हो दोहन भरपूर
(१)
भिड़े स्वार्थ से स्वार्थ, जीतन को एक बार
स्वारथ मिलन कराये, अंत समय थक-हार
(२)
पढ़-लिख कर साहब बनें, मदहोशी में चूर
नासमझी जब-जब चुभी, हड़काते भरपूर
(३)
कुरसी वाले साहिबां, करमी भया मजूर
चाकी ऐसी चल पडी, हो दोहन भरपूर
(४)
हीरा खोजै जौहरी , ढोल बजावत जाय
तोल-मोल भारी पड़ा, दिया खोट बतलाय
(५)
नष्ट कहाँ होती उरजा, बदल रूप रह जाय
फितरत माटी-पूत री, माटी में मिल जाय
(६)
आविष्कारों को नमन, करता सब संसार
शोषित प्रकृति दर्शा रही, कुपिता बारंबार
(७)
दो जून रोटी खातिर, चारों पहर धमाल
पढ़े-लिखों ने कर दिया, बद से बदतर हाल
(८)
भरी हुई बस्ती मस्त, अपने-अपने काम
जीवन भया बड़ा सुघड़, बाधायें गुमनाम
भिड़े स्वार्थ से स्वार्थ, जीतन को एक बार
स्वारथ मिलन कराये, अंत समय थक-हार
(२)
पढ़-लिख कर साहब बनें, मदहोशी में चूर
नासमझी जब-जब चुभी, हड़काते भरपूर
(३)
कुरसी वाले साहिबां, करमी भया मजूर
चाकी ऐसी चल पडी, हो दोहन भरपूर
(४)
हीरा खोजै जौहरी , ढोल बजावत जाय
तोल-मोल भारी पड़ा, दिया खोट बतलाय
(५)
नष्ट कहाँ होती उरजा, बदल रूप रह जाय
फितरत माटी-पूत री, माटी में मिल जाय
(६)
आविष्कारों को नमन, करता सब संसार
शोषित प्रकृति दर्शा रही, कुपिता बारंबार
(७)
दो जून रोटी खातिर, चारों पहर धमाल
पढ़े-लिखों ने कर दिया, बद से बदतर हाल
(८)
भरी हुई बस्ती मस्त, अपने-अपने काम
जीवन भया बड़ा सुघड़, बाधायें गुमनाम
26 comments:
आविष्कारों को नमन, करता सब संसार
शोषित प्रकृति दर्शा रही, कुपिता बारंबार
" सभी दोहे कोई कोई न सार्थक संदेश समेटे हैं .....और ये शब्द तो जैसे प्रक्रति की दुर्दशा को बता रहे हैं.....सच कहा प्रक्रति भी चाहती है की उन्नति के साथ साथ उसका भी ध्यान रखा जाये...."
Regards
सभी दोहे कमाल के. बधाई.
हीरा खोजै जौहरी , ढोल बजावत जाय
तोल-मोल भारी पड़ा, दिया खोट बतलाय
चन्द्र मोहन जी कहाँ - कहाँ से लाते हैं ये खजाना......??
दो जून रोटी खातिर, चारों पहर धमाल
पढ़े-लिखों ने कर दिया, बद से बदतर हाल
वाह...वाह......!!
हीरा खोजै जौहरी , ढोल बजावत जाय
तोल-मोल भारी पड़ा, दिया खोट बतलाय...
kya khoob likha hai aapne.
पढ़-लिख कर साहब बनें, मदहोशी में चूर
नासमझी जब-जब चुभी, हड़काते भरपूर.....
bahut khub...
aapke is ras ka aanand kar humko kafi sukoon mila .. shukria padwane ko....
हीरा खोजै जौहरी , ढोल बजावत जाय
तोल-मोल भारी पड़ा, दिया खोट बतलाय
सच कहा आपने
नाच न जाने आंगन टेढ़ा
श्याम सखा
aapke dohon me badee mar hai . yug yatharth ko kabeer kee tarah dikha rahe hain. sochne ko mazboor karte .khas karke
padhe likhon ne...................!
हीरा खोजै जौहरी , ढोल बजावत जाय
तोल-मोल भारी पड़ा, दिया खोट बतलाय
भई वाह्! चन्द्रमोहन जी, सच का क्या खूब चित्रण किया है........
sabhi dohe umda, sachai sanjoye huye. badhai.
आविष्कारों को नमन, करता सब संसार
शोषित प्रकृति दर्शा रही, कुपिता बारंबार
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पढ़-लिख कर साहब बनें, मदहोशी में चूर
नासमझी जब-जब चुभी, हड़काते भरपूर
-बहुत खूब!!!!!!!
सभी दोहे धारदार हैं!
वाह, स्वार्थ एस्ट्रिंजेण्ट भी है और फेवीकोल भी। सुन्दर दोहे और सामयिक।
दो जून रोटी खातिर, चारों पहर धमाल
पढ़े-लिखों ने कर दिया, बद से बदतर हाल
वाह...सजीव चित्रण्
Excellent creativity. I appreciate and complement your direction of thought and putting them together in rythemic poems.
Regards
Om Prakash Paliwal
वाह अच्छे दोहे हैं-
अक्षर जब शब्द बनते हैं
आप का ब्लोग मुझे बहुत अच्छा लगा और आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
गुप्ता जी...देर से आने के लिए एक बार फिर क्षमा....बहुत अच्छे दोहे लिखे हैं आपने...लेकिन मैं सिर्फ वाह वाह करने नहीं आया...दोहा लेखन कठिन विधा है...इस में लय का होना अनिवार्य है...आपके कुछ दोहे दोषपूर्ण हैं...इन्हें गा कर देखिये स्वयं समझ जायेंगे...आप उतरोतर अच्छा लिखें इसी कामना के साथ...
नीरज
sach kahaa neeraj ji ne,doha lekhan kathin vidha hai aur aapne use bakhoobi saadh liya hai.
कम शब्दों में आपने, ऐसा किया कमाल,
पढ़कर दोहे आपके, समीरा भये निहाल....
-जय हो!!!
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सभी दोहे बहुत अच्छे हैं,यह अधिक पसंद आया....
आविष्कारों को नमन, करता सब संसार
शोषित प्रकृति दर्शा रही, कुपिता बारंबार
दो जून रोटी खातिर, चारों पहर धमाल
पढ़े-लिखों ने कर दिया, बद से बदतर हाल
-बिलकुल सही कहा.
प्रिय ब्लागर भाई और बहनों,
आप लोगों ने जिस प्यार और अपनत्व से मेरे ब्लाग पर आकर मेरी पोस्ट को पढ़ा और बहमूल्य आशीषवचनों से नवाजा, तारीफ की, कमियां भी गिनाई, उन सब का मैं तहे दिल से स्वागत करता हूँ.
आशा है भविष्य में आप इससे भी कुछ बेहतर ही मेरे ब्लॉग पर पायेगें और लगातार इसी तरह मेरे ब्लॉग पर आकर प्रतिक्रियाओं से अवगत करते रहेगें.
एक बार पुनः आप सभी का अभिनन्दन और आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
सभी दोहे सुन्दर और सामयिक ।
कमाल है. बधाई
भई वाह्
सच कहा प्रक्रति भी चाहती है की उन्नति के साथ साथ उसका भी ध्यान रखा जाये...."
नहीं छुआ जिसने कभी,काकद-कलम निज हाथ
उस कबीर के दोहरे , सब गाएं मिल साथ
har doha sarthak or sundar
aapka lekhan yakinan jivan mein utarne ke liye hai.
aap jaise rachnakaar ka mere shabdo ko padhna yakinan fak'r ki baat hai.
दोहे अच्छे हैं
- विजय
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