Friday 1 October, 2010

कोई कड़ी 'विश्वास" की , टूट गहरी चुभी होगी

दे न सके सम्मान तुम, बात कुछ तो रही होगी
कोई कड़ी 'विश्वास" की , टूट गहरी चुभी होगी

"तीर" बहुत "शब्दों" के, "शब्दवेधी" सा कौशल ना
कौन करे अभ्यास अब, "वक्त" की ही कमी होगी

"शतरंजिया " चालों कि वो बादशाहत-अदाएं भी
आज कुंद-सी हो गई, "बात" कुछ तो खली होगी

"रार' ठनी मन में जब , "काल" समझो बुरा तय है
ईश-शरण में रमने पर, मानसिक तुष्टि मिली होगी

ठाठ "मुमुक्षु" के पास भी, बेखटक सो रहा वह तो
गहन निंद्रा जी-भर मिली, "पाक-मन" से लुभी होगी


39 comments:

डॉ टी एस दराल said...

वर्तमान परिवेश में खूबसूरत ग़ज़ल ।
छुट्टियों में स्वागत है ।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर गजल है। बहुत बहुत बधाई।

वीरेंद्र सिंह said...

बेहद उम्दा रचना ...
आभार और बधाई...

ZEAL said...

.

कोई कड़ी 'विश्वास" की ,टूट गहरी चुभी होगी ...

अक्सर ऐसा होता है । मन में जब कहीं कोई विश्वास की कड़ी टूटती है तो सामने वाले ke लिए सम्मान में कमी हो ही जाती है।

बेहद खूबसूरत और सार्थक रचना।

आभार।

.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

"शतरंजिया " चालों कि वो बादशाहत-अदाएं भी
आज कुंद-सी हो गई, "बात" कुछ तो खली होगी

बहुत गहरी बात कही है ..अच्छी गज़ल

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन रचान पिरोयी है, शब्दों की।

निर्मला कपिला said...

"तीर" बहुत "शब्दों" के, "शब्दवेधी" सा कौशल ना
कौन करे अभ्यास अब, "वक्त" की ही कमी होगी

"शतरंजिया " चालों कि वो बादशाहत-अदाएं भी
आज कुंद-सी हो गई, "बात" कुछ तो खली होगी
बहुत खूबसूरत आपकी लेखनी मे तो माँ शार्दे का निवास है। बधाई आपको।

महेन्‍द्र वर्मा said...

ईश शरण में रमने पर मानसिक तुष्टि मिली होगी,
मेरे ब्लाग पर आइए तो ,मन की बगिया खिली होगी।

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने ! इस उम्दा ग़ज़ल के लिए आपको बधाई!

शरद कोकास said...

इस रचना में शब्दों का बेहतरीन प्रयोग है ।

राज भाटिय़ा said...

अति खुब सुरत गजल जी धन्यवाद

Rohit Singh said...

अब मैं क्या कहूं। मेरी पीठ वैसे भी बहुत ही घायल है। उस दर्द को जाने-अनजाने खुरच डालता हूं। आप टिपियाने के लिए आएं तो क्या बात है।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

गहरी है!
आशीष

कडुवासच said...

... bahut sundar ... behatreen !!!

Mumukshh Ki Rachanain said...

आनंद वर्धन ओझा जी ने मुझे मेल पर निम्न टिपण्णी भेजी है ....

चन्द्रमोहनजी,
लगाता है, तीर खाए कीर का कोई पीर आज बोला है ! ज़िन्दगी है तो ऐसे अनुभवों की कमी भी नहीं ! आपकी इस रचना में सादगी और संजीदगी का अद्भुत सम्मिश्रण है ! 'तीर खाइए और पीर सहिये--यही जीवन है, तो ऐसा ही सही !!
सप्रीत--आ

Prem Farukhabadi said...

दे न सके सम्मान तुम, बात कुछ तो रही होगी कोई कड़ी 'विश्वास" की , टूट गहरी चुभी होगी

dil ke the mahman tum,बात कुछ तो रही होगी
bane rahe anjaan tum ,बात कुछ तो रही होगी

बहुत सुन्दर .बधाई!!

अजित गुप्ता का कोना said...

दे न सके सम्मान तुम, बात कुछ तो रही होगी
कोई कड़ी 'विश्वास" की , टूट गहरी चुभी होगी
एक-एक शब्‍द प्रत्‍येक शेर के लाजवाब हैं। बहुत अच्‍छी गजल के लिए बधाई।

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर गजल है। बहुत बहुत बधाई।

संजय भास्‍कर said...

ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

Roshani said...

माफ़ करिए चन्द्र मोहन जी देरी से आने के लिए. आप यह मत समझिये कि आपने टिपण्णी की इसलिए हम आये :) आप अगर नहीं भी करते तो भी हम यहाँ जरूर आते क्योंकि विद्वता का सम्मान करने में हमें भी गर्व होता है. और वैसे भी हम आपकी हिंदी के कायल हैं पर इन दिनों आप नियमित रचना नहीं कर रहे हैं और आपका पुराना अंदाज़ कहीं खो सा गया है.
संक्षिप्त पर गहरी बात कही है आपने इन ग़ज़लों में......
आभार
रोशनी

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

तीर" बहुत "शब्दों" के, "शब्दवेधी" सा कौशल ना
कौन करे अभ्यास अब, "वक्त" की ही कमी होगी


क्या खूब कहा है आपने.... यह पंक्तियाँ तो बहुत ही लाजवाब हैं..... बहुत ही अच्छी लगी यह ग़ज़ल...

दिगम्बर नासवा said...

"रार' ठनी मन में जब , "काल" समझो बुरा तय है
ईश-शरण में रमने पर, मानसिक तुष्टि मिली होगी

सच कहा है .... तभी तो ईश्वर की शरण से ज़्यादा कुछ नही .... मन को निर्मल रखना चाहिए .....

रश्मि प्रभा... said...

"तीर" बहुत "शब्दों" के, "शब्दवेधी" सा कौशल ना
कौन करे अभ्यास अब, "वक्त" की ही कमी होगी
bahut badhiyaa

अजय कुमार said...

उम्दा गजल ,बधाई

RAJNISH PARIHAR said...

बहुत सुन्दर गजल है। आभार और बधाई...

वाणी गीत said...

यूँ तो सभी खास है मगर ...
दे न सके सम्मान तुम, बात कुछ तो रही होगी
कोई कड़ी 'विश्वास" की , टूट गहरी चुभी होगी
बहुत अच्छी लगी यह पंक्ति ...सम्मान काम होने के पीछे कहीं न कहीं गहरी चुभन होती है ...स्त्री हो या पुरुष ...!

मनोज भारती said...

एक-एक शेर उम्दा !!!
"रार' ठनी मन में जब , "काल" समझो बुरा तय है ईश-शरण में रमने पर, मानसिक तुष्टि मिली होगी

यह तो बहुत ही अच्छा लगा

नीरज गोस्वामी said...

प्रिय गुप्ता जी आज आपकी रचना पढ़ मन गाद गाद हो गया शब्द और भाव अनूठे पिरोये हैं आपने इस रचना में...बहुत खूब...यूँ ही लिखते रहें....आपको पढ़ना एक खूबसूरत अनुभव से गुजरने से कम नहीं...

नीरज

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

"तीर" बहुत "शब्दों" के, "शब्दवेधी" सा कौशल ना
कौन करे अभ्यास अब, "वक्त" की ही कमी होगी !!

लाजवाब! रचना बहुत ही गहरे भाव समेटे हुए....

Smart Indian said...

खूबसूरत!

ज्योति सिंह said...

दे न सके सम्मान तुम, बात कुछ तो रही होगी
कोई कड़ी 'विश्वास" की , टूट गहरी चुभी होगी

"तीर" बहुत "शब्दों" के, "शब्दवेधी" सा कौशल ना
कौन करे अभ्यास अब, "वक्त" की ही कमी होगी
aapko dekh kar bahut dino baad bahut khushi hui ,vandana se khabar mili ki aap kahi baahar rahte hai is karan post daal nahi paate .
aaj ki gazal bahut hi shaandaar hai .aap sada hi sundar likhte hai .

BrijmohanShrivastava said...

कुछ न कुछ बात तो होगी जो तुम सम्मान न दे सके ’’कुछ तो मजबूरियां रही होंगी आदमी यूं बेवफा नहीं होता ’’शतरंज की चाल और वादशाहत की अदायें वल्लाह ऐसी कौन सी बात खल गई जो चाल और अदायें दौनों कुन्द हो गई ।मन में लडाई का निश्चय कर लिया समझो बुरा वक्त आगया ।ईश शरण और तुष्टि का तो सिध्दान्त ही है ।अति श्रेष्ठ रचना ।

रंजू भाटिया said...

हर शेर लाजवाब है बहुत सुन्दर

योगेन्द्र मौदगिल said...

wah bhai ji wah.....

Unknown said...

कोई कड़ी 'विश्वास" की , टूट गहरी चुभी होगी

बेहतरीन रचना...

sandhyagupta said...

"तीर" बहुत "शब्दों" के, "शब्दवेधी" सा कौशल ना
कौन करे अभ्यास अब, "वक्त" की ही कमी होगी

gehre bhav.sundar prastuti.badhai.

Asha Joglekar said...

विश्वास की कडी टूटती है तो गहरी चुभती है । सही कहा ।

Alpana Verma said...

"तीर" बहुत "शब्दों" के, "शब्दवेधी" सा कौशल ना
कौन करे अभ्यास अब, "वक्त" की ही कमी होगी '

वाह! बहुत खूब कहा है.
......................
बहुत ही अच्छी गज़ल है.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

"रार' ठनी मन में जब , "काल" समझो बुरा तय है
ईश-शरण में रमने पर, मानसिक तुष्टि मिली होगी
..बहुत सुंदर।
..पूरी गज़ल पढ़कर जो भाव बनता है वह लाज़वाब है।