श्रद्धा
(४९)
कर न सकी विपदाएं भी जब पस्त
लिया "श्रद्धा-भाव" ने था जन्म तभी
शिशु सा लुढ़काया-पुढ़काया यत्र-तत्र
कालांतर में शक्ति-पुंज सा वही अभी
झेली विपदाएं जिसने, वही अलख जगाये
सर चढ़ जादू-सा 'भय', 'अज्ञान' भगाए
बनी 'श्रद्धा' ही शक्ति-दायनी उसकी
था झेला जिसने कष्टों का अम्बार कभी
14 comments:
झेली विपदाएं जिसने, वही अलख जगाये
सर चढ़ जादू-सा 'भय', 'अज्ञान' भगाए
बनी 'श्रद्धा' ही शक्ति-दायनी उसकी
था झेला जिसने कष्टों का अम्बार कभी
" jivan ka yhi sach hai magar hm smajh nahi paate or vipda se ghbraa jate hain....aapke in panktiyon ne ankhen khol di hai..."
Regards
सही है - ईश्वर श्रद्धा-वर दें तो सब विघ्न-बाधायें पार कर सकता है मनुष्य!
sunder rachna.
कालांतर में शक्ति-पुंज सा वही अभी
झेली विपदाएं जिसने, वही अलख जगाये
सर चढ़ जादू-सा 'भय', 'अज्ञान' भगाए
बनी 'श्रद्धा' ही शक्ति-दायनी उसकी
था झेला जिसने कष्टों का अम्बार कभी
कालांतर में शक्ति-पुंज सा वही अभी
झेली विपदाएं जिसने, वही अलख जगाये
सर चढ़ जादू-सा 'भय', 'अज्ञान' भगाए
बनी 'श्रद्धा' ही शक्ति-दायनी उसकी
था झेला जिसने कष्टों का अम्बार कभी
सही कहा आपने 'श्रद्धा' में इतनी शक्ति होती है की वह हमारा भय ,संशय ,अज्ञान सब दूर kar deti है...!!
बनी 'श्रद्धा' ही शक्ति-दायनी उसकी
था झेला जिसने कष्टों का अम्बार कभी..
bahut sundar .
bahut hi shaandaar likha hai......
'झेली विपदाएं जिसने, वही अलख जगाये
सर चढ़ जादू-सा 'भय', 'अज्ञान' भगाए
बनी 'श्रद्धा' ही शक्ति-दायनी उसकी
था झेला जिसने कष्टों का अम्बार कभी'
-सुंदर.साधुवाद.
यथार्थवाद से जुड़ी रचना के लिए बधाई स्वीकारें!
mohan ji aapki rachna achchi lagi
अद्भुत रचनाएँ रचते हैं आप श्रधा विषय पर...एक ही विषय को नए नए आयाम देना किसी कुशल लेखक का ही काम हो सकता है...
देरी से आने की क्षमा...
नीरज
कर न सकी विपदाएं भी जब पस्त
लिया "श्रद्धा-भाव" ने था जन्म....
very nice sir...sach kaaphi der tak sochta raha...dosto se bhi aapaki ye rchna baati sabane bahut pasand ...kiya..kya kahu mindbllowing..
अच्छी रचना के लिये बधाई स्वीकारें बंधुवर
* आप सभी बुद्धिजनों ने मेरी रचनाओं की अब तक जिस तरह से सराहना की है, हौसला अफजाई ही हुई है.
* सच कहूं तो मैं यह खुद भी नहीं जानता की "श्रद्धा" जैसे भाव में मै कब , क्यों और कैसे समाहित हो गया.
* कवितायेँ भी विभिन्न आयाम को कब, कैसे प्राप्त कर लेती हैं और अंततः श्रद्धा पर जा कर समाप्त होती है ज्यों नदियों पथ कोई भी क्यों न ग्रहण करे पर अंततः "श्रद्धा" रूपी सागर ही में सब की सब समाहित होती है.
* नदियाँ पूज्य हैं पर सागर नहीं. इसी तरह "श्रद्धा" को भी पूज्य लायक लोग नहीं समझते, बाकी सब बातें समझ योग्य होती हैं.
* "श्रद्धा" एक विश्वास है जिसे कुछ लोग अन्धविश्वास का भी नाम दे सकते हैं. मैं इसे भाववाचक संज्ञा कहना अधिक पसंद करूगां क्योकि यह एक ऐसा भाव जाग्रत करता है, जिससे मानव जाति का सिर्फ और सिर्फ कल्याण ही हो सकता है, विनाश या हानि तो तनिक भी नहीं. कुछ लोग इसे आपकी कमजोरी समझ आपसे आर्थिक फायदा अवश्य ही उठा लें पर ग्लानि भाव से सदा दबे रहेगें.
* मैं स्वयं नहीं जनता की अद्रश्य शक्ति अभी मुझसे और कितनी कड़ियाँ लिखवायेंगी, पर विश्वास रखे. कि सब की सब इस ब्लॉग पर पोस्ट करूंगा.
* सनद रहे की यदि ईश्वर ने चाहा तो "श्रद्धा" के इन तमाम और आने वाली कड़ियों को पुस्तक बद्ध कर प्रकाशित करवाऊँगा पर मूल्य के नाम पर "परम श्रद्धा और मैं कुछ भी नहीं जानता- यह भाव" ही रहेगा.
परम स्नेह के साथ आपका
चन्द्र मोहन गुप्त
Sacchi shraddha panktiyon mein bhi jhalakti hai.
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