Friday 20 February, 2009

श्रद्धा

श्रद्धा
(४६)
अन्याय के विरूद्ध लडेगा कौंन
कष्टों का अम्बार लगा देते है
हो अधिकारी या फ़िर दादागण
कानूनी/दमन चक्र चला देते हैं
आख्यान लाचार थके-हारे जन के
विवाइयाँ नही ख़ुद के पैरों की होती
पर श्रद्धानत, "गांधी" की तरह
चले जो राह, सभी सराह देते हैं