स्वतंत्र भारत के आदर्शों के रूप में खिलाडी, कलाकारों के आलावा और कोई सामने दिखता ही नहीं. नेता नाम तो गाली जैसा महसूस करने लायक सा हो गया सा लगता है. कब समझेंगे हम श्रद्धामयी उन जोशीली, गरिमायी, भावुक पंक्तियों का अर्थ........... "माँ मोरा रंग दे बसंती चोला" ................
खैर जब बात श्रद्धा पर पहुँच ही गयी तो जन्माष्टमी के इस शुभ अवसर पर श्रद्धा की अठावनवीं कड़ी आप सभी को समर्पित है ........................
श्रद्धा
(५८)
(५८)
पैसों के दीवनों ने देखो अब तक
ढायीं कितनी बूझ-अबूझ विपदाएं
सब्ज-बाग खुशहाली का दिखला
धंदे अपने ही तो नित चमकाएं
आजादी या प्रेम दीवानों ने तो बस
दूजो के सुख हेतु सहे दुःख बरबस
मीरा, राधा, आजाद भगत ही तो
मिसाल-ए-श्रद्धा बन हरदम भाए
स्वतंत्रता-दिवस की भी हार्दिक शुभकामनाएं............
26 comments:
जन्माष्टमी और स्वतंत्रता-दिवस की हार्दिक बधाई!
Wah...puri badhaimay post !!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें. "शब्द सृजन की ओर" पर इस बार-"समग्र रूप में देखें स्वाधीनता को"
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
bahut sundar likha hai aapne.badhai!
संस्कृति की तो बात ही अलग है आज कहाँ रहती है पता ही नही चलता.तमाम दिखावे और आडंबर हमारे संस्कृति के साथ मिलते जा रहे है और यह इतनी भोली की सबसे तालमेल रखते हुए एक चल रही है..अब इस संस्कृति को कैसे बताया जाए की जिस छोटे छोटे नलियों से आने वाले दिखावे और आडंबर के जल को ग्रहण कर रही है वही इस संस्कृति रूपी सागर का अस्तित्व मिटा देंगे..
कुछ तो करना ही होगा और हम सब को ही जिससे हमारी सभ्यता बची रहे..
आपकी लेख एक सुंदर संदेश देती है..
जन्माष्टमी और स्वतंत्रता-दिवस की हार्दिक बधाई!
श्री कृ्ष्ण जन्मोत्सव तथा स्वतंत्रता दिवस की आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं!!!!
जनमाष्टमी और स्वतंत्रता दिवस मुबारक।
कृष्ण भी स्वतंत्रता के वाहक थे!
वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने! स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
गुप्तजी,
स्वतंत्रता दिवस की ६3 वीं वर्षगांठ पर आपकी चिंता स्वाभाविक और चिन्तन प्रभावी है. आत्मा को छूती-झिन्झोरती पंक्तियाँ! बधाई स्वीकार करें !!
'रास-लीला' के छंद बड़े संकोच से ब्लॉग पर रखे थे. संकोच इसलिए कि पिताजी ki धरोहर में हाथ डालना था; लेकिन अवसर का तकाजा तो था ही, सुबह से ही ये पंक्तियाँ मन में उमड़-घुमड़ रही थीं. शाम होते-होते इन्हें ब्लॉग के हवाले करने से खुद को रोक न पाया. इस काव्य के अतिरिक्त उनकी अनेक कवितायेँ हैं; लेकिन वह असंग्रही प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, लिखा और dhara में छोड़ दिया. होशगर होने के बाद मैंने जो एकत्रित किया है, उसे कभी-कभी आप सभों के साथ बांटूंगा ही... सप्रीत...
जन्माष्टमी तथा स्वाधीनता पर्व की शुभकामनायें देर से सही पर दुरुस्त तरीके से स्वीकार करें. आपकी वर्षा-प्रार्थना प्रभु ने सुन ली है और पिछले ३ दिनों से हम गुनहगारों पर उसकी जो असीम अनुकम्पा हो रही है, उसके लिए हम उस के आभारी हैं. आप के गध ने तो चौंका दिया. कविता में तो महारथी आप हैं ही, अब आप का यह नया रूप सामने आया है-बधाई.
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’
सच कहा...........अज ऐसा दूर दूर देखने पर भी नज़र नहीं आता........... आज के नेता वो आदर्श ही नहीं रख रखे सबके सामने...... आपकी श्रधा लाजवाब है......
बहुत बढ़िया...जन्माष्टमी और स्वतंत्रता-दिवस की शुभकामनाएं..
जैसा भी है , देश तो अपना है, उसे नेताओं के हवाले क्यों छोड़ना है. अभी बहुत काम हैं और हमें ही करने हैं. स्वंत्रता की ६२वी वर्षगांठ मुबारक.
मीरा, राधा, आजाद भगत ही तो
मिसाल-ए-श्रद्धा बन हरदम भाए
क्या खूब ..लाजवाब ......!!
जन्माष्टमी और स्वतंत्रता-दिवस की हार्दिक बधाई!
पैसों के दीवनों ने देखो अब तक
ढायीं कितनी बूझ-अबूझ विपदाएं
सब्ज-बाग खुशहाली का दिखला
धंदे अपने ही तो नित चमकाएं
सही चित्र खीचा है आपने
Aapke aalekh ka pratyek shabd apne hi man ki baat lagi...so isse aage aur isse itar kya kaha jaay,soojh nahi raha...
Kash ki pratyek bharteey yah sab soch paay aur apni sanskriti sanskaron ke rakshan ko prastut ho paay...
Is sundar aalekh hetu aapka sadhuwaad..
is baar ka avasar behad khaas raha ek saath do utsav ka aana .aur badhaiyaan bhi dohari ...
shaandar lekh .jai hind .
आपकी रचनाओं की बड़ी तारीफ़ सुनी थी वैसा ही पाया बड़ी मुश्किल से आपका ब्लॉग खोज के पहुंचा हूँ
जन्माष्टमी और स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
मेरे ब्लाग पर आपके प्रथम आगमन का अभिनन्दन, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति लगी आपकी शुभकामनाओं सहित, आभार्
'मीरा, राधा, आजाद भगत ही तो
मिसाल-ए-श्रद्धा बन हरदम भाए '
- 'श्रद्घा' पर आपकी यह सिरीज प्रशंसनीय है.
अति और कटु सत्य |जन्म दिन गिफ्ट का आदान प्रदान |संस्कृति क्या है पता नहीं |नेता शब्द वही हो चला है जो आपने कहा है |
bahut badhiya lekh
आपकी रचनाये अच्छी लगी ,जन्माष्टमी और स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई .मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
आजादी या प्रेम दीवानों ने तो बस
दूजो के सुख हेतु सहे दुःख बरबस '
sach kaha hai.
aap ne sawaal uthaya ----कहीं यह आज के युग का लेन-देन का व्यापार तो नहीं ?
*aap ki chinta bilkul sahi hai..aaj 'swantrta diwas' jaise rashtriy parv mahaj aupcharikta ban kar rah gaye hain.
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