Sunday 28 February, 2010

होली का पर्व, नफ़रत, हसरत और कसरत, ये होली सबकी

होली का पर्व



होली का पर्व
रंगों का पर्व,
मस्ती का पर्व,
ख़ुशी का पर्व,
मदहोशी का पर्व,
खाने-पीने का पर्व,
खिलाने-पिलाने का पर्व,
कुल मिला कर एक ऐसा पर्व
जहाँ कुछ भी गमगीनी नहीं,
जहाँ कुछ भी बुरा लगने जैसा भी कुछ नहीं।





शायद यही एक ऐसा पर्व है
जो गले मिलाता है
जो भेदभाव मिटाता है
जो सबको एक कर जाता है
जो दिल को खुश कर जाता है
जो हर मनस्थिति के व्यक्ति को अपने रंग में रंग लेने की क्षमता रखता है,
जो प्रेम के प्रभावों को कम से कम एक दिन के लिए तो साकार कर जाता है
जो स्वतः ही आभास दिलाता है कि यदि मन चंगा हो तो कठौती में भी गंगा नज़र आ जाती है.
जो सबको मन-वचन और कर्म से एक सा कम से कम एक दिन के लिए तो कर ही देता है





काश हम इस के महत्त्व को समझ पाते और...........
हानि-लाभ के गणित से निकल कर मानवीय हो पाते है.
जो करना चाहिए उसे कर पाते,
मानवीय और जन-हियार्थ मिसालें कायम कर पातें
द्वेष - दुर्भावनाओं से मुक्त हो पाते
न बुरा सुनते
न बुरा देखते
न बुरा कहते
कुछ कहने के पहले वैसा कर के अहसास कर के तब बोलने की हिमाकत करते
बातें कम, काम तब शायद ज्यादा होते,
दिखावटी नहीं, सतही चौहमुखी तरक्की का आभास नहीं होता बल्कि तरक्की का इतिहास बनता,
होली के थोड़े से रंगों की फुहारों की तरह यह सबके जीवन में रंग भर जाता.............
शायद "जियो और जीने दो" मज़बूरी में तो नहीं कहना पड़ता....................
फायदा का लालच दिखा कर भ्रमित करने की आवश्यकता तो नहीं रहती,
लूटने और बेवकूफ बना कर कमाने के नए-नए तरीके ईजाद करने में उर्जा और शक्ति तो व्यर्थ में व्यय न करनी पड़ती
डर, खौफ तो न रहता
किसी को तो अपना कह सकते
बे-हिसाब अनावश्यक कार्य और खर्च नगण्य हो जाते
कानून में छेद खोजने और तदनुसार बरी होने के अनावश्यक प्रयास न होते
तब समय होता
अपने लिए,
अपनों के लिए
सबके लिए
कर्म से, सेवा-भाव में आगे आने की होड़ होती
मानसिक और आत्मिक शांति के दर्शन होते...........



पर्व भी मानते हैं हम
अपने लिए,
अपनों के लिए
सबके लिए
इस दौरान कर्म से, सेवा-भाव में आगे आने की होड़ होती
मानसिक और आत्मिक शांति के दर्शन होते...........



अतः निवेदन है कि पर्व जरुर मनाये, पर महज़ औपचारिकता वश नहीं बल्कि उसकी भावनाओं को कायम रखने की मनस्थिति को भी जगाये.....
इतिशुभं
होली पर हार्दिक बधाइयाँ.................


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एक रचना

नफ़रत, हसरत और कसरत


गिरगिट सरीखों के चर्मों पर
हर दिवस "होली" दिखती है.
इंसानों की इस दुनिया में तो
इक बार साल में ये पड़ती है



रखते सब गिरगिट से नफ़रत
पूरी होती "होली" से हसरत
:अति" सदा सिद्ध बुरे होते हैं
भोजन उतना जितनी कसरत
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एक और रचना



'तन-मन रंगों'



नहीं यहाँ कोई साला साली

ना ही प्रेम दीवानी सी कोई

पत्नी भी रंगी अनजानी सी

करे ठिठोली मिल सब कोई



समवेत स्वरों में कैसे जाने

रंग विरंगों में कैसे पहचाने

मदहोशी रंगों की पा कर

बदरंगों के भी अपने पैमाने



'बुरा न मानो होली है' सब की

' बुरा न सुनो' ये होली सबकी

'करो मजाक' ये होली सबकी

'तन-मन रंगों' ये होली सबकी




14 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

BAHUT KHOOBSOORAT,
HOLEE KEE SHUBHKAMANAYE.

Alpana Verma said...

'हानि-लाभ के गणित से निकल कर मानवीय हो पाते है.
जो करना चाहिए उसे कर पाते,
मानवीय और जन-हियार्थ मिसालें कायम कर पातें
द्वेष - दुर्भावनाओं से मुक्त हो पाते'

--सुन्दर सन्देश देती हुई बहुत अच्छी पोस्ट.
****रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाये****

डॉ टी एस दराल said...

होली पर बहुत सही बातें कहीं हैं आपने । काश सब लोग इनका पालन कर सकें ।
बहरहाल , अभी तो सब होली के रंग में रंगे हैं।
और होली त्यौहार है --

रंगों का , उमंगों का
खाने खिलाने का , हंसने हंसाने का
मिलने मिलाने का , और सबको
प्रेम से गले लगाने का ।

होली की हार्दिक शुभकामनायें, चन्द्र मोहन जी ।

राज भाटिय़ा said...

आप और आप के परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएं !!
आप की तीनो रचनाये बहुत सुंदर लगी, धन्यवाद

Urmi said...

आपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

होली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.

ज्योति सिंह said...

पर्व भी मानते हैं हम
अपने लिए,
अपनों के लिए
सबके लिए
इस दौरान कर्म से, सेवा-भाव में आगे आने की होड़ होती
मानसिक और आत्मिक शांति के दर्शन होते...........
bahut khoobsurat rachna lagi sabhi ,sabse adhik khushi aapki waapsi ne di main apne mitr ke yahan baathi rahi aur achanak aapki tippani dekh khush ho gayi ,aur turant puchhi chanra mohan ji kitne din baad dikhe tab usne saari samsyaa ka vivaran diya aur holi milan karne aa gayi ,aapko pawan parv ki badhaiyaan

निर्मला कपिला said...

काश हम इस के महत्त्व को समझ पाते और...........
हानि-लाभ के गणित से निकल कर मानवीय हो पाते है.
जो करना चाहिए उसे कर पाते,
मानवीय और जन-हियार्थ मिसालें कायम कर पातें
द्वेष - दुर्भावनाओं से मुक्त हो पाते
न बुरा सुनते
न बुरा देखते
न बुरा कहते
बहुत सही सन्देश दिया है आपने। दोनो रचनायें दिल को छू गयी। आपको व परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें

shama said...

शायद यही एक ऐसा पर्व है
जो गले मिलाता है
जो भेदभाव मिटाता है
जो सबको एक कर जाता है
जो दिल को खुश कर जाता है
Bahut khoob! Mubarak ho holi!

गर्दूं-गाफिल said...

रंग लेकर के आई है तुम्हारे द्वार पर टोली
उमंगें ले हवाओं में खड़ी है सामने होली

निकलो बाहं फैलाये अंक में प्रीत को भर लो
हारने दिल खड़े है हम जीत को आज तुम वर लो
मधुर उल्लास की थिरकन में आके शामिल हो जाओ
लिए शुभ कामना आयी है देखो द्वार पर होली

Roshani said...

Maaf kariye der se comment ke liye.
Aasha hai aapki Holi bahut acchi rahi hogi.
Navratri ke parv par aap sabhi ko hardik shubhkamnayen.

kshama said...

Rachnayen to sabhi behad sundar hain..haan, ye sach hai,ki, kahin ham manveeytaa, jeevan ki saral,sahajta bhool rahe hain..ek naqli sabhyata ka naqab odhe chale ja rahe hain..

kshama said...

Kya baat hai,bade dinon se kuchh naya nahi likha? Intezar hai!

kshama said...

Kya baat hai,jo itne dinon se kuchh likha nahi?