श्रद्धा
(४५)
प्रगति के सोपानों की तस्वीरें तूने
कमाई के चढ़ते ग्राफों में ही ढाली है
कर दर-किनार मानव-मूल्यों को
कमाने की आपा-धापी ही पाली है
निःशक्त बनोगे कालांतर में जब
अपने तो क्या, ग्राफ भी बेमानी होंगें
जो रमें मानव-मूल्यों में श्रद्धा से
तो सेवार्थियों ने भीड़ जमा ली है
13 comments:
पैसे का निरादर और पैसे के प्रति आसक्ति - दोनो में ही दोष है। धन को सार्थक ईश्वरीय शक्ति के रूप में लेना ही सही रास्ता है।
आपने सही लिखा है जी।
तर्क संयुक्त!
भाई मुमुक्ष,
सादर वंदन,
आज की आपा-धापी भरे युग में जहाँ जीवन मूल्यों की खोज किसी ग्राफिक पैटर्न को समझने भर तक ही सीमित रह गई हो या ट्रैण्ड एनालिसिस तक.
आपकी रचना विचार जगाती है.
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत अच्छी अद्भुत रचना ...
प्रगति के सोपानों की तस्वीरें तूने
कमाई के चढ़ते ग्राफों में ही ढाली है
कर दर-किनार मानव-मूल्यों को
कमाने की आपा-धापी ही पाली है........
एक प्रभावशाली अभिव्यक्ति है यह,
सच को बखूबी प्रस्तुत किया है........काफी अच्छी लगी
प्रगति के सोपानों की तस्वीरें तूने
कमाई के चढ़ते ग्राफों में ही ढाली है
कर दर-किनार मानव-मूल्यों को
कमाने की आपा-धापी ही पाली है
zindagee kee hakeeqat bayaan kar dee aapne itne kam shabdon mein .
badhaai
कर दर-किनार मानव-मूल्यों को
कमाने की आपा-धापी ही पाली है
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।
Mumukshh ji bhot acchi rachna....BDHAI..!!!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है, कुछ सोचने को भी बाध्य करती है।
महावीर शर्मा
प्रकृति ने हमें केवल प्रेम के लिए यहाँ भेजा है. इसे किसी दायरे में नहीं बाधा जा सकता है. बस इसे सही तरीके से परिभाषित करने की आवश्यकता है. ***वैलेंटाइन डे की आप सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ***
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'युवा' ब्लॉग पर आपकी अनुपम अभिव्यक्तियों का स्वागत है !!!
अब अच्छे विचारोँ को आगे बढाने के अनुरोध के साथ
आपसे लिखने का अनुरोध है
bilkul sahi likha hai aapne.
kam shabdome sab kuchh kah diya..
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