बुनियाद गज़ब शोरों पर है
असहाय पड़ा इस भू पर
रह-रह चीखें गूँज रही हैं
सुनी,अनसुनी करती दुनिया
'ग्लैमरस' ही पूज रही है
बन उठा 'ग्लैमर' देव आज
बन उठा 'ग्लैमर' देव आज
चर्चा उसकी ही जोरों पर है
पल-पल बदले रूप दिखाए
बुनियाद गज़ब शोरों पर है
होकर मानव ग्लैमरमयी
होकर मानव ग्लैमरमयी
बन जाता तन-मन से अँधा
धंधे वाले जान इसे ही
चरचों से चमकाते धंधा
बढ़ते शोरों में रम-रम कर
चरचों से चमकाते धंधा
बढ़ते शोरों में रम-रम कर
सुन रहा मानव कुछ ऊंचा है
अंधे-बहरे मानव का अब
बिखरा सम्बन्ध समूचा है
36 comments:
आपकी सुंदर टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
वाह वाह क्या बात है! बहुत खूब लिखा है आपने! मुझे बेहद पसंद आया!
बन उठा 'ग्लैमर' देव आज
चर्चा उसकी ही जोरों पर है
पल-पल बदले रूप दिखाए
बुनियाद गज़ब शोरों पर है
सुंदर भावाभियक्ति ...!!
किसी भी चीज़ के अगर फायदे हैं तो नुकसान भी है उसी में से एक ग्लैमर भी है ....इससे युवा वर्ग द्विगभ्रमित भी होता है ...!!
बहुत खूब गुप्ता जी...आज के चकाचौंध करते हालात के नीचे के अँधेरे को बहुत अच्छे से दिखाया है आपने...एक सच्ची और अच्छी रचना...बधाई...
नीरज
Vakai 'Glammer' ke piche hi divanagi hai abhi.
अंधे-बहरे मानव का अब
बिखरा सम्बन्ध समूचा है ...
बहुत खूब,सुंदर.
बढ़ते शोरों में रम-रम कर
सुन रहा मानव कुछ ऊंचा है
अंधे-बहरे मानव का अब
बिखरा सम्बन्ध समूचा है
" glamour ki andhi daud ke ntije ko khub shabdo mey utara hai aapne"
regards
होकर मानव ग्लैमरमयीबन जाता तन-मन से अँधाधंधे वाले जान इसे ही
चरचों से चमकाते धंधा
waah/ bahut khoob likhte he aap/ sach me aapki kalam me jaan he, ise aour peni kijiye/ to maza aajayega//
ab me aapke blog par aataa rahunga/
रचना बेहद प्रभावशाली है
बन उठा 'ग्लैमर' देव आज
चर्चा उसकी ही जोरों पर है
पल-पल बदले रूप दिखाए
बुनियाद गज़ब शोरों पर है
बहुत खूब लिखा है......ग्लैमर युग की हकीकत बयां करती एक अच्छी रचना .
होकर मानव ग्लैमरमयी
बन जाता तन-मन से अँधा
धंधे वाले जान इसे ही
चरचों से चमकाते धंधा...bahut khoob
होकर मानव ग्लैमरमयी
बन जाता तन-मन से अँधा
धंधे वाले जान इसे ही
चरचों से चमकाते धंधा
आज की भौतिकवादी शैली पर बहुत ही
खूब कटाक्ष किया है ,,और साथ में एक
प्रभावशाली सन्देश भी दे दिया है .
बधाई
---मुफलिस---
... कमाल की अभिव्यक्ति, बहुत सुन्दर !!!!
बढ़ते शोरों में रम-रम कर
सुन रहा मानव कुछ ऊंचा है
अंधे-बहरे मानव का अब
बिखरा सम्बन्ध समूचा है
vah sahib khoob kaha
shyam
बढ़ते शोरों में रम-रम कर
सुन रहा मानव कुछ ऊंचा है
अंधे-बहरे मानव का अब
बिखरा सम्बन्ध समूचा है
wah mumukshu ji sachai ujagar ki hai. badhai.
ग्लेमर तो सदैव से ही पूजा जाता रहा है, बस अन्तर यह आ गया है कि पहले त्याग भी पूजा जाता था। अब तो बस ग्लेमर ही है। अच्छी कविता, बधाई।
Excellent creativity.
ग्लैमर देव के बारे में अच्छी अभिव्यक्ति
बन उठा 'ग्लैमर' देव आज
चर्चा उसकी ही जोरों पर है
पल-पल बदले रूप दिखाए
बुनियाद गज़ब शोरों पर है
सुंदर भावाभियक्ति ...!!
आज के चकाचौंध करते हालात के नीचे के अँधेरे को बहुत अच्छे से दिखाया है आपने...एक सच्ची और अच्छी रचना...बधाई...
आज की भौतिकवादी शैली पर बहुत ही
खूब कटाक्ष किया है ,,और साथ में एक
प्रभावशाली सन्देश भी दे दिया है .
होकर मानव ग्लैमरमयी
बन जाता तन-मन से अँधा
धंधे वाले जान इसे ही
चरचों से चमकाते धंधा.......
बहुत खूब ......
Glamour mrigmarichika jaisa hai, hum andhadhund iske pheechhe daude ja rahe hain.Aakhir me kuchh haath nahi lagta.Babahut badhiya likha hai bhai, badhai.Thanks for visiting my blog and appreciation.
'ग्लैमरमयी' हमेशा अंधा नहीं होता, सादगी के साथ रहनेवाले लोग भी कट्टर हो सकते हैं।
सच में ग्लैमराभिभूत होने/करने का युग है - यद्यपि हर ग्लैमर दिखाती चीज सोना नहीं होती।
बन उठा 'ग्लैमर' देव आज
चर्चा उसकी ही जोरों पर है
पल-पल बदले रूप दिखाए
बुनियाद गज़ब शोरों पर है
आज के समय का दर्पण ही तो हैं यह पंक्तियाँ..फायदे ???? नुक्सान ही ज्यादा हैं..इस glamour भरी चमक दमक की दुनिया के..
सही कहा है ,,
इस ग्लैमर देव ने ही तो बडा गर्क किया हुआ है,,,
शब्दों को समुचित मात्रा-भार के साथ सजा कर ग्लेमर पर शानदार भावाभियक्ति .
अच्छा व्यंग्य गुप्त जी, एकदम सामयिक.. बधाई स्वीकारें..
असहाय पड़ा इस भू पर ????
बढ़ते शोरों में रम-रम करसुन रहा मानव कुछ ऊंचा हैअंधे-बहरे मानव का अबबिखरा सम्बन्ध समूचा है
....शानदार और जानदार लेखन के लिए बधाई
ग्लैमर बुरा भी नहीं यदि मूल्यों को त्यागे बिना किया जाये ..बहुत गहरी व्यथा पेश की है आपने
होकर मानव ग्लैमरमयी
बन जाता तन-मन से अँधा
धंधे वाले जान इसे ही
चरचों से चमकाते धंधा
bhut sateek bat khi hai
बेहतरीन पेशकश । इसके जरिए आपने उन लोगो के उपर प्रहार किया है जो आज की दुनिया में ग्लैमर को ही सबकुछ समझते है । खासकर ये पंक्तियां मुझे काफी अच्छी लगी । शुक्रिया
बढ़ते शोरों में रम-रम कर
सुन रहा मानव कुछ ऊंचा है
अंधे-बहरे मानव का अब
बिखरा सम्बन्ध समूचा है
सत्य वचन...........लाजवाब रचना...........
बढ़ते शोरों में रम-रम कर
सुन रहा मानव कुछ ऊंचा है
अंधे-बहरे मानव का अब
बिखरा सम्बन्ध समूचा है
-बिल्कुल सही कह रहे हो..बेहतरीन!!
bahut shaandar.bhaav mukhar ho kar saamne aaye hain.
जानकर प्रसन्न्ता हुई कि आप अध्यात्म पथ पर अग्रसर हैं। कदम उठ ही गये तो फ़िर मंजिल दूर नहीं।
आपने आज के माहौल की हकीकत का वर्णन किया है.साधुवाद
इस कविता को अपनी आवाज़ में अपने संशिप्त परिचय के साथ मेरे पास भेज दें rasprabha@gmail.com
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