चन्द्र मोहन जी कई दिनों से आपकी ये 'श्रद्धा' पढ़ रही हूँ ...जानना चाहती हूँ ये लड़ीवार आपकी श्रद्धा कहाँ तक जायेगी....? और इस बार कुछ दुविधा में हूँ इन पंक्तियों को लेकर.....
छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संग फुदक -फुदक जब उड़ना सीखा रही चाह , उत्साह जब तलक गगन-नापने में ही उठना दीखा
यहाँ 'उठना दीखा' से आप क्या स्पस्ट करना चाहते हैं....!!
छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संगफुदक -फुदक जब उड़ना सीखारही चाह , उत्साह जब तलकगगन-नापने में ही उठना दीखा आपने ठीक लिखा-समस्त प्राणी जगत में मानव ही ऐसा प्राणी है जो अपने आप और बच्चों को बांधकर रखता है श्याम सखा‘श्याम’
मैं बचपन से ही स्वान्तः-सुखाय प्रवृत्ति का रहा हूँ. परीक्षाओं में ज्यादा अंक लाने से ज्यादा महत्त्व मूलभूत ज्ञान को दिया.
इलाहबाद (प्रयाग) शहर का होने के कारण बचपन से ही साहित्य की ओर झुकाव रहा. जब मैं इंजीनियरिंग के अन्तिम वर्ष में था तो उस समय हमने अपने कुछ सहयोगियों( श्री अजामिल जी, प्रदीप सौरभ जी, दिनेश मिश्रा जी आदि) के साथ भारत का प्रथम बाल समाचार पत्र "नन्हें-मुन्नों का अख़बार" प्रकाशित किया था.
बचपन से आज तक समय-बेसमय कुछ न कुछ लिखता ही रहा, पर ज्यादातर स्वान्तः-सुखाय ही. पांडुलिपियाँ धीरे -धीरे ब्लोग्स पर अवतरित हो रहीं हैं.
इलेक्ट्रिकल मैन्टेनेन्स में होने के कारण आने और महसूस होने वाली दिक्कतों को मद्देनजर रखते हुए मह्तातों के बेहतर कैरियर के लिए कई किताबे भी बिना धन-लाभ की अभिलाषा के स्वान्तः-सुखाय ही लिखी.
यूनिवर्सिटी लेवल एवं राज्य स्तर किकेट प्रतियोगिताओं में भी भाग लिया. हिंडाल्को क्रिकेट टीम का कई वर्षों तक सदस्य रहा.
बायोकेमिक एवं बैच-फ्लावर चिकत्सा पद्धिति में भी कुछ जानकारी हासिल कर सकने की भी हिमाकत की है.
सम्प्रति शेयर मार्केट पर ट्रेडिंग से सम्बंधित एक पुस्तक लिखने में व्यस्त हूँ.
18 comments:
बढिया रचना ।
छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संगफुदक -फुदक जब उड़ना सीखारही चाह , उत्साह जब तलकगगन-नापने में ही उठना दीखा
" बेहद अर्थपूर्ण पंक्तियाँ.....जीवन चाह और उत्साह से परिपूर्ण..'
regards
चन्द्र मोहन जी कई दिनों से आपकी ये 'श्रद्धा' पढ़ रही हूँ ...जानना चाहती हूँ ये लड़ीवार आपकी श्रद्धा कहाँ तक जायेगी....? और इस बार कुछ दुविधा में हूँ इन पंक्तियों को लेकर.....
छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संग
फुदक -फुदक जब उड़ना सीखा
रही चाह , उत्साह जब तलक
गगन-नापने में ही उठना दीखा
यहाँ 'उठना दीखा' से आप क्या स्पस्ट करना चाहते हैं....!!
bahut sundar rachna...
पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने !
बहुत बढ़िया। सुन्दर अभिव्यक्ति।- अक्षर जब शब्द बनते हैं
मैं तो यही समझा कि मां के आंचल में रहने में भी श्रद्धा है और एक नये डायमेंशन में प्रवेश करने में भी।
यो यत श्रद्ध: स एव स!
रही चाह , उत्साह जब तलक
गगन-नापने में ही उठना दीखा
बहुत ही प्रभावी पंक्तियाँ, बधाई.
jindagi me yah bahut dukhdayi hota hai ...chuje bhi saath chhod gaye ab kisaki aas .....aapki shradhaa jaari rahni chahiye...
बहुत खूब.
Sundar aur prabhavi rachna.Badhai.
बेहतरीन.
पर हरकीरत हक़ीर जी के प्रश्न का जवाब स्पष्ट करें
तो और बेहतर होगा..
छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संग
फुदक -फुदक जब उड़ना सीखा
रही चाह , उत्साह जब तलक
गगन-नापने में ही उठना दीखा..........बहुत ही सुन्दर रचना...
'श्रद्धा-सानिध्य' में पाकर अपनापन
उलझे मन ने भी सुलझाना सीखा
बहुत सुन्दर भाव.....खूबसूरत रचना..आभार
छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संग
फुदक -फुदक जब उड़ना सीखा
रही चाह , उत्साह जब तलक
गगन-नापने में ही उठना दीखा
-बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना.
bahut sundar.. bas isi tarah se lekhan jaari rakhiye...
छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संग
फुदक -फुदक जब उड़ना सीखा
सुन्दर.
छोड़ दिया चूजों ने भी माँ-संगफुदक -फुदक जब उड़ना सीखारही चाह , उत्साह जब तलकगगन-नापने में ही उठना दीखा
आपने ठीक लिखा-समस्त प्राणी जगत में मानव ही ऐसा प्राणी है जो अपने आप और बच्चों को बांधकर रखता है
श्याम सखा‘श्याम’
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