श्रद्धा
(४२)
कुचले- रौन्दें जाने पर भी पेडों ने
आशाओं, उमंगों से न बढ़ना छोड़ा
जब तलक रही जमीं जड़ें धरा में
बिपरीत हालातों से न लड़ना छोड़ा
भ्रष्टाचार, मक्कारी के आधारों पर तो
आशाएं नहीं, मदमस्त लोभ पनपता
पर जुड़ने वालों ने श्रद्धा-आधारों से
लोभ-मोह के सोपानों पे चढ़ना छोड़ा
3 comments:
कुचले- रौन्दें जाने पर भी पेडों ने
आशाओं, उमंगों से न बढ़ना छोड़ा
जब तलक रही जमीं जड़ें धरा में
बिपरीत हालातों से न लड़ना छोड़ा
" very very inspring thoughts full of life"
Regards
आशाओं, उमंगों से न बढ़ना छोड़ा
जब तलक रही जमीं जड़ें धरा में
बिपरीत हालातों से न लड़ना छोड़ा
"Very inspiring thought"
आशाएं नहीं, मदमस्त लोभ पनपता
पर जुड़ने वालों ने श्रद्धा-आधारों से
लोभ-मोह के सोपानों पे चढ़ना छोड़ा
बहुत सुन्दर औरअच्छा लिखा है । बधाई स्वीकारें।
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