श्रद्धा
(५१)
रही चाह किसको अपमानों की
सम्मान सदा ही सबको भाता है
हो व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र में
सुकून सदा ही घर में पाता है
कितनी कैसी भी दौड़ लगा ले मन
मिल पाता "गोदी" ही में अपनापन
हो श्रद्धामय पाई प्रकृति गोद जिसने
अनुभूति चरम-सुख की बतलाता है
रही चाह किसको अपमानों की
ReplyDeleteसम्मान सदा ही सबको भाता है
हो व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र में
सुकून सदा ही घर में पाता है
" सत्य वचन ......हर एक मनुष्य की यही कामना है..."
Regards
श्रद्धामय पाई प्रकृति गोद जिसने
ReplyDeleteअनुभूति चरम-सुख की बतलाता है
एक सच लिखा है.प्रकृति के पास हर दुःख की दवा है.
अनुभूति चरम-सुख की बतलाता है...
ReplyDeleteसुंदर अनुभूति .
हो व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र में
ReplyDeleteसुकून सदा ही घर में पाता है
बिलकुल सही कहा है आपने.
कितनी कैसी भी दौड़ लगा ले मन
ReplyDeleteमिल पाता "गोदी" ही में अपनापन
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१००% सच!
सुंदर अनुभूति ......
ReplyDeleteप्राकृतिक छटा के नजदीक जाओ । वहां खुशियाँ बिखरी मिलेगी । उन्हें समेट लो । अन्यत्र भटकने से कुछ हासिल नही होगा । जिंदगी का अन्तिम सत्य वही है । अब भी जान लो .....
"कितनी कैसी भी दौड़ लगा ले मन
ReplyDeleteमिल पाता "गोदी" ही में अपनापन"
इन पंक्तियों के माध्यम से पूर्णत: सत्य को दर्शाया है आपने........
कितनी कैसी भी दौड़ लगा ले मन
ReplyDeleteमिल पाता "गोदी" ही में अपनापन
... अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।
shabdo me ghaharayi hai.. post achchi lagi..... very nice........
ReplyDeleteगुप्ता जी बेहद शानदार बात आपने अपने कविता के जरिए कही है । इन कविता ने दिल की गहराई को छुआ है खासकर आपने मामिॆक प्रसंग को भी शामिल किया है जो बेहद शानदार है शुक्रिया
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति अच्छी कविता
ReplyDeleteमेरी ब्लॉग जगत से लम्बी अनुपस्तिथि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
nice post...
ReplyDeleteसही कहा..अच्छी कविता .
ReplyDeleteअभिनव-सकारात्मक प्रस्तुति पर बधाई।
ReplyDeleteथक-कर लुटकर वापिस लौटा
घर आखिर घर था क्या करता
श्याम सखा
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umda, sarahniya rachna.
ReplyDeleteरही चाह किसको अपमानों की
ReplyDeleteसम्मान सदा ही सबको भाता है
हो व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र में
सुकून सदा ही घर में पाता है
आपकी चंद पंक्तियाँ प्रेरणा से भरी होती हैं.......!! शुक्रिया...!!
Bahut khub likha hai.Badhai.
ReplyDeleteव्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र मेंसुकून सदा ही घर में पाता है
ReplyDeleteसत्य तो यही है ,लिखते रहिये ,शुभकामनायें
भाव अच्छे हैँ .
ReplyDeleteआपकी बात पढ्कर
मेरे मन मेँ आया कि
ढूँढ रहे हैँ सब अपनापन
दौड लगा कर मिल क्या पाये
कैसे मिल पाये सम्मान
कैसे जीवन मेँ सुख आये