Monday, 6 April 2009

श्रद्धा

श्रद्धा

(५१)

रही चाह किसको अपमानों की
सम्मान सदा ही सबको भाता है
हो व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र में
सुकून सदा ही घर में पाता है
कितनी कैसी भी दौड़ लगा ले मन
मिल पाता "गोदी" ही में अपनापन
हो श्रद्धामय पाई प्रकृति गोद जिसने
अनुभूति चरम-सुख की बतलाता है

19 comments:

  1. रही चाह किसको अपमानों की
    सम्मान सदा ही सबको भाता है
    हो व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र में
    सुकून सदा ही घर में पाता है
    " सत्य वचन ......हर एक मनुष्य की यही कामना है..."

    Regards

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  2. श्रद्धामय पाई प्रकृति गोद जिसने
    अनुभूति चरम-सुख की बतलाता है

    एक सच लिखा है.प्रकृति के पास हर दुःख की दवा है.

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  3. अनुभूति चरम-सुख की बतलाता है...
    सुंदर अनुभूति .

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  4. हो व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र में
    सुकून सदा ही घर में पाता है

    बिलकुल सही कहा है आपने.

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  5. कितनी कैसी भी दौड़ लगा ले मन
    मिल पाता "गोदी" ही में अपनापन

    --------
    १००% सच!

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  6. सुंदर अनुभूति ......
    प्राकृतिक छटा के नजदीक जाओ । वहां खुशियाँ बिखरी मिलेगी । उन्हें समेट लो । अन्यत्र भटकने से कुछ हासिल नही होगा । जिंदगी का अन्तिम सत्य वही है । अब भी जान लो .....

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  7. "कितनी कैसी भी दौड़ लगा ले मन
    मिल पाता "गोदी" ही में अपनापन"
    इन पंक्तियों के माध्यम से पूर्णत: सत्य को दर्शाया है आपने........

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  8. कितनी कैसी भी दौड़ लगा ले मन
    मिल पाता "गोदी" ही में अपनापन
    ... अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।

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  9. shabdo me ghaharayi hai.. post achchi lagi..... very nice........

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  10. गुप्ता जी बेहद शानदार बात आपने अपने कविता के जरिए कही है । इन कविता ने दिल की गहराई को छुआ है खासकर आपने मामिॆक प्रसंग को भी शामिल किया है जो बेहद शानदार है शुक्रिया

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  11. सुन्दर अभिव्यक्ति अच्छी कविता
    मेरी ब्लॉग जगत से लम्बी अनुपस्तिथि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ

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  12. सही कहा..अच्छी कविता .

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  13. अभिनव-सकारात्मक प्रस्तुति पर बधाई।


    थक-कर लुटकर वापिस लौटा
    घर आखिर घर था क्या करता
    श्याम सखा

    पूरी गज़ल हेतु-गज़ल में रुचि हो तो मेरे ब्लॉग पर आएं
    http://gazalkbahane.blogspot.com/

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  14. रही चाह किसको अपमानों की
    सम्मान सदा ही सबको भाता है
    हो व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र में
    सुकून सदा ही घर में पाता है

    आपकी चंद पंक्तियाँ प्रेरणा से भरी होती हैं.......!! शुक्रिया...!!

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  15. व्यथित प्राणी कर्म - क्षेत्र मेंसुकून सदा ही घर में पाता है
    सत्य तो यही है ,लिखते रहिये ,शुभकामनायें

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  16. भाव अच्छे हैँ .
    आपकी बात पढ्कर
    मेरे मन मेँ आया कि

    ढूँढ रहे हैँ सब अपनापन
    दौड लगा कर मिल क्या पाये
    कैसे मिल पाये सम्मान
    कैसे जीवन मेँ सुख आये

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