अप्रैल माह का प्रथम दिवस.................
अपनी विविधिता और विचित्रिता की कहानी लिए साल में एक बार दस्तक देता ही है.
होली की हुडदंग के बाद हंसी-ठिठोली, मजाक करने, करवाने, उल्लू बनाने, बनवाने का एक और अनोखा मौका.
मौका या अवसर भी ऐसा जहाँ सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे को बेवकूफ बनाने की होड़, मतलब कि मेरा वाला सुपर्ब आइडिया था...........मूरख बनाने का था.
इंसानी दिमाग भी इस मौके पर कितना संवेदनशील ही नहीं शातिर भी हो जाता है
संवेदनशील इसलिए कि मूरख बनने से बच सके और शातिर इस लिए कि मूरख कैसे बना सके.
शतरंज की तरह शाह और मात का यह यह खेल दिन भर बदस्तूर जारी रहता है.
मैं इस अवसर का उपयोग बिना किसी ख़ास लाग-लपेट के सीधे-सपाट शब्दों में दोहे के रूप में कर रहा हूँ.
यदि किसी को इससे ठेस लगे तो क्षमाप्रार्थी. प्रथम अप्रैल का मजाक समझ माफ़ कर दें.
यदि कोई इससे कुछ ग्रहण कर सके तो उसे साधुवाद.
कोई अपनी भीनी-भीनी टिप्पणियों से धो सके तो उसका शुक्रगुजार.............
अब ज्यादा कुछ न कह कर आप सब के नज़रे-इनायत है ..................
ऐसा विस्तृत संस्कार
(१)
जित देखा तिन पाइयाँ, बोलन में झकझोर
बात न समझें ढंग से, बहस करत पुरजोर
(२)
बोले बिन कैसे रहे , पेट पिरावै पुरजोर
लिख कर देवन जो कहा, बने सभी मुंहचोर
(३)
फटकारे जो अधिकारी, अंहकार ही झल्काए
कर टीम-भावना सिफर, विभाग-नींव खिसकाए
(४)
होने पर बच्चों के असफल, टीचर ये समझाए
ट्यूशन और लगवाओ , सफल हुआ तब जाए
(५)
दौर चला जब भी अच्छा,सफलता स्वयं भुनाएं
दिखे दोष दूजों में जब, समझो मंदी आये
(६)
रखे चाह संस्कारों की , ठोकर खुद दिलवाये
सूत्र लाभ का यही बना, धंदा ऐसा सिखलाये
(७)
बड़े हुए तो क्या हुआ, जैसे धूर्त - मक्कार
पाई-पाई पर लड़ मरे, पाएं सबकी धिक्कार
(८)
सुन्दर खुद को दिखलाना, मॉडल- सा व्यव्हार
छोटी होती दुनिया में, ऐसा विस्तृत संस्कार
(९)
उलट-पुलट खुद परखें, चलों चलें हम मॉल
टाइम पास, एसी साथ, करते रहे धमाल
(एसी का अर्थ एअर कंडीशनर से है)
(१०)
लिखे दवा जब डाक्टर, रहा मरीज़ घबराए
ठीक करे न करे पर , जेब तुरत हलकाए
(११)
गायक करै जब गायकी, कविवर तो पछ्ताएं
लिखे शब्द तो निःशब्द रहे, बोल उसी के छाये
(१२)
पढ़े-लिखों पर हँस रहा, कविरा खड़ा बाज़ार
पढ़ - पढ़ पाया चाकरी, अनपढ़ को दरबार
(१३)
नहीं छुआ जिसने कभी,काकद-कलम निज हाथ
उस कबीर के दोहरे , सब गाएं मिल साथ
(१४)
पोथी पढ़ - पढ़ जग मुआं, गुना बहुत यह दोहा
संग बच्चों भी यही चला, लिया न फिर भी लोहा
(१५)
पोथी वाले ज्ञानी जी , रह - रह ठोकर खाएं
ज्ञान बड़ा अनुभव का, अनुनादित कर बतलाये
अपनी विविधिता और विचित्रिता की कहानी लिए साल में एक बार दस्तक देता ही है.
होली की हुडदंग के बाद हंसी-ठिठोली, मजाक करने, करवाने, उल्लू बनाने, बनवाने का एक और अनोखा मौका.
मौका या अवसर भी ऐसा जहाँ सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे को बेवकूफ बनाने की होड़, मतलब कि मेरा वाला सुपर्ब आइडिया था...........मूरख बनाने का था.
इंसानी दिमाग भी इस मौके पर कितना संवेदनशील ही नहीं शातिर भी हो जाता है
संवेदनशील इसलिए कि मूरख बनने से बच सके और शातिर इस लिए कि मूरख कैसे बना सके.
शतरंज की तरह शाह और मात का यह यह खेल दिन भर बदस्तूर जारी रहता है.
मैं इस अवसर का उपयोग बिना किसी ख़ास लाग-लपेट के सीधे-सपाट शब्दों में दोहे के रूप में कर रहा हूँ.
यदि किसी को इससे ठेस लगे तो क्षमाप्रार्थी. प्रथम अप्रैल का मजाक समझ माफ़ कर दें.
यदि कोई इससे कुछ ग्रहण कर सके तो उसे साधुवाद.
कोई अपनी भीनी-भीनी टिप्पणियों से धो सके तो उसका शुक्रगुजार.............
अब ज्यादा कुछ न कह कर आप सब के नज़रे-इनायत है ..................
ऐसा विस्तृत संस्कार
(१)
जित देखा तिन पाइयाँ, बोलन में झकझोर
बात न समझें ढंग से, बहस करत पुरजोर
(२)
बोले बिन कैसे रहे , पेट पिरावै पुरजोर
लिख कर देवन जो कहा, बने सभी मुंहचोर
(३)
फटकारे जो अधिकारी, अंहकार ही झल्काए
कर टीम-भावना सिफर, विभाग-नींव खिसकाए
(४)
होने पर बच्चों के असफल, टीचर ये समझाए
ट्यूशन और लगवाओ , सफल हुआ तब जाए
(५)
दौर चला जब भी अच्छा,सफलता स्वयं भुनाएं
दिखे दोष दूजों में जब, समझो मंदी आये
(६)
रखे चाह संस्कारों की , ठोकर खुद दिलवाये
सूत्र लाभ का यही बना, धंदा ऐसा सिखलाये
(७)
बड़े हुए तो क्या हुआ, जैसे धूर्त - मक्कार
पाई-पाई पर लड़ मरे, पाएं सबकी धिक्कार
(८)
सुन्दर खुद को दिखलाना, मॉडल- सा व्यव्हार
छोटी होती दुनिया में, ऐसा विस्तृत संस्कार
(९)
उलट-पुलट खुद परखें, चलों चलें हम मॉल
टाइम पास, एसी साथ, करते रहे धमाल
(एसी का अर्थ एअर कंडीशनर से है)
(१०)
लिखे दवा जब डाक्टर, रहा मरीज़ घबराए
ठीक करे न करे पर , जेब तुरत हलकाए
(११)
गायक करै जब गायकी, कविवर तो पछ्ताएं
लिखे शब्द तो निःशब्द रहे, बोल उसी के छाये
(१२)
पढ़े-लिखों पर हँस रहा, कविरा खड़ा बाज़ार
पढ़ - पढ़ पाया चाकरी, अनपढ़ को दरबार
(१३)
नहीं छुआ जिसने कभी,काकद-कलम निज हाथ
उस कबीर के दोहरे , सब गाएं मिल साथ
(१४)
पोथी पढ़ - पढ़ जग मुआं, गुना बहुत यह दोहा
संग बच्चों भी यही चला, लिया न फिर भी लोहा
(१५)
पोथी वाले ज्ञानी जी , रह - रह ठोकर खाएं
ज्ञान बड़ा अनुभव का, अनुनादित कर बतलाये
18 comments:
कहीं-न-कहीं रोज ही मुर्ख बनाये जा रहे हैं हम. सभी दोहे अच्छे लगे.
सभी दोहे बहुत ही सुन्दर........
बड़ो कसैलो हो गयो,कर्वाचौथ त्योहार
पाँव है पूजै पति के,मन में है बैठा यार
मूरररख दिवस पर
श्याम सखा ‘श्याम’
दोहे अच्छे लगे....aisa laga ki nai duniya me pahunch gaya hoon .
वाह, वाह! ऐसा बढ़िया ठेलते रहें आप। हर दिन हो अप्रेल मासे प्रथम: दिवस:! :)
पढ़े-लिखों पर हँस रहा, कविरा खड़ा बाज़ार
पढ़ - पढ़ पाया चाकरी, अनपढ़ को दरबार
sabhi dohe achche lage. is dohe men kataksh bahut achcha laga. badhai.
पोथी पढ़ - पढ़ जग मुआं, गुना बहुत यह दोहा
संग बच्चों भी यही चला, लिया न फिर भी लोहा..
लिखते रहें -लिखते रहें -और लिखते रहें -
sabhi dohe ek se badhkar ek hain.Bahaut achche.
पढ़े-लिखों पर हँस रहा, कविरा खड़ा बाज़ार
पढ़ - पढ़ पाया चाकरी, अनपढ़ को दरबार
बहुत बढ़िया कहा गुप्ता जी....वाह...ये आपके सारे दोहों का सरताज दोहा है....
अब एक छोटी सी बात दोहा लेखन पर , देखिये ये एक कठिन विधा है जिसमें छंद और मात्राओं का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है, जो दोहे आपने लिखे हैं उनमें से कुछ को पढने से उनकी गेयता में रूकावट आती है , जब की दोहे एक सुर में पढने योग्य होने चाहियें...आप दोहों का सस्वर पाठ करें और फिर लिखें इस से बहुत से दोष अपने आप निकल जायेंगे...आशा है मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगे...
नीरज
आज के समय पर सही उतरते अर्थपूर्ण दोहे बहुत बढिया...नीरज की बात पर ध्यान देने पर सोने पर सुहागा हो जाएगा ... पहली बार आना हुआ और सार्थक हुआ..
dekhan me chote laage ghaav kare gambheer... sir ji abhut achchi post hai....
बढ़िया मूर्ख बनाया भैया अपने दोहो (?) से .
कथ्य की दृष्टि से बेहतरीन पंक्तिया हैं....
aapko bahut dhanyavad hind yugm me 'namami ramam' sun aapne protsahit kiya .
raj sinh 'raku'
aapko bahut dhanyavad hind yugm me 'namami ramam' sun aapne protsahit kiya .
raj sinh 'raku'
वाह! वाह! वाह!
बहुत खूब लिखे हैं ही सब दोहे..
मुस्कुराहटें बिखेर गए सब के सब!
aapke dohon ki main kaayal ho gai.....ek se badhkar ek
दोहा गाथा सनातन :
शिक्षा प् दोहा रचा, जगा आपका ज्ञान.
आत्मीय!
आपके सभी दोहे दोषपूर्ण है. कृपया अन्यथा न लें. दोहा का छंद विधान हिन्दयुग्म की कक्षाओं में देखें...थोड़े से प्रयास से दोहे दोषहीन हो सकते हैं. सिर्फ प्रशंसात्मक टीप को अंतिम न मानें..
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