भाई होली बीते ४ दिन हो चुके और ४ दिन की चांदनी जैसे खो , अंधेरे को प्रश्रय देती है, वैसे ही मस्ती के ४ दिन भी गुज़र गए अपनी जिंदगी में। अब तो हर कोई फ़िर वही पुराने ढर्रे पर अपनी- अपनी "टिर्री"( ज्ञान दत्त जी के ब्लॉग की प्रस्तुति से ) दौड़ा रहे होंगें।
हमें भी लगा की हम भी अपनी "श्रद्धा" की "टिर्री" ब्लॉग जगत की सपाट सड़क पर पुनः दौडाएं, और इसीलिये एक कटु सत्य लेकर ही उपस्थित हुआ हूँ ..........................
श्रद्धा
(४८)
कितना अजमाया कटु सत्य यहाँ
है "खाली हाथ आना,खाली हाथ जाना"
रहे करते ता-उम्र फ़िर भी सदा जतन
है संपत्ति -हैसियत कुछ और बढाना
हुए अतिव्यस्त,मकड़जाल सा ताना-बाना
आह! छोटा सा भी परिवार हो गया अनजाना
पनपाये संबंधों-संस्कारों में श्रद्धा ही
शान्ति, संतुष्टि,सहकार सी अप्रतिम भावना
12 comments:
पनपाये संबंधों-संस्कारों में श्रद्धा ही
शान्ति, संतुष्टि,सहकार सी अप्रतिम भावना
"बहुत सुंदर सत्य वचन ..."
Regards
उत्तम अति उत्तम!
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गुलाबी कोंपलें
बहुत खूब चन्द्र मोहन जी ...सत्य कटु होता है पर सत्य तो सत्य है आखिर !!!!!!!!!!
रहे करते ता-उम्र फ़िर भी सदा जतन
है संपत्ति -हैसियत कुछ और बढाना
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सही कहा! अगर अब भी मात्र जीना शुरू कर दें, निन्यानबे के चक्कर से अलग, तो धन्य हो जाये यह जीवन।
गुप्ता जी बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ...बहुत ही शशक्त रचना पढने को मिली यहाँ...आप की लेखनी सदा यूँ ही चलती रहे इसी कामना के साथ
नीरज
'श्रद्धा" की yah "टिर्री"
ek katu sty se parichay karati hui .
मकड़जाल सा ताना-बाना..bas yahi to hai..jis mein sab uljh kar khud ko bhi bhul rahey hain.
aaj ke badaltey samaaj ko aayeena dikhati hai aap ki kavita.
ज़िन्दगी की सच्चाईयोँ से परिचित कराती रचना
satyato satya hi hai, kavita ne us par muhar laga di hai. sunder rachna. badhai
chandramoham jee thanks for comming on my blog. bahut achha likha hai
संपत्ति और हैसियत बढ़ाने का कोई क्या इसलिए जतन न करे कि खाली हाथ जाना है /यह कर्म भूमि है ,कर्म भी करना चाहिए ,हैसियत भी बढ़ाना चाहिए ,संपत्ति भी अर्जित करना चाहिए ,बस देखना यह है कि इसमें किसी का दिल न दुखे ,अन्याय न हो और जैसा कि आपने लिखा है श्रद्धा ,शांति ,संतुष्टि ,की भी ब्रद्धि करता रहे ,बस ख्याल यही रखना है कि -पर हित सरिस धरम नहीं भाई ,पर पीडा सम नहीं अधमाई -
प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।
श्रद्धा- विश्वास- तपस्या,प्रेम
आदि के साथ देखें खाना,पीना सोना,रोना याने हर उस शब्द के पीछे ना मिलेगा जो अति सर्वत्र..के तहत आता है भागना चलना गिनतेजाएं
लेकिन श्रद्धा- विश्वास- तपस्या प्रेम
के पीछे ’ना” क्यों नही ं है जरा सोचें
अगर कविता या गज़ल में रुचि हो तो मेरे ब्लॉग पर आएं
http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम’
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