क्योंकि "निःस्वार्थी", "संतोषी" "कर्मयोगी", "ज्ञानी" न थे हम
( भाई नीरज जी का आदेश है कि एक ही विषय बोरियत का अनुभव करा देता है, सो आज एक नया विषय उठा कर गद्य के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ, प्रयास कितना सार्थक है, फ़ैसला आप करे)
वर्ष २००८ के प्रारंभिक माह में गुजरात के माननीय राज्यपाल पंडित नवल किशोर शर्मा जी ने राजस्थान जन सतर्कता समिति के संस्थापक अध्यक्ष एवं स्वतन्त्रता सेनानी प्रताप भानु खंडेलवाल के पच्चासीवें जन्मदिवस के मौके पर आयोजित अमृत महोत्सव में मुख्य अतिथि के पद से बोलते हुए कहा था ...
"देश में भ्रष्टाचार जड़ों तक प्रवेश कर गया है। इसके खिलाफ आवाज बुलंद करना ही काफी नही है, बल्कि मुहिम छेड़ना जरुरी है"।
बात सुनने में जोरदार लगती है, सो तालियाँ भी खूब बजी, पर मैं यंहा कुछ प्रश्न उठाना चाहता हूँ कि
१ महामहिम को स्पस्ट करना चाहिए कि पत्ते, टहनी, तना एवं जड़ हैं कौन- कौन?
2 स्वतंत्रता प्राप्त किए साठ वर्ष हो गए, महामहिम को स्पष्ट करना चाहिए कि सत्ता में रहते हुए स्वदेशी नेताओं ने भ्रष्टाचार को जड़ों तक पहुचने में कितना सहयोग किया?
३ भ्रष्टाचार का जड़ तक फैलना स्वयं में लचर कानून -व्यवस्था की पोल खोलता है , फिर हमारे स्वदेशी नेता बिगत साठ वर्षों से शासन किस अधिकार और जवाबदेही से करते रहे और कर रहे हैं?
४ जनता कानून कानूनन हाथ में ले नही सकती, फिर मुहिम छेडें कैसे?कानून हाथ में लेकर व्यवस्था बनाये रखने का अधिकार सरकार के पास है, लेकिन वह भ्रष्टाचार मिटाने के लिए आज तक कुछ क्यों न कर सकी ?
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अफ़सोस होता है गांधी के भारत में गांधी के नाम पर वोट मांग कर राज़ करने वाले नेताओं पर!
गांधी ने कभी कोई बात बिना प्रयोग किए कही नही, पर आज के नेता सिर्फ़ और सिर्फ़ कहतें हैं, प्रयोग करने को निह्साय जनता को उकसाते हैं ।
आज देश में है कोई ऐसा नेता , जो सिर्फ़ भ्रष्टाचार के खात्में के लिए प्रतिबद्ध हो तथा पाँच वर्षों के अन्दर अपनी छेड़ी मुहिम से देश में भ्रष्टाचार का खात्मा कर सके। यदि किसी के पास भी ऐसी किसी मुहिम की ठोस रुपरेखा , दिशा-निर्देश हो तो सूचित करें, साथही यह भी बताये कि यह किस तरह से सम्भव होगा एवं यथार्थ रूप में आएगा।
किसी सत्तासीन व्यक्ति का समय-असमय भ्रष्टाचार के विरूद्ध कुछ कहना कुछ इस तरह ही लगता है....
भाषण देने से होगा क्या
जो करके न दिखलाया तो
नहीं, अब नही सहन होगा
जो फिर से ललचाया तो
आ कर्म क्षेत्र में, हो लथपथ
पाओ पहले अनुभव,तुम्हे शपथ
श्रधा से मतवाले दौड़ पडेंगे
ज्ञान ज़रा सा भी छलकाया तो
अपने संक्षिप्त जीवन काल में भ्रष्टाचार के बारें में मेरे व्यक्तिगत विचार निम्न चार पंक्तियों में हैं ....
देश का है कोढ़ "भ्रष्टाचार" सभी कहते हैं
भाषणों में इसे मिटाने का संज्ञान सभी लेते हैं
फिर भी, क्यों न मिटा पाए इसे आज तक हम
क्योंकि "निःस्वार्थी","संतोषी","कर्मयोगी","ज्ञानी"न थे हम
मुहिम कभी भी न भाषणों से शुरू होती है न बात करने से! इसके लिए गहन इच्छा शक्ति , निःस्वार्थ भावना एवं प्रायोगिक विचारों की आवश्यकता होती है।
मुहिम चाणक्य की थी, पर राजा चन्द्र गुप्त को बनाकर,
मुहिम गांधी की थी पर प्रधानमंत्री स्वयं न बने,
मुहिम जयप्रकाश की थे पर प्रधान मंत्री स्वयं न बनें
रामायण की बात हम सभी करतें नही थकते, बहस , विवादों में भी उलझतें हैं, पर थोड़ा इस ओर भी गौर करें की रावण रुपी राक्षस का वध करने के लिए श्री राम को वनवास का रास्ता क्यों चुनना पड़ा? इसे बेहतर समझाने के लिए थोड़ा अपने चारों ओर की जिंदगी देखें..........ग़लत काम करने वालों को उत्साह एवं साथ बिंदास मिला करता है, पर इनका विरोध करने वालों को प्रताड़ना एवं लोगों से कटाव ही मिलता है. नाहक पचडे में क्यों पड़ते हो अपना काम करो.श्री राम भी इसी तरह अयोध्या में रह कर कम करते तो उन्हें भी तरह तरह के ऐसे ही कमजोर करने वाले विचारों का सामना करना पड़ता.किंतु,जंगल में जहाँ मानव का साथ ही नही, कमजोर करने वाले विचार कौन देगा? जंगल में उन्हें साथ भी मिला तो पशु-पक्षियों जैसे प्राकृतिक जीवों का, जो प्रकृति के संस्कारित नियमों से बंधें हैं.ऐसों से हे उन्हें ढाढस मिला, संबल मिला सहयोग मिला और अंततः मिली विजय श्री. किन्यु जब वही श्री राम पत्नी सीता को लेकर अयोध्या आए, प्रजा के एक कटाक्ष पर पत्नी सीता को अग्नि परीक्षा देने के लिए कहने पर विवश होना पड़ा.ऐसा पराक्रमी श्री राम अपनी प्रजा के समक्ष किस तरह कमजोर और विवश हो गया ? शायद मर्यादित होने की वज़ह से!
रामायण के एक और बात का ध्यान रखे कि राम- रावण युद्ध में श्री राम ने अंततः एक व्यक्ति (विभीषण) का साथ लिया पर वह भी मानव के नाम को कलंकित कर गया ।
Thursday, 14 August 2008
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11 comments:
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं ओर बहुत बधाई आप सब को,
शुभकामनाएं पूरे देश और दुनिया को
उनको भी इनको भी आपको भी दोस्तों
स्वतन्त्रता दिवस मुबारक हो
भाषण देने से होगा क्या
जो करके न दिखलाया तो
नहीं, अब नही सहन होगा
जो फिर से ललचाया तो
आ कर्म क्षेत्र में, हो लथपथ
पाओ पहले अनुभव,तुम्हे शपथ
सही लिखा है आपने ..आजादी पर्व की बधाई
जी हाँ भाषण सिर्फ़ पढने के लिए दिए जाते है......ओर तालियों के लिए...समाज में positive बदलाव तो हमें ओर आपको ही लाना है इसी समाज के भीतर........
Gupta Ji
Bahut sarthak lekh likha hai aapne...sachaii ko bade kaushal se prastut kiya hai....bahut bahut badhaii.
Neeraj
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं सभी को
रामायण के एक और बात का ध्यान रखे कि राम- रावण युद्ध में श्री राम ने अंततः एक व्यक्ति (विभीषण) का साथ लिया पर वह भी मानव के नाम को कलंकित कर गया ।
" bhut accha lga pdh kr, or ye sach to kahee dil ko preshan kr gya..."
Regards
भाषण देने से होगा क्या
जो करके न दिखलाया तो
नहीं, अब नही सहन होगा
जो फिर से ललचाया तो
आ कर्म क्षेत्र में, हो लथपथ
पाओ पहले अनुभव,तुम्हे शपथ
बहुत सही लिखा हे आप ने , लेकिन आज बहुत कम लोग सोचते हे, बस भाषण अग्रेजी मे ओर बन गये देश भगत.
धन्यवाद
bhaut ghara likha hai aaj ke desh mein sach mein maheem ko batana tha koun hai wo jadh taki sab kaat to sake
baaten banana hi kaam hai sabka
aapki kavita bhi bhaut pasand aayi
bhashan dene se hoga kya...........
bahut sunder rachana
regards
Netaabhee hamee mese hain...jantabhee wahee hai....jantahee inhen chuntee hai....gar badlaaw chahtaa hai koyi to shuruaat khudse karnee hogee...chahe kitnee chhoteehee kyon na ho....!Hamara sabse bada durbhagya loksankhyaki adhikta hai, jis karan, har cheezke liye lambee qatar hai, aur har koyee qatar todke aage badhna chahta hai...par gar koyi doosara uske aage nikal jaata hai to wo galat kehlata hai...! Jagrutee bohot, bohot shuruse, bachpanme mile sanskaronse shuru honee chahiye...
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