श्रद्धा
(५१)
रही चाह किसको अपमानों की
सम्मान सदा ही सबको भाता है
हो व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र में
सुकून सदा ही घर में पाता है
कितनी कैसी भी दौड़ लगा ले मन
मिल पाता "गोदी" ही में अपनापन
हो श्रद्धामय पाई प्रकृति गोद जिसने
अनुभूति चरम-सुख की बतलाता है
19 comments:
रही चाह किसको अपमानों की
सम्मान सदा ही सबको भाता है
हो व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र में
सुकून सदा ही घर में पाता है
" सत्य वचन ......हर एक मनुष्य की यही कामना है..."
Regards
श्रद्धामय पाई प्रकृति गोद जिसने
अनुभूति चरम-सुख की बतलाता है
एक सच लिखा है.प्रकृति के पास हर दुःख की दवा है.
अनुभूति चरम-सुख की बतलाता है...
सुंदर अनुभूति .
हो व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र में
सुकून सदा ही घर में पाता है
बिलकुल सही कहा है आपने.
कितनी कैसी भी दौड़ लगा ले मन
मिल पाता "गोदी" ही में अपनापन
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१००% सच!
सुंदर अनुभूति ......
प्राकृतिक छटा के नजदीक जाओ । वहां खुशियाँ बिखरी मिलेगी । उन्हें समेट लो । अन्यत्र भटकने से कुछ हासिल नही होगा । जिंदगी का अन्तिम सत्य वही है । अब भी जान लो .....
"कितनी कैसी भी दौड़ लगा ले मन
मिल पाता "गोदी" ही में अपनापन"
इन पंक्तियों के माध्यम से पूर्णत: सत्य को दर्शाया है आपने........
कितनी कैसी भी दौड़ लगा ले मन
मिल पाता "गोदी" ही में अपनापन
... अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।
shabdo me ghaharayi hai.. post achchi lagi..... very nice........
गुप्ता जी बेहद शानदार बात आपने अपने कविता के जरिए कही है । इन कविता ने दिल की गहराई को छुआ है खासकर आपने मामिॆक प्रसंग को भी शामिल किया है जो बेहद शानदार है शुक्रिया
सुन्दर अभिव्यक्ति अच्छी कविता
मेरी ब्लॉग जगत से लम्बी अनुपस्तिथि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
nice post...
सही कहा..अच्छी कविता .
अभिनव-सकारात्मक प्रस्तुति पर बधाई।
थक-कर लुटकर वापिस लौटा
घर आखिर घर था क्या करता
श्याम सखा
पूरी गज़ल हेतु-गज़ल में रुचि हो तो मेरे ब्लॉग पर आएं
http://gazalkbahane.blogspot.com/
umda, sarahniya rachna.
रही चाह किसको अपमानों की
सम्मान सदा ही सबको भाता है
हो व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र में
सुकून सदा ही घर में पाता है
आपकी चंद पंक्तियाँ प्रेरणा से भरी होती हैं.......!! शुक्रिया...!!
Bahut khub likha hai.Badhai.
व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र मेंसुकून सदा ही घर में पाता है
सत्य तो यही है ,लिखते रहिये ,शुभकामनायें
भाव अच्छे हैँ .
आपकी बात पढ्कर
मेरे मन मेँ आया कि
ढूँढ रहे हैँ सब अपनापन
दौड लगा कर मिल क्या पाये
कैसे मिल पाये सम्मान
कैसे जीवन मेँ सुख आये
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