Monday, 20 April 2009

श्रद्धा

श्रद्धा

(५२)


छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संग
फुदक -फुदक जब उड़ना सीखा
रही चाह , उत्साह जब तलक
गगन-नापने में ही उठना दीखा


उदर- अग्नि ने सुध धरा कराई
भर आँचल भूले की क्षुधा बुझाई


'श्रद्धा-सानिध्य' में पाकर अपनापन
उलझे मन ने भी सुलझाना सीखा

18 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया रचना ।

seema gupta said...

छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संगफुदक -फुदक जब उड़ना सीखारही चाह , उत्साह जब तलकगगन-नापने में ही उठना दीखा

" बेहद अर्थपूर्ण पंक्तियाँ.....जीवन चाह और उत्साह से परिपूर्ण..'

regards

हरकीरत ' हीर' said...

चन्द्र मोहन जी कई दिनों से आपकी ये 'श्रद्धा' पढ़ रही हूँ ...जानना चाहती हूँ ये लड़ीवार आपकी श्रद्धा कहाँ तक जायेगी....? और इस बार कुछ दुविधा में हूँ इन पंक्तियों को लेकर.....

छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संग
फुदक -फुदक जब उड़ना सीखा
रही चाह , उत्साह जब तलक
गगन-नापने में ही उठना दीखा

यहाँ 'उठना दीखा' से आप क्या स्पस्ट करना चाहते हैं....!!

Harshvardhan said...

bahut sundar rachna...

Urmi said...

पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने !

Sushil Kumar said...

बहुत बढ़िया। सुन्दर अभिव्यक्ति।- अक्षर जब शब्द बनते हैं

Gyan Dutt Pandey said...

मैं तो यही समझा कि मां के आंचल में रहने में भी श्रद्धा है और एक नये डायमेंशन में प्रवेश करने में भी।
यो यत श्रद्ध: स एव स!

अभिषेक मिश्र said...

रही चाह , उत्साह जब तलक
गगन-नापने में ही उठना दीखा

बहुत ही प्रभावी पंक्तियाँ, बधाई.

mark rai said...

jindagi me yah bahut dukhdayi hota hai ...chuje bhi saath chhod gaye ab kisaki aas .....aapki shradhaa jaari rahni chahiye...

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत खूब.

sandhyagupta said...

Sundar aur prabhavi rachna.Badhai.

अनुपम अग्रवाल said...

बेहतरीन.

पर हरकीरत हक़ीर जी के प्रश्न का जवाब स्पष्ट करें
तो और बेहतर होगा..

रश्मि प्रभा... said...

छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संग
फुदक -फुदक जब उड़ना सीखा
रही चाह , उत्साह जब तलक
गगन-नापने में ही उठना दीखा..........बहुत ही सुन्दर रचना...

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

'श्रद्धा-सानिध्य' में पाकर अपनापन
उलझे मन ने भी सुलझाना सीखा

बहुत सुन्दर भाव.....खूबसूरत रचना..आभार

Alpana Verma said...

छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संग
फुदक -फुदक जब उड़ना सीखा
रही चाह , उत्साह जब तलक
गगन-नापने में ही उठना दीखा

-बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना.

Harshvardhan said...

bahut sundar.. bas isi tarah se lekhan jaari rakhiye...

hem pandey said...

छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संग
फुदक -फुदक जब उड़ना सीखा
सुन्दर.

gazalkbahane said...

छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संगफुदक -फुदक जब उड़ना सीखारही चाह , उत्साह जब तलकगगन-नापने में ही उठना दीखा
आपने ठीक लिखा-समस्त प्राणी जगत में मानव ही ऐसा प्राणी है जो अपने आप और बच्चों को बांधकर रखता है
श्याम सखा‘श्याम’