Wednesday, 13 August 2008

श्रद्धा

श्रद्धा
(४३)
ज्यों रहे स्वामी सम्मुख श्वान सदा
रोटियों - बोटियों हेतु दुम हिलाते
त्यों डरे-सहमें से स्वार्थी मातहत
रहे अधिकारियों का चरित्र बखानते
रह-रह ये गुर्रातें हैं , चिल्लातें हैं
क्रियाशीलता का अहसास दिलाते हैं
पर श्रद्धामय निःस्वार्थी जन, श्वान नहीं,
रहे "त्वमेव माता च पिता" ही कहलाते

6 comments:

डॉ .अनुराग said...

bahut khoob........

नीरज गोस्वामी said...

गुप्ता जी, नमस्कार...
आप की "श्रधा" का नियमित पाठक हूँ और आप के सात्विक विचारों से प्रभावित भी. मुझे नहीं मालूम की आप कितनी कडियाँ इसकी लिखने वाले हैं इसे लिखते रहिये और साथ ही दूसरे विषयों पर भी लेखनी चलाईये...हालाँकि आप इस शीर्षक में भी बहुत से आयाम भरते हैं लेकिन धीरे धीरे पाठक एक ही विषय से ऊब महसूस करने लगते हैं...आप में अकूत प्रतिभा है इसका दोहन करें...
एक बात और..कविता में जो सहज प्रवाह होता है वो आप के लेखन में कभी कभी नहीं दिखाई देता...क्या ही अच्छा हो अगर आप इस पर कुछ मेहनत करें...जैसे हिलाते के साथ गुर्राते शब्द का सही तालमेल नहीं बैठ ता ..अगर आप को ऐसे लेखन में कठिनायी होती है तो स्वतंत्र काव्य लिखें...जिसे उर्दू में नज़्म कहते हैं...
आशा है आप मेरी बात को समझ अन्यथा नहीं लेंगे...यदि मेरी बात आप को बुरी लगी हो तो क्षमा करें.
नीरज

seema gupta said...

पर श्रद्धामय निःस्वार्थी जन, श्वान नहीं,
रहे "त्वमेव माता च पिता" ही कहलाते
"ek dan shee kha aapne, sare sach se badh kr ek sach'
Regards

योगेन्द्र मौदगिल said...

गुप्त जी,
आपके ४-५ छंद पढ़े.
एक जिग्यासा है,
इस छन्द के विषय में कुछ जानकारी दें.
शीर्षक, मात्रा व ताल या अन्य जो भी..
आपका आभारी रहूंगा..

वैसे नीरज जी ने,
सही कहा है.
आप विचारियेगा.

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई नीरज जी और मुदगल जी,

आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियों के लिए मैं आप लोंगों का तहे दिल से आभारी हूँ.
ता उम्र मैनें जैसा भी अच्छा-बुरा अनुभव किया वैसा "श्रद्धा" जैसे पवित्र-पावन संस्कार के पुनर्जीवन के लिए श्रद्धा पर "रुबाईयाँ" लिख कर एक यज्ञ कर रहा हूँ.
आप सभी गुनीजन से हार्दिक निवेदन है कि मेरे इस प्रयास को और सार्थक बनाने में आप यदि कुछ संशोधन प्रेषित करें तो मैं उपकृत महसूस करूगां.
अन्तिम उद्देश्य सार्थकता है, सामूहिक प्रयास से आए तो और भी अच्छा लगता है .

चन्द्र मोहन गुप्त

योगेन्द्र मौदगिल said...

शुभकामनाएं पूरे देश और दुनिया को
उनको भी इनको भी आपको भी दोस्तों

स्वतन्त्रता दिवस मुबारक हो
Bhai Gupt g
रूबाई या मुक्तक दोनों ही मिलते जुलते छंद हैं
जहां तक मेरी जानकारी है
रूबाई का मीटर निम्न हैं
'लाहौल विला कुव्वत इल्ला बिल्ला'
अब आप स्वयं देखें
आपकी रचनाएं कुछ कुछ घनाक्षरी से मिलती है
खैर....
मैं भी कोई छंदशास्त्री नहीं हूं
आप स्थानीय स्तर पर
किसी वरिष्ठ कवि शायर से इस्लाह करें